महालया श्राद्ध । चतुर्दशी श्राद्ध | Mahalaya Shraddh | Chaturdashi Shraddh
यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्य तिथि होती है किंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृ पक्ष के लिए उत्तम मानी जाती है. इस अमावस्या को सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालया के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रोक्त अनुसार इस दिन किया जाने वाला श्राद्ध सभी पितरों को प्राप्त होता है. जो लोग शास्त्रोक्त समस्त श्राद्धों को न कर पाते वह कम से कम आश्विन मास में पितृगण की मरण तिथि के दिन यदि श्राद्ध अवश्य करें तो यह एक उत्तम कार्य होता है.
भाद्र शुक्ल पक्ष, पूर्णिमा से पितरों का दिन आरम्भ हो जाता है. यह सर्व पितृ अमावस्या तक रहता है. जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध तर्पण आदि नहीं कर पाते या जिन्हें पितरों की मृत्यु तिथि याद न हो, उन सबके श्राद्ध, तर्पण इत्यादि इसी अमावस्या के दिन किए जाते हैं. इसलिए अमावस्या के दिन पितर अपने पिण्डदान एवं श्राद्ध आदि की आशा से आते हैं यदि उन्हें वहाँ पिण्डदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलती, तो वे अप्रसन्न होकर चले जाते हैं जिससे पितृदोष लगता है और इस कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
महालया का तापर्य महा यानी 'उत्सव दिन' और आलय यानी के घर अर्थात कृष्ण पक्ष में पितरों का निवास माना गया है इसलिए इस काल में पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं जो महालय भी कहलाता है. यदि कोई पितृदोष से पिडी़त हो या पितृदोष शांति के लिए अपने पितरों की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उसे सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध - तर्पण अवश्य करना चाहिए.
श्राद्ध नियम | Shraddh Principles
शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध के लिए कुछ महत्वपूर्ण नियमों का अनुमोदन किया गया है जिनके पालन श्राद्ध क्रिया को उचित प्रकार से किया जा सके और पितरों को शांति प्राप्त हो सके. यह नियम इस प्रकार कहे गए हैं कि:- दूसरे के निवास स्थान या भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिये. श्राद्ध में पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मण द्वारा पूजा कर्म करवाए जाने चाहिए. ब्राह्मण का सत्कार न करने से वह श्राद्ध कर्म के सम्पूर्ण फल नष्ट हो जाते हैं.
श्राद्ध में सर्वप्रथम अग्नि को भाग अर्पित किया जाता है तत्पश्चात हवन करने के बाद पितरोंके निमित्त पिण्डदान किया जाता है, रजस्वला स्त्री, चाण्डाल और सुअर श्राद्ध के संपर्क में आने पर श्राद्ध का अन्न दूषित हो जाता है. श्राद्ध समय में वस्त्र का दान करना चाहिये. श्राद्ध समय तर्पण करते हुए दोनों हाथों से जल प्रदान करना चाहिए. रात्रि में श्राद्ध नहीं करना चाहिए इसके अतिरिक्त दोनों सन्ध्या में तथा पूर्वाह्णकाल में भी श्राद्ध नहीं करना चाहिए.
श्राद्ध में पिण्डदान | Pind Daan in Shraddh
श्राद्ध में पिण्डदान का बहुत महत्व होता है. बच्चों एवं सन्यासियों के लिए पिण्डदान नहीं किया जाता. श्राद्ध में बाह्य रूप से जो चावल का पिण्ड बनाया जाता, जो देह को त्याग चुके हैं वह पिण्ड रुप में होते हैं,यह इसीलिए किया जाता है कि पितर मंत्र एवं श्रद्धापूर्वक किये गये श्राद्ध की वस्तुओं को लेते हैं और तृप्त होते हैं.श्राद्ध के अनेक प्रकार होते हैं जिसमें नित्य श्राद्ध, काम्य श्राद्ध, एकोदिष्ट श्राद्ध, गोष्ठ श्राद्ध इत्यादि हैं.
चतुर्दशी श्राद्ध | Chaturdashi Shraddh
श्राद्ध श्राद्धपक्ष की तिथियों में होता है. हमारे पूर्वज जिस तिथि में इस संसार से गये हैं, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि को किया जाने वाला श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ होता है. जिनकी मृत्यु की तिथि याद न हो, उनके श्राद्ध के लिए अमावस्या की तिथि उपयुक्त मानी गयी है इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हुए जीव समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं मघा नक्षत्र पितरों को अभीष्ट सिद्धि देने वाला होता है. इसलिए इस नक्षत्र के दिनों में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और पितर इससे संतुष्ट होते हैं.
आश्विन माह के कृष्णपक्ष यानी श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर पितरों की प्रसन्नता के लिए चतुर्दशी का श्राद्ध किया जाता इस तिथि पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है
जिन पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं चतुर्दशी तिथि पर श्राद्ध करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं तथा पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.