कब मनाई जाती है आश्विन संक्रांति ? पितरों को क्यों प्रिय है आश्विन संक्रांति
क्या है आश्विन संक्रांति
संक्रांति को देवता माना जाता है. भारत वर्ष में ही संक्रांति का समय बेहद विशेष माना गया है. आश्विन संक्रांति के दिन स्नान करना, भगवान सूर्य को नैवेद्य अर्पित करना, दान या दक्षिणा देना, श्राद्ध अनुष्ठान करना और व्रत तोड़ना या पारणा करना, पुण्य काल के दौरान किया जाना चाहिए. यदि आश्विन संक्रांति सूर्यास्त के बाद होती है तो सभी पुण्य काल से जुड़े स्नान दान के कार्य अगले दिन होते हैं.
संक्रांति का दिन भगवान सूर्य को समर्पित है. यह हिंदू कैलेंडर में एक विशिष्ट सौर दिवस को भी संदर्भित करता है. इस शुभ दिन पर, सूर्य आश्विन राशि में प्रवेश करता है जो सर्दियों के महीनों के लंबे दिनों की शुरुआत का प्रतीक है. आश्विन संक्रांति के दिन से सूर्य अपनी दक्षिण यात्रा करते हैं आश्विन संक्रांति के अवसर पर संभव हो तो गंगा नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है. . अगर ऐसा संभव न हो तो घर पर ही ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें. इसके लिए पानी में काले तिल और गंगा जल मिलाएं. फिर इससे स्नान करें. इस विधि से स्नान करने से आपको पुण्य का लाभ मिलेगा. मां गंगा की कृपा से आपके पाप मिट जाएंगे और आपको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी.
आश्विन संक्रांति पूजा विधि
आश्विन संक्रांति पर स्नान करने के बाद पितरों को तर्पण करते हैं, तर्पण से उन्हें तृप्त करें. फिर घड़े में जल भर कर उसमें लाल चंदन, लाल फूल और गुड़ डालकर सूर्य मंत्र का जाप करते हुए भगवान भास्कर को अर्घ्य देते हैं इसके बाद सूर्य चालीसा, आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करते हैं. फिर कपूर या घी के दीपक से सूर्य आरती करते हैं कुंडली में सूर्य देव और अन्य ग्रहों के दोष दूर करने के लिए दान करना शुभ होता है.
आश्विन संक्रांति का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन भगवान की रात्रि या पितरों का समय है, और उत्तरायण भगवान के दिन या सकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है. सूर्य का कन्या राशि में जाना ही आश्विन संक्रांति और दक्षिणायन समय का प्रतिक माना गया है. कन्या संक्रांति अर्थात आश्विन संक्रांति के दस्मय पर ही पितरों का समय एवं पूजन करना उत्तम होता है. इसलिए लोग पवित्र स्थानों पर गंगा, गोदावरी, कृष्णा, यमुना नदी में पवित्र स्नान करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं, पितरों के लिए पूजा करते हैं. सामान्य तौर पर सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि धार्मिक दृष्टि से आश्विन संक्रांति का होना फलदायी होता है.
आश्विन संक्रांति के अवसर पर लोग अपनी भक्ति व्यक्त करते हैं. पूरे वर्ष भर भारत के लोगों के प्रति सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दौरान किया गया कोई भी पुण्य कार्य या दान अधिक फलदायी होता है.
आश्विन संक्रांति पर हल्दी कुमकुम समारोह को इस तरह से करना कि ब्रह्मांड में शांत आदि-शक्ति की तरंगों का आह्वान होता गै. इससे व्यक्ति के मन में सगुण भक्ति की छाप पैदा होती है और ईश्वर के प्रति आध्यात्मिक भावना बढ़ती है. देश के विभिन्न क्षेत्रों में आश्विन संक्रांति को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है
संक्रांति मुख्य रूप से स्नान दान का त्यौहार है. पवित्र धर्म नगरियों एव्म नदियों जैसे गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आश्विन संक्रांति के दिन विशेष पूजा अनुष्ठान होते हैं. इस पावन दिन पर उत्तर प्रदेश में लोग व्रत रखते हैं और खिचड़ी खाते हैं. इस दिन उड़द, चावल, सोना, तिल, कपड़े, कंबल आदि दान करने का अपना महत्व है. आश्विन संक्रांति पर स्नान के बाद तिल दान करने की परंपरा है. इस तरह से भारत में आश्विन संक्रांति त्यौहार का अपना अलग महत्व है. इसे विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है.
आश्विन संक्रांति के लाभ
सूर्य पूजा को समर्पित आश्विन संक्रांति के दिन सुबह स्नान करके भगवान भास्कर की पूजा करते हैं. सामर्थ्य क्षमता के अनुसार दान करते हैं आश्विन संक्रांति पर स्नान और दान करने से न केवल पुण्य मिलता है, बल्कि व्यक्ति का भाग्य भी मजबूत होता है. ज्योतिष अनुसार ग्रहों के राजा भी हैं. सूर्य की कृपा से आप अपने करियर में बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं. आश्विन संक्रांति पर लाल वस्त्र, लाल फूल और फल, गुड़ और काला तिल, तांबे का लोटा, धूप, दीप, सुगंध, कपूर, नैवेद्य, लाल चंदन, सूर्य चालीसा, आदित्य हृदय स्तोत्र, गेहूं या सप्तधान्य, गाय का घी, कपड़े, कंबल, अनाज, खिचड़ी आदि दान करना एवं पूजा में इनका उपयोग विशेष होता है.
आश्विन संक्रांति के दिन किया गया सूर्य पूजन रोगों को शांत करता है. अर्थात धर्म में इतनी शक्ति है कि धर्म सभी व्याधियों का हरण कर आपको सुखमय जीवन प्रदान कर सकता है . धर्म इतना शक्तिशाली है कि वह सभी ग्रहों के दुष्प्रभावों को दूर कर सकता है . धर्म ही आपके सभी शत्रुओं का हरण कर उनपर आपको विजय दिला सकता है . शास्त्रों व ज्योतिषशास्त्र के सिद्धांतों पर आधारित सूर्य देव की साधना संक्रांति के समय विशेष होती है.
आश्विन संक्रांति मंत्र और सूर्य पूजा
आश्विन संक्रांति के दिन सूर्यदेवका पूजन विभिन्न मंत्रों को करते हुए करने से पितर शांत होते हैं तथा सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है.
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते। अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय। मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा :।।
ऊँ सूर्याय नमः।ऊँ घृणि सूर्याय नमः।
ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात।
सूर्य मंत्र – ऊँ सूर्याय नमः।
तंत्रोक्त मंत्र – ऊँ ह्यं हृीं हृौं सः सूर्याय नमः। ऊँ जुं सः सूर्याय नमः।
सूर्य का पौराणिक मंत्र
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।।
सूर्य गायत्री मंत्र
ऊँ आदित्याय विदमहे प्रभाकराय धीमहितन्नः सूर्य प्रचोदयात् ।
ऊँ सप्ततुरंगाय विद्महे सहस्त्रकिरणाय धीमहि तन्नो रविः प्रचोदयात् ।
मंत्र-विनियोग
ऊँ आकृष्णेनेति मंत्रस्य हिरण्यस्तूपऋषि, त्रिष्टुप छनदः सविता देवता, श्री सूर्य प्रीत्यर्थ जपे विनियोगः।
मंत्र:
‘ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्येन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन्॥