वराह जयंती : जब श्री विष्णु ने किया ब्रह्मा के वरदान का अंत
वराह अवतार भगवान विष्णु का एक और अवतार है और भाद्रपद माह के दौरान वराह जयंती मनाई जाती हैश्री विष्णु के रुप वराह को प्रसन्न करने के लिए भक्त इस दिन व्रत एवं पूजा इत्यादि से उनकी पूजा करते हैं. भगवान वराह भगवान विष्णु के तीसरे अवतार हैं. इस दिन भगवान वराह की पूजा करने से भक्त को धन, भाग्य और खुशियां मिलती हैं. हिंदू पौराणिक कथाओं में यह माना जाता है कि भगवान वराह की पूजा करने से व्यक्ति को अपार धन और अच्छा स्वास्थ्य मिलता है. भगवान विष्णु, जिन्होंने आधे मानव और आधे सूअर के रूप में जन्म लिया था.
राक्षसों को हराने के लिए उन्होंने इस अवतार को धारण किया और तीनों लोकों को उन राक्षसों से मुक्त किया था. माना जाता है कि इस दिन भक्ति भाव से किया गया भगवान वराह का पूजन समस्त बुराईयों को दूर करने वाला होता है. जीवन में खुशियों का आगमन होता है. भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, जो माघ और भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है. श्री विष्णु, जिन्हें हिंदू पौराणिक कथाओं में सभी लोकों के रक्षक के रूप में जाना जाता है, देश भर में उन भक्तों द्वारा पूजा की जाती है जो उनके विभिन्न अवतारों में विश्वास रखते हैं.
दक्षिण भारत में वराह जयंती पर्व
वैसे तो संपूर्ण भारत में ही इस उत्सव को मनाया जाता है लेकिन वराह जयंती का त्योहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत में काफी व्यापक रुप से मनाया जाता देखा जा सकता है. इस शुभ समय के दिन भक्त के स्नान करने के बाद सुबह-सुबह प्रार्थना करने हेतु भगवान श्री विष्णु के मंदिरों में जाते हैं. घर पर पूजा स्थल पर भगवान का पूजन किया जाता है. इस दिन को मनाने के लिए अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं. भक्तों इस समय पर पूरे दिन उपवास रखते हैं. रात में भगवान विष्णु के विभिन्न स्वरूपों की कहानियों का पाठ करते हुए जागरण का आयोजन करना शुभ होता है. जो भक्त वराह जयंती का व्रत रखते हैं, उन्हें एक कलश में भगवान वराह की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए, उसके बाद विसर्जन करना चाहिए. एक बार पूजा हो जाने के बाद मूर्ति को किसी ब्राह्मण या आचार्य को दान कर देना चाहिए.
वराह जयंती पूजन अनुष्ठान
भगवान वराह की मूर्ति को मंदिर में स्थापित करते हैं. मंदिर में कलश में जल भर कर रखा जाता है. कलश पर नारियल रखा जाता है जिसे पूजा के बाद ब्राह्मण को दान कर दिया जाता है. श्रद्धालु इस दिन श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करते हैं. जो लोग वराह जयंती का व्रत रखते हैं वह भक्ति भाव के साथ इस दिन को मनाते हैं तथा दान इत्यादि कार्यों को करत एहुए पुण्यफल पाते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया दान एवं धार्मिक पूजा पाठ भक्तों को शुभता प्रदान करने वाला होता है. पूजन द्वारा भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
उनके सबसे प्रसिद्ध अवतारों में से एक, वराह रूप को पृथ्वी पर भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता है. वराह जयंती श्री विष्णु के जन्म का उत्सव मनाने वाला त्योहार है, जो सदैव पृथ्वी को कष्टों से मुक्त करते हैं. अधर्म का नाश करके धर्म एवं सदभाव को स्थापित करते हैं. त्रिदेवों में से सबसे शक्तिशाली देवताओं में से एक है.धर्म कथाएं कहती है कि सृष्टि को दो शक्तिशाली राक्षसों के संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने वराह के रूप में जन्म लिया था, जिन्होंने तीनों लोकों पर आतंक मचा रखा होता है.
वराह जयंती कथा
दिति ने दो राक्षसों को जन्म दिया. हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु अद्भुत शक्तियों के साथ पैदा हुए थे. उनके जन्म के समय संपूर्ण ब्रह्माण्ड भयभीत हो गया था. पृथ्वी हिलने लगती है. महासागरों में विशाल ज्वार उठने लगते हैं. नक्षत्र उलटे जाते हैं. तीनों लोकों का परिदृश्य अपने आप में भयानक होने लगता है. दोनों भाई जल्द ही मजबूत और विशाल शरीर वाले हो गये. दोनों ने कठिन तपस्या की और भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने में सफल रहे. उन्होंने असीमित शक्तियां मांगीं और कहा कि कोई भी उन्हें किसी भी युद्ध में हरा न सके. भगवान ब्रह्मा ने उनकी इच्छा पूरी की और स्वर्ग वापस चले गये. वे दोनों शक्तिशाली हो गए और अपनी ताकत साबित करने के लिए तीनों लोकों के लोगों को परेशान करने लगे.
तीनों लोकों को प्राप्त करने के बाद, वे दोनों वरुण देव के राज्य "विभारी नगरी" को जीतने के लिए गए. सबसे पहले, वरुण देव उनकी शर्तों को सुनकर क्रोधित हो गए. लेकिन बाद में उन्होंने अपनी उग्रता को दबाते हुए उनसे कहा, “हो सकता है कि आप शक्तिशाली हों और आपके पास अद्भुत शक्तियां हों, लेकिन भगवान विष्णु सभी में श्रेष्ठ हैं. वह वही है जो तुम्हें हरा सकता है”. यह सुनकर हिरण्याक्ष भगवान विष्णु को हराने के विचार से उनकी खोज में निकल पड़ा.
इसी बीच देवर्षि नारद को पता चला कि भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया है और पृथ्वी को रसातल से मुक्त कराने जा रहे हैं तब हिरण्याक्ष भी भगवान विष्णु के पीछे-पीछे चला और उसने उन्हें अपने दांतों से पृथ्वी को पकड़े हुए देखा. हिरण्याक्ष ने अपशब्द कहकर भगवान विष्णु को रोकने का प्रयास किया. इस प्रकार, वह भगवान विष्णु को उससे युद्ध करने के लिए उकसाने की कोशिश कर रहा था.
सबसे पहले, भगवान विष्णु ने उसके अपमानजनक व्यवहार को नजरअंदाज कर दिया और अपनी यात्रा जारी रखी. हिरणायक्ष और अधिक क्रोधित हो गया और कायर, पशु, पापी आदि शब्द कहकर प्रभु को और भी अधिक गालियां देने लगा. फिर भी भगवान विष्णु ने शांत रहकर पृथ्वी को समुद्र की सतह पर स्थापित किया. जिससे उनका कार्य पूरा हो सके. जब हिरण्याक्ष ने देखा कि उसकी बातें किसी भी तरह से भगवान विष्णु को उत्तेजित नहीं कर पा रही हैं, तो उसने उन पर हमला करने के लिए अपना हथियार निकाला. भगवान विष्णु ने उसके हाथ से हथियार छीनकर दूर फेंक दिया. दोनों ने कुछ देर तक आपस में युद्ध किया जिसमें हिरण्याक्ष भगवान विष्णु के हाथों मारा गया. इस प्रकार पृथ्वी पर पाप का अंत होता है तथा धर्म को पुन: फलने फुलने का अवसर प्राप्त होता है.