चन्दन षष्ठी व्रत कथा : चंदन षष्ठी व्रत पूजा महत्व
चन्दन षष्ठी व्रत : भगवान बलभद्र का जन्मोत्सव
चंदन षष्ठी का उत्सव भादो माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन रखा जाता है. जन्माष्टमी से पहले आने वाले इस उत्सव के दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बल भद्र का पूजन होता है. चंदन षष्ठी को कई नामों से जाना जाता है. इसे हल षष्ठी, ललही छठ, बलदेव छठ, रंधन छठ, हल छठ, हर छठ व्रत, चंदन छठ आदि नामों से जाना जाता है.इस व्रत में हल से जोते गए अनाज और सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है.
इस दिन को भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है. भगवान बलराम को शेषनाग के अवतार के रूप में पूजा जाता है, जिन्हें क्षीर सागर में भगवान विष्णु के साथ रहने वाली शय्या के रूप में जाना जाता है. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान बलराम का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है इसीलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है.
चंदन षष्ठी के दिन जन्म श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम
चंदन षष्ठी व्रत के बारे में शास्त्रों में विस्तार से प्राप्त होता है. चंदन षष्ठी व्रत हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है. जन्माष्टमी के समय से पहले कृष्ण भगवान के बड़े भाई के जन्म का उत्सव मनाया जाता है. यह व्रत विवाहित और अविवाहित महिलाएं कर सकती हैं. इस दिन महिलाएं पूरे दिन व्रत रखती हैं और विशेष रूप से सूर्य और चंद्रमा की पूजा करती हैं इस दिन व्रत कथा सुनी और सुनाई जाती है. चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं और रात में भोजन करते हैं. कहा जाता है कि यदि व्रती ने चंदन षष्ठी व्रत का उद्यापन कर लिया है, तभी वह किसी भी व्रत का उद्यापन दोबारा कर सकता है. सबसे पहले इस व्रत का उद्यापन करना होता है और मासिक धर्म के दौरान महिलाओं द्वारा स्पर्श, अस्पर्श, भक्ष्य, अभक्ष्य आदि दोषों से बचने के लिए यह व्रत किया जाता है.
चंदन षष्ठी व्रत संतान सुख की कामना को करता है पूरा
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हलषष्ठी और चंद्र छठ मनाई जाती है. इस साल यह पर्व हर साल उत्साह के साथ मनाया जाता है कि अविवाहित लड़कियां भी यह व्रत रख सकती हैं. इस व्रत में किसी भी तरह का खाना-पीना वर्जित होता है. इस व्रत में हल से जोते गए अनाज और सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता है. कुछ राज्यों में महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और स्वास्थ्य के लिए चंदन षष्ठी व्रत रखती हैं और इस दिन चंदन षष्ठी पूजा की जाती है.
इस दिन पूजा में एक लोटे में जल रखकर उस पर रोली छिड़की जाती है और सात तिलक लगाए जाते हैं. एक गिलास में गेहूं रखा जाता है और ऊपर अपनी श्रद्धा के अनुसार पैसे रखे जाते हैं. हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर कथा सुनी जाती है. इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है इस दिन गेहूं और पैसे ब्राह्मण को दिए जाते हैं. चंद्रमा को जल अर्पित करने के बाद व्रत के नियमों का पालन करते हुए व्रत संपन्न होता है. इस तरह से अलग अलग नियमों के साथ लोग इस दिन का उत्सव मनाते हैं.
चंदन षष्ठी व्रत कथा
एक शहर में एक धनी व्यक्ति और उसकी पत्नी रहा करते थे. पत्नी मासिक धर्म के दौरान भी बर्तनों को छूती रहती थी. कुछ समय बाद धनी व्यक्ति और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई. मृत्यु के बाद धनी व्यक्ति को बैल का रूप मिला और पत्नी को कुतिया का रूप मिला. वे दोनों अपने बेटे के घर की रखवाली करते थे. यह उनके पिता का श्राद्ध था. पत्नी ने खीर बनाई. जब वह किसी काम से बाहर गई तो एक चील ने खीर के बर्तन में सांप गिरा दिया. बहू को इस बात का पता नहीं चला. लेकिन कुतिया यह सब देख रही थी. वह जानती थी कि चील ने खीर में सांप गिरा दिया है.
कुतिया ने सोचा कि अगर ब्राह्मण इस खीर को खा लेंगे तो वे मर जाएंगे. यह सोचकर कुतिया ने खीर के बर्तन में अपना मुंह डाल दिया. गुस्से में बहू ने कुतिया को जलती हुई लकड़ी से बहुत मारा जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी टूट गई. बहू ने उस खीर को फेंक दिया और दूसरी खीर बना ली. सभी ब्राह्मण भोजन से तृप्त होकर चले गए. परंतु पुत्रवधू ने कुतिया को बचा हुआ भोजन भी नहीं दिया. रात्रि में कुतिया और बैल में बातचीत होने लगी. कुतिया बोली, 'आज तुम्हारा श्राद्ध था. तुम्हें खाने को बहुत से व्यंजन मिले होंगे. परंतु मुझे आज कुछ खाने को नहीं मिला, उलटे मुझे बहुत मारा गया. उसने बैल को खीर और सांप के बारे में बताया. बैल बोला, 'आज मुझे भी भूख लगी है. मुझे कुछ खाने को नहीं मिला. आज मुझे बाकी दोनों से अधिक काम करना पड़ा. बेटा और पुत्रवधू बैल और कुतिया की सारी बातें सुन रहे थे.
बेटे ने पंडितों को बुलाकर उनसे पूछा और अपने माता-पिता की योनि के बारे में जानकारी ली कि वे किस योनि में गए हैं. पंडितों ने बताया कि माता कुतिया की योनि में गई है और पिता बैल की योनि में गए हैं. लड़के को सारी बात समझ में आ गई और उसने पंडितों से उनकी योनि से मुक्ति का उपाय भी पूछा. पंडितों ने सलाह दी कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को जब कुंवारी लड़कियां चंद्रमा को जल चढ़ाने लगे तो दोनों को उस जल के नीचे खड़ा होना चाहिए, तब उन्हें इस योनि से मुक्ति मिल सकती है. तुम्हारी माता रजस्वला अवस्था में सभी बर्तन छूती थी, इसीलिए उसे यह योनि मिली है. आने वाली चंद्र षष्ठी को लड़के ने उपरोक्त निर्देश का पालन किया, जिसके कारण उसके माता-पिता को कुतिया और बैल की योनि से मुक्ति मिल गई.