कृष्ण जन्माष्टमी जन्मोत्सव | Krishna Janmashtami Mahautsava | Krishna Janmashtami Festival
भगवान विष्णु ने संसार में धर्म की स्थापना व अधर्म के नाश हेतु अनेकों अवतार लिए इन्हीं में से एक अवतार द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में लिया. श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात्रि में हुआ था. अत: इस पावन तिथि को प्रत्येक वर्ष भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रुप में संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत ही धूम-धाम व आस्था के साथ मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन प्रेरणा स्वरुप रहा है जो जीवन के अनेकों सूत्रों को बताता है और यही अमूल्य सूत्र जीबन को दिशा और मुक्ति का मार्ग दिखलाते हैं.
जन्माष्टमी की धूम | Janmashtami Festival
कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव पावन अवसर पर मंदिरों को फूलों, बिजली की झालरों तथा रंगबिरंगी झंड़ियों से आकषर्क ढंग से सजाया जाता है. विभिन्न स्थानों पर कई मंदिर समितियों द्वारा कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर खुले मैदानों को विशेष पंडालों से सजाया जाता है जिनमें झांकियों और गीत संगीत के साथ भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है. मंदिरों में कुछ दिनों पहले से ही कृष्ण जन्मोत्सव का कार्यक्रम आरंभ हो जाता है.
भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के अवसर पर भजन संध्या आयोजित होती हैं तथा भगवान की लीलाओं से संबधित विभिन्न प्रकार की झांकियों का भी प्रदर्शन किया जाता है. इस अवसर पर मटकी फोड़ प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं. आम तौर पर तिथि और नक्षत्र को लेकर भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव दो दिन मनाया जाता है जिसे उपासक अपने अपने योग के अनुसार इस पर्व को मनाते हैं. कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार भारत के अतिरिक्त विश्व के कई अनेक हिस्सों में भी धूम धाम से मनाया जाता है.
जन्माष्टमी व्रत का महत्व | Significance of Fast on Janmashtami
जन्माष्टमी के संदर्भ में इस बात पर विशेष रुप से बल दिया गया है कि इस व्रत को किस दिन मनाया जाए.
जन्माष्टमी में अष्टमी को दो प्रकारों से व्यक्त किया गया है. जिसमें से प्रथम को जन्माष्टमी और अन्य को जयंती कहा जाता है. स्कन्दपुराण के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत होता है यदि दिन या रात्रि में कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि में इस व्रत को करना चाहिए.
कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी में यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाना चाहिए तथा व्रत का पालन करना चाहिए. विष्णु पुराण के अनुसार कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद माह में हो तो इसे जयंती कहा जाएगा. वसिष्ठ संहिता के कथन अनुसार अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अहोरात्र में पूर्ण न भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी अहोरात्र के योग में व्रत करना चाहिए.
स्कन्द पुराण के एक अन्य कथन अनुसार जो व्यक्ति जन्माष्टमी व्रत को करते हैं. उनके पास लक्ष्मी का वास होता है. विष्णु पुराण के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से अनेक जन्मों के पापों का क्षय होता है. भृगु संहिता अनुसार जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त में पारणा करना चाहिए.
कृष्ण जन्माष्टमीको और कई अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे कृष्णाष्टमी, सातम आठम, गोकुलाष्टमी तथा अष्टमी रोहिणी इत्यादि किंवदंतीयों के अनुसार है कि श्री कृष्ण का जन्म रात्री के समय कारागार में हुआ था जहां कंस ने उनके माता-पिता को बंदी बनाकर एक कारागृह में रखा था. जन्म के तुरंत पश्चात उनके पिता वासुदेव ने उनको उसी रात्रि एक टोकरी में रखकर अपने मित्र नंद और यशोदा के घर पहुंचाया था.
जन्माष्टमी व्रत को अपना कर भक्त समस्त संकटों से मुक्ति पाता है. इसी प्रकार एक अन्य ग्रंथ ब्रह्मपुराण में कहा गया है कि कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में अट्ठाइसवें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए तथा भविष्यपुराण में कहा गया है कि जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह राक्षस के समान होता है.
मोहरात्रि | Mohratri
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि भी कहा गया है. इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से मुक्ति प्राप्त होती है. जन्माष्टमी का व्रत करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव सम्पूर्ण विश्व को आनंद-मंगल का संदेश देता है. जन्माष्टमी के दिन कई स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं.
इस दिन दूध और दूध से बने व्यंजनों का सेवन किया जाता है. भगवान कृष्ण को दूध और मक्खन अति प्रिय था. अत: जन्माष्टमी के दिन खीर और पेडे़, माखन, मिस्री जैसे मीठे व्यंजन बनाए और खाए जाते हैं. जन्माष्टमी का व्रत, मध्य रात्रि को श्रीकृष्ण भगवान के जन्म के पश्चात भगवान के प्रसाद को ग्रहण करने के साथ ही पूर्ण होता है.
मटकी फोडने का दही-हांडी समारोह | Dahi - Handi Festival
जन्माष्टमी के अवसर पर मन्दिरों व घरों को सुन्दर ढंग से सजाया जाता है. इस त्यौहार को कृष्णाष्टमी अथवा गोकुलाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. इस त्यौहार के दौरान भजन किर्तन गाए जाते हैं व नृत्य एवं रास लीलाओं का आयोजन किया जाता है. इसके साथ ही साथ दही-हांडी जैसे आयोजन भी होते हैं. जिसमें एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन इत्यादि रख दिए जाते हैं.
मटकी को काफी ऊँचाई पर लटका दिया जाता है जिसे फोडाना होता है. इसे दही हांडी आयोजन कहते हैं और जो भी इस मटकी को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है उसे ईनाम दिया जाता है. महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान मटकी फोड़ने का आयोजन होता है. महाराष्ट्र में चारों ओर इस तरह के अनेक आयोजन एवं प्रतियोगिताओं का देखा जा सकता है.
जन्माष्टमी महत्व | Importance of Janmashtami
गीता की अवधारण द्वारा भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि जब जब धर्म का नाश होता है तब तब मैं स्वयं इस पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ और अधर्म का नाश करके धर्म कि स्थापना करता हूँ. अत: जब असुर एवं राक्षसी प्रवृतियों द्वारा पाप का आतंक व्याप्त होता है तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर इन पापों का शमन करते हैं. भगवान विष्णु इन समस्त अवतारों में से एक महत्वपूर्ण अवतार श्रीकृष्ण का रहा. भगवान स्वयं जिस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे उस पवित्र तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं.