ज्येष्ठ गौरी पूजा : भाद्रपद माह में होता है ज्योष्ठ गोरी विसर्जन
भाद्रपद माह में आने वाला ज्येष्ठ गोरी विसर्जन का उत्सव भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. ज्येष्ठ गौरी पूजा महाराष्ट्र का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसमें मराठी महिलाएँ व्रत रखती हैं और देवी गौरी की पूजा करती हैं. तीन दिन तक चलने वाले इस पूजन को भक्ति भाव के सतह किया जाता है. दिवसीय उत्सव में मूर्ति को घर लाना, दूसरे दिन पूजा अनुष्ठान करना और तीसरे दिन मूर्ति का विसर्जन करना शामिल है.
ज्येष्ठ गौरी विसर्जन समय, पूजा अनुष्ठान
ज्येष्ठ गौरी पूजा का हिंदू धर्म में बहुत बड़ा धार्मिक महत्व है. यह दिन महाराष्ट्र में मनाए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक के रूप में मनाया जाता है. मराठी महिलाएँ इस शुभ दिन पर व्रत रखती हैं और देवी गौरी की पूजा करती हैं. ज्येष्ठा गौरी आवाहन मराठी महिलाओं के बीच एक बड़ा धार्मिक महत्व रखता है क्योंकि वे इस व्रत को अत्यधिक भक्ति और विश्वास के साथ रखती हैं.
ज्येष्ठ गौरी आवाहन के पहले दिन, गौरी की मूर्ति का आह्वान किया जाता है, इस दिन व्रत रखा जाता है और विवाहित महिलाएं पति की भलाई के लिए देवी गौरी से प्रार्थना करती हैं जबकि अविवाहित कन्याएं भी इस व्रत को रखती हैं. यह तीन दिवसीय उत्सव होता है जो बहुत ही भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. इस पूजन के आरंभ के पहले दिन देवी गौरी की मूर्ति घर पर लाई जाती है, दूसरे दिन, गौरी पूजा का आयोजन किया जाता है और तीसरे दिन, मूर्ति को अपने घर के पास किसी समुद्र या नदी में विसर्जित किया जाता है.
गौरी माता की मूर्ति को घर पर लाने से पहले, महिलाएं अपने घर को अच्छी तरह से साफ करती हैं और इसे फूलों से सजाती हैं, घर में सुंदर रंगोली बनाई जाती है. घर के प्रवेश द्वार पर देवी गौरी के पैर भी ए जाते हैं. महिलाएं गौरी माता के लिए सोलह अलग-अलग प्रकार के व्यंजन और विशेष भोग प्रसाद तैयार करती हैं. गौरी माता को प्रसन्न करने के लिए भक्ति और पारंपरिक गीत या भजन गाए जाते हैं. लगातार दो दिनों तक चलने वाले इस उत्सव के अंतिम दिन यानि तीसरे दिन गौरी माता विसर्जन किया जाता है. मान्यता है कि विसर्जन के बाद देवी कैलाश पर्वत पर लौट जाती हैं.
ज्येष्ठ गौरी कथा
शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ गौरी पूजा और विसर्जन भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण त्योहार है. यह पूजा भारत के विभिन्न हिस्सों में, विशेष रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक में बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. शास्त्रों में ज्येष्ठ गौरी की पूजा और विसर्जन का महत्व विस्तार से वर्णित है. यहां हम इस परंपरा के शास्त्रीय पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे ज्येष्ठ गौरी की कथा भारतीय पौराणिक कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. ज्येष्ठा देवी, जिन्हें ज्येष्ठा गौरी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में इनका स्थान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है और पूजा का उद्देश्य भक्तों को दुख और समस्याओं से मुक्ति दिलाना है. ज्येष्ठा देवी का संबंध भगवान शिव और देवी पार्वती से है.
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती ने एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था. सभी देवताओं में से देवी पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को इस यज्ञ का संचालन करने के लिए चुना लेकिन यज्ञ के दौरान कुछ बाधाएं आईं और यज्ञ का पूरा लाभ नहीं मिल सका. उसी समय देवी ज्येष्ठा ने यज्ञ में बाधा डालने का निर्णय लिया. वह एक डरावने और क्रोधित रूप में प्रकट हुईं. उनका उद्देश्य यज्ञ में बाधा डालकर सभी देवताओं को परेशान करना था. इस रूप में, उन्होंने अपने भक्तों को प्रभावित करना शुरू कर दिया और यज्ञ को बर्बाद कर दिया.
इस दौरान, देवी पार्वती ने भगवान शिव से प्रार्थना की और उनसे इस समस्या को दूर करने की प्रार्थना की. भगवान शिव ने अपना ध्यान देवी ज्येष्ठा की ओर लगाया और उन्हें समझाया कि उनका व्यवहार ठीक नहीं था. देवी ज्येष्ठा ने अपनी गलती स्वीकार की और यज्ञ को सही करने का प्रयास किया. इस प्रकार, उन्होंने यज्ञ में उपस्थित सभी देवताओं की मदद करना शुरू कर दिया. ज्येष्ठा देवी की पूजा का उद्देश्य दुखों से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति प्राप्त करना है. उनके आदर्श से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान धैर्य और समझदारी से करना चाहिए.
ज्येष्ठा गौरी पूजा का महत्व
ज्येष्ठा गौरी, जिन्हें ज्येष्ठा देवी या ज्येष्ठा मां के नाम से भी जाना जाता है, माता पार्वती का ही एक रूप हैं और उन्हें देवी लक्ष्मी की बहन भी माना जाता है. हिंदू धर्मग्रंथों में ज्येष्ठा देवी का वर्णन किया गया है, जिसमें वे विशेष रूप से पूजनीय देवी हैं, जो समृद्धि, सुख और सौभाग्य का प्रतिनिधित्व करती हैं. उनकी पूजा से परिवार के संकट दूर होते हैं और समृद्धि आती है.
ज्येष्ठ गौरी पूजा नियम
ज्येष्ठ गौरी पूजा में महिलाएं सुबह जल्दी उठती हैं और स्नान करती हैं. महिलाएं पारंपरिक कपड़े पहनती हैं और घर की सफाई करती हैं और अपने घर को फूलों, आम के पत्तों से सजाते हैं, रंगोली बनाते हैं और प्रवेश द्वार पर देवी गौरी के पैर बनाते हैं.
परिवार के पुरुष सदस्य देवी गौरी की मूर्ति घर लाते हैं. मूर्ति को लकड़ी के तख़्त पर रखते हैं, पानी से भरा कलश रखते हैं और कलश पर नारियल रखते हैं और मूर्ति को श्रृंगार की वस्तुओं और गहनों से सजाते हैं. देवी गौरी की पूजा करते हैं भोग प्रसाद, मौसमी फल और अन्य चीज़ें देवी को अर्पित की जाती हैं. इस दिन महिलाएँ हरी चूड़ियां और हरी साड़ी पहनती हैं, जिसे मराठी परंपरा में बहुत शुभ माना जाता है. तीसरे और आखिरी दिन, मूर्ति को पानी में विसर्जित कर दिया जाता है.