मंगलनाथ मंदिर | Mangalnath Mandir | Shri Mangalnath Mandir | Mangalnath Temple | Mangal Dev
मंगलनाथ मंदिर भारत की प्रमुख धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित है जहाँ के पावन सानिध्य को पाकर सभी धन्य हो जाते हैं जहाँ जाकर सभी के पाप स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं. उज्जैन के प्रमुख मंदिरों में से एक यह मंदिर भक्तों की सभी विपदाओं को हर लेता है पुराणों के अनुसार उज्जैन को मंगल की जननी भी कहा जाता है. इसी कारण इस मंदिर का विशेष महत्व रखता है पूरे भारत से लोग यहां पर आकर मंगल देव की पूजा अराधना करते हैं तथा जिनकी कुंडली में मंगल भारी होता है वह मंगल शांति हेतु यहाँ पहुँचते हैं.
उज्जैन का यह मंगलनाथ मंदिर सभी से अलग है. वैसे तो देश भर में कई मंगल भगवान के अनेकों मंदिर हैं, परंतु यह मंगल नाथ मंदिर अपना एक अलग महत्व रखता है. मंगल का जन्म यहाँ होने के कारण ही इस स्थान को मंगल की जननी कहा गया और इस कारण यहाँ पर आकर मंगल की पूजा का विशेष विधान होता है. सभी लोग जिनके लिए मंगल की शांति की पूजा बताई जाती है उसे इस स्थान में आकर इस पूजा को करना चाहिए जिसका फल की गुना प्राप्त होता है तथा जल्द ही मिलता है.
मंगलनाथ मंदिर उज्जैन की क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है मंगलनाथ मंदिर जो भक्तों के लिए एक पवित्र धाम है यहां आना भक्तों के लिए एक अविस्मर्णीय सुखद यात्रा जैसा है. मत्स्य पुराण तथा स्कंध पुराण आदि में मंगल देव के विषय में विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार उज्जैन में ही मंगल भगवान की उत्पत्ति हुई थी तथा मंगल नाथ मंदिर ही वह स्थान है जहाँ देव का जन्म स्थान है जिस कारण से यह मंदिर दैवीय गुणों से युक्त माना जाता है.
मंगल भगवान का स्वरुप | Appearance of Lord Mangal
मंगल भगवान का स्थान नव ग्रहों में आता है यह अंगारका और खुज नाम से भी जाना जाता है. वैदिक पौराणिक कथाओं के अनुसार मंगल ग्रह शक्ति, वीरता और साहस के परिचायक है तथा धर्म रक्षक माने जाते हैं. मंगल देव को चार हाथ वाले त्रिशूल और गदा धारण किए दर्शाया भगवान मंगल की पूजा से मंगल शाँति प्राप्त होती है तथा कर्ज से मुक्ति धन लाभ प्राप्त होता है मंगल के रत्न रूप में मूंगा धारण किया जाता मंगल देव दक्षिण दिशा के संरक्षक माने जाते हैं.
मंगल भगवान जन्म कथा | Birth Story of Lord Mangal
मंगल देव के जन्म की कथा के बारे में पुराणों उल्लेख मिलता है. जिसके अनुसार अंधकासुर नामक एक राक्षस था उसने भगवान शिव की उपासना की तथा वर्षों तक उनकी तपस्या में लीन रहा भगवान शिव उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद प्रदान करते हैं अंधकासुर भगवान से वरदान मांगता है कि मेरी रक्त बूंदे जहां भी गिरें वहीं पर मैं फिर से जन्म लेता रहूं.
इस पर भगवान उसे यही वरदान प्रदान करते हैं इस वरदान को पाकर दैत्य अंधकासुर चारों ओर तबाही फैला देता है शिव के वरदान स्वरूप कोई भी उसे हरा नहीँ पाता जिस कारण सभी लोग प्रभु से पार्थना करते हैं की वो उन्हें इस संकट से आन उबारें तब भगवान शिव अंधकासुर से युद्ध करते हैं इस बीच भयंकर युद्ध होता है दोनों के बीच भीषण युद्ध होता है भगवान शिव जितनी बार भी अपने त्रिशूल से उसे मारते हैं वह अगले ही पुन: जीवित हो जाता है उसका रक्त गिराते ही अनेक अंधकासुर उत्पन्न हो जाते हैं इस लम्बे युद्ध को करते करते भगवान शिव थक जाते हैं और उनके शरीर से पसीने की कुछ बूंदें उज्जैन की भूमि पर गिरती हैं और उन बुंदों के गिरने से पृथ्वी दो भागों में बंट जाती है जिसमें से मंगल देव का जन्म होता है. और इस बीच दैत्य का सारा रक्त मंगल में समा जाता है जिससे उसका अंत होता है.