पदमा एकादशी । पद्मा एकादशी | Padma Ekadashi | Padma Ekadashi 2025

भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी पदमा एकादशी कही जाती है. इस वर्ष 03 सितंबर 2025 को पदमा एकादशी का पर्व मनाया जाएगा. इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन रुप कि पूजा की जाती है. इस व्रत को करने से व्यक्ति के सुख, सौभाग्य में बढोतरी होती है. इस एकादशी के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र धोये थे. इसी कारण से इस एकादशी को "जलझूलनी एकादशी" भी कहा जाता है.

मंदिरों में इस दिन भगवान श्री विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है. गांग के बाहर जाकर उनको स्नान कराया जाता है. इस अवसर पर भगवान श्री विष्णु के दर्शन करने के लिये लोग सैलाब की तरह उमड पडते है. इस एकादशी के दिन व्रत कर भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है.

जलझूलनी एकादशी पूजा | Jal Jhulni Ekadashi Puja

इस व्रत में धूप, दीप,नेवैद्ध और पुष्प आदि से पूजा करने की विधि-विधान है. एक तिथि के व्रत में सात कुम्भ स्थापित किये जाते है. सातों कुम्भों में सात प्रकार के अलग- अलग धान्य भरे जाते है. इन सात अनाजों में गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौं, चावल और मसूर है. एकादशी तिथि से पूर्व की तिथि अर्थात दशमी तिथि के दिन इनमें से किसी धान्य का सेवन नहीं करना चाहिए.

कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रख पूजा की जाती है. इस व्रत को करने के बाद रात्रि में श्री विष्णु जी के पाठ का जागरण करना चाहिए यह व्रत दशमी तिथि से शुरु होकर, द्वादशी तिथि तक जाता है. इसलिये इस व्रत की अवधि सामान्य व्रतों की तुलना में कुछ लम्बी होती है. एकादशी तिथि के दिन पूरे दिन व्रत कर अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घडा ब्राह्माण को दान में दिया जाता है.

डोल ग्यारस | Dol Gyaras

राजस्थान में जलझूलनी एकादशी को डोल ग्यारस एकादशी भी कहा जाता है. इस अवसर पर यहां भगवान गणेश ओर माता गौरी की पूजा एवं स्थापना की जाती है. इस अवसर पर यहां पर कई मेलों का आयोजन किया जाता है.इस अवसर पर देवी-देवताओं को नदी-तालाब के किनारे ले जाकर इनकी पूजा की जाती है. संध्या समय में इन मूर्तियों को वापस ले आया जाता है. अलग- अलग शोभा यात्राएं निकाली जाती है. जिसमें भक्तजन भजन, कीर्तन, गीत गाते हुए प्रसन्न मुद्रा में खुशी मनाते हैं.

पद्मा एकादशी महात्म्य | Significance of Padma Ekadashi

कथा इस प्रकार है सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन्म व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं. राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करता है.

इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है. इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पदमा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है, जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है.