भैरव साधना | Bhairav Sadhana | Lord Bhairav
श्री भैरव भगवान शिव का एक रुप माना जाता है. पुराणों तथा तंत्र शास्त्र में भैरव जी के अनेक रुपों का वर्णन प्राप्त होता है. इनके प्रमुख रुप इस प्रकार हैं:- असितांग भैरव, चण्ड भैरव, रुरु भैरव, क्रोध भैरव, कपालि भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव उन्मत्त भैरव इत्यादि. भैरव जी की उपासना के विषय में बृहज्ज्योतिषार्णव ग्रंथ में बहुत से मंत्रों का पता चलता है. इसके अतिरिक्त शारदातिलक, रुद्रयामलतंत्र एवं सप्तविंशतिरहस्यम में भैरव स्वरुप के दर्शन होते हैं.
श्री भैरव जी की साधना शक्ति का स्वरुप होती है. शत्रुओं से बचाती है तथा समस्त भय का नाश करने वाली होती है. श्री भैरव जी के दस नामों का प्रात: काल स्मरण करने मात्र से सभी संकट दूर होते हैं. भैरव, भीम, कपाली शूर, शूली, कुण्डली, व्यालोपवीती, कवची, भीमविक्रम तथा शिवप्रिय नामों का स्मरण व्यक्ति को बल एवं साहस प्राप्त होता है उसे कोई यातना एवं पिडा़ नहीं सताती. भैरव जी के शतनाम, सहस्त्रनाम कवच इत्यादि का वरण आगम ग्रंथों से प्राप्त होता है. शक्ति पूजा, देवी पूजा में भैरव जी की पूजा का विधान देखा जा सकता है.
भैरव साधना के रुप | Forms of Bhairav Sadhana
भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं. बटुक भैरव जी के सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से रोग दोष दूर होते हैं तथा दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है. इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. तथा इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से सम्मोहन, वशीकरण इत्यादि का प्रभाव समाप्त होता है. भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है. इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं.
भैरव कवच | Bhairav Kawach
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||
श्री भैरव के 108 नाम | 108 names of Shri Bhairav
भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ, क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन. विराट्, मांसाशी, रक्तप, श्मशान-वासी, स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः खर्पराशी सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु. पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव,त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि. भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव, धनवान, धूम्र-लोचन धनदा, अधन-हारी, कपाल-भृत, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव नाग-केश, नाग-हार, कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, चटु-वेष, खट्वांग, वटुकः, भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः , शुर, दिगम्बर, हरिणः पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति , ज्ञान-चक्षु-धारक, तपोमय, निधीश, षडाधार, अष्टाधारः, सर्प-युक्त, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज, भूधराधीश भूधर नीलाञ्जन-प्रख्य, सर्वापत्तारण, मारण , नाग-यज्ञोपवीत, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण, शुद्धक, मुण्ड-विभूषित, कंकाल धारण, मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, बालः, क्षोभण, दुर्गः कान्तः, कामी, कला-निधिः,दुष्ट-भूत-निषेवित, कामिनि कृत, सर्वसिद्धिप्रद जगद्-रक्षाकर, वशी, अनन्तः भैरव, माया-मन्त्रौषधि-मय ,वैद्य, विष्णु.
भैरव साधना महत्व | Significance of Bhairav Sadhana
भैरव जी के इन अष्टोत्तर-शत नामों का स्मरण करने से भक्त को के दुख से दूर होते हैं. उसे दुःस्वप्नों, चोरों का भय नहीं सताता. उसके शत्रु का नाश होता है तथा प्रेतों-रोगों से व्यक्ति का बचाव होता है. भूत बाधा हो या ग्रह बाधा सभी को दूर कर भैरव भगवान अपनी कृपा प्रदान करते है.