भाद्रपद माह अष्टमी : राधा अष्टमी और लक्ष्मी पूजन का शुभ योग क्यों है विशेष

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन बेहद खास माना जाता है. इस दिन को राधा जी के जन्म उत्सव के रुप में मनाते हैं और साथ में इस दिन को देवी लक्ष्मी जी के विशेष पूजन एवं व्रत के आरंभ होने का समय भी माना जाता है. शास्त्रों में राधा जी को देवी लक्ष्मी का रुप माना गया है. देवी लक्ष्मी जी ने ही राधा के रुप में जन्म लिया. भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी जहां श्री कृष्ण जन्म का समय होती है वहीं भादो माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी राधा जी के जन्म का समय मानी जाती है.

राधा अष्टमी और महा लक्ष्मी व्रत का प्रभाव
राधा अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन ही मनाया जाता है. इस समय पर देवी राधा जी के साथ महालक्ष्मी की पूजा की जाती है. राधा अष्टमी के साथ महालक्ष्मी व्रत करने से व्यक्ति को जीवन में आने वाले सभी आर्थिक संकटों से मुक्ति मिलती है. कर्ज से मुक्ति, संतान और परिवार का सुख प्राप्त होता है. महालक्ष्मी व्रत के दिन व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए, सभी कामों को समाप्त करके राधा रानी जी के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए.

इस दिन महा लक्ष्मी की पूजा के साथ राधा जी की भी पूजा करनी चाहिए, क्योंकि इसी दिन राधा अष्टमी भी पड़ती है. इस शुभ दिन पर बरसाना की महारानी राधा का जन्म हुआ था. धार्मिक पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राधा जी को भी लक्ष्मी का ही रूप माना जाता है, इसलिए इस दिन राधा जी की पूजा करना भी बहुत शुभ होता है. परंपरागत रूप से यह दिन लंबे समय से ब्रज और बरसाना में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. राधा रानी की पूजा विभिन्न मंदिरों में बहुत धूमधाम से की जाती है. जुलूस निकाले जाते हैं, इस दिन का माहौल बहुत शुभ होता है.

राधा जी और माता लक्ष्मी की पूजा में किसी न किसी रूप में लाल रंग का प्रयोग करना चाहिए. लाल गुलाब अर्पित करना चाहिए, इसके अलावा पूजा में लाल चंदन, सुपारी, इलायची, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल रूई, नारियल, पान आदि रखना चाहिए. विभिन्न प्रकार के भोग, मिष्ठान और विशेष रूप से खीर का भोग लगाना चाहिए. पूजा दो बार करनी चाहिए, सुबह और शाम दोनों समय.

राधा अष्टमी केवल राधा के जन्म का उत्सव ही नहीं है, बल्कि कृष्ण से जुड़ी आध्यात्मिक साधना का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. माना जाता है कि उनकी पूजा कृष्ण के प्रति श्रद्धा को पूर्ण करती है, क्योंकि राधा शुद्ध प्रेम और भक्ति का प्रतीक हैं. भक्तों का मानना ​​है कि इस दिन राधा रानी की पूजा करने से रिश्तों, खासकर वैवाहिक संबंधों में शांति, समृद्धि और सद्भाव आता है. जो लोग जन्माष्टमी पर व्रत रखते हैं, वे अक्सर राधा अष्टमी पूजा करके अपनी आध्यात्मिक यात्रा जारी रखते हैं, जिससे ईश्वर के साथ उनका पूर्ण संबंध सुनिश्चित होता है. मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव में यह उत्सव विशेष रूप से भव्य होता है, ये स्थान राधा और कृष्ण की कहानियों से भरे हुए हैं. यह त्यौहार हजारों भक्तों को आकर्षित करता है जो दिव्य वातावरण का अनुभव करने और सुख, समृद्धि और उपयुक्त जीवनसाथी पाने के लिए राधा का आशीर्वाद लेने के लिए एकत्रित होते हैं.

राधा अष्टमी और महा लक्ष्मी व्रत का महत्व
शास्त्रों के अनुसार राधा अष्टमी और देवी लक्ष्मी जी का आशीष भक्त के जीवन को सुख से परिपूर्ण कर देने वाला होता है. इस दिन व्रत रखना और अनुष्ठान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है. भक्तों का मानना ​​​​है कि राधा की पूजा करके, वे शांति, समृद्धि और खुशी के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. यह दिन उन लोगों के लिए असाधारण है जो व्यक्तिगत संबंधों और आध्यात्मिक विकास में मार्गदर्शन चाहते हैं.

राधा अष्टमी पर किए जाने वाले अनुष्ठान और पूजा बहुत ही आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक होते हैं. इस दिन भक्तों को अपने दिन की शुरुआत देवी के नाम जाप से करनी चाहिए. कमल के आकार का यंत्र बनाने के लिए पांच अलग-अलग रंगों के पाउडर का उपयोग करके मंडप बनाएं. कमल के बीच में राधा-लक्ष्मी की एक सुंदर मूर्ति रखनी चाहिए. पंचामृत, दूध, दही, शहद, घी और गंगा जल के पवित्र मिश्रण से मूर्ति को साफ करके अभिषेक करना चाहिए. देवी को धूप और फूल चढ़ाना चाहिए और आरती तथा मंत्र जाप करने चाहिए. राधा रानी की पूजा में खुद को डुबोने के लिए राधा चालीसा का पाठ करना शुभ होता है.

राधा चालीसा

॥ दोहा ॥
श्री राधे वुषभानुजा, भक्तनि प्राणाधार .
वृन्दाविपिन विहारिणी, प्रानावौ बारम्बार ॥

जैसो तैसो रावरौ, कृष्ण प्रिया सुखधाम .
चरण शरण निज दीजिये, सुन्दर सुखद ललाम ॥

॥ चौपाई ॥
जय वृषभान कुंवारी श्री श्यामा .
कीरति नंदिनी शोभा धामा ॥

नित्य विहारिणी श्याम अधर .
अमित बोध मंगल दातार ॥

रास विहारिणी रस विस्तारिन .
सहचरी सुभाग यूथ मन भावनी ॥

नित्य किशोरी राधा गोरी .
श्याम प्राण धन अति जिया भोरी ॥

करुना सागरी हिय उमंगिनी .
ललितादिक सखियाँ की संगनी ॥

दिनकर कन्या कूल विहारिणी .
कृष्ण प्रण प्रिय हिय हुल्सवानी ॥

नित्य श्याम तुम्हारो गुण गावें .
श्री राधा राधा कही हर्शवाहीं ॥

मुरली में नित नाम उचारें .
तुम कारण लीला वपु धरें ॥

प्रेमा स्वरूपिणी अति सुकुमारी .
श्याम प्रिय वृषभानु दुलारी ॥

नावाला किशोरी अति चाबी धामा .
द्युति लघु लाग कोटि रति कामा ॥

गौरांगी शशि निंदक वदना .
सुभाग चपल अनियारे नैना ॥

जावक यूथ पद पंकज चरण .
नूपुर ध्वनी प्रीतम मन हारना ॥

सन्तता सहचरी सेवा करहीं .
महा मोड़ मंगल मन भरहीं ॥

रसिकन जीवन प्रण अधर .
राधा नाम सकल सुख सारा ॥

अगम अगोचर नित्य स्वरूप .
ध्यान धरत निशिदिन ब्रजभूपा ॥

उप्जेऊ जासु अंश गुण खानी .
कोटिन उमा राम ब्रह्मणि ॥

नित्य धाम गोलोक बिहारिनी .
जन रक्षक दुःख दोष नासवानी ॥

शिव अज मुनि सनकादिक नारद .
पार न पायं सेष अरु शरद ॥

राधा शुभ गुण रूपा उजारी .
निरखि प्रसन्ना हॉट बनवारी ॥

ब्रज जीवन धन राधा रानी .
महिमा अमित न जय बखानी ॥

प्रीतम संग दिए गल बाहीं .
बिहारता नित वृन्दावन माहीं ॥

राधा कृष्ण कृष्ण है राधा .
एक रूप दौऊ -प्रीती अगाधा ॥

श्री राधा मोहन मन हरनी .
जन सुख प्रदा प्रफुल्लित बदानी ॥

कोटिक रूप धरे नन्द नंदा .
दरश कारन हित गोकुल चंदा ॥

रास केलि कर तुम्हें रिझावें .
मान करो जब अति दुःख पावें ॥

प्रफ्फुल्लित होठ दरश जब पावें .
विविध भांति नित विनय सुनावें ॥

वृन्दरंन्य विहारिन्नी श्याम .
नाम लेथ पूरण सब कम ॥

कोटिन यज्ञ तपस्या करुहू .
विविध नेम व्रत हिय में धरहु ॥

तू न श्याम भक्ताही अपनावें .
जब लगी नाम न राधा गावें ॥

वृंदा विपिन स्वामिनी राधा .
लीला वपु तुवा अमित अगाध ॥

स्वयं कृष्ण नहीं पावहीं पारा .
और तुम्हें को जननी हारा ॥

श्रीराधा रस प्रीती अभेद .
सादर गान करत नित वेदा ॥

राधा त्यागी कृष्ण को भाजिहैं .
ते सपनेहूं जग जलधि न तरिहैं ॥

कीरति कुमारी लाडली राधा .
सुमिरत सकल मिटहिं भाव बड़ा ॥

नाम अमंगल मूल नासवानी .
विविध ताप हर हरी मन भवानी ॥

राधा नाम ले जो कोई .
सहजही दामोदर वश होई ॥

राधा नाम परम सुखदायी .
सहजहिं कृपा करें यदुराई ॥

यदुपति नंदन पीछे फिरिहैन .
जो कौउ राधा नाम सुमिरिहैन ॥

रास विहारिणी श्यामा प्यारी .
करुहू कृपा बरसाने वारि ॥

वृन्दावन है शरण तुम्हारी .
जय जय जय व्र्शभाणु दुलारी ॥

॥ दोहा ॥
श्री राधा सर्वेश्वरी,
रसिकेश्वर धनश्याम .
करहूँ निरंतर बास मै,
श्री वृन्दावन धाम ॥
॥ इति श्री राधा चालीसा ॥