गुरु प्रदोष व्रत : सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति प्रदान करता है गुरु प्रदोष व्रत

बृहस्पतिवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत गुरु प्रदोष व्रत के रुप में जाना जाता है. प्रत्येक माह आने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा का समय होता है. प्रदोष व्रत का फल जीवन को समस्त प्रकार के दोषों से मुक्त करने हेतु तथा सुखमय जीवन को प्रदान करने वाला होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गुरु प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने वाले को सहस्त्रों गाय दान करने के बराबर पुण्य मिलता है.

प्रदोष व्रत 2024
18 जुलाई, 2024, बृहस्पतिवार
गुरु प्रदोष व्रत
08:44 पी एम से 09:23 पी एम

01 अगस्त, 2024, बृहस्पतिवार
गुरु प्रदोष व्रत
07:12 पी एम से 09:18 पी एम

28 नवम्बर, 2024, बृहस्पतिवार
गुरु प्रदोष व्रत
05:24 पी एम से 08:06 पी एम

गुरु प्रदोष व्रत का लाभ कई रुपों में भक्तों को प्राप्त होता है. इसका असर गुरु के किसी भी प्रकार के दोष को भी समाप्त करता है. यदि कुंडली में गुरु दोष प्रभाव है तो गुरु प्रदोष पूजा विशेष लाभदायक बनती है. साथ ही यह सभी प्रकार के कष्टों और पापों का नाश करने वाली है. वहीं जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस व्रत की कथा पढ़ता और सुनता है, उसे वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.  

कब रखा जाता है गुरु प्रदोष व्रत 

प्रशोह व्रत जिस दिन पड़ता है उसी अनुसर उसे नाम प्राप्त होता है. यदि यह बृहस्पतिवार के दिन आता है तो उस दिन के नाम अनुसार इसे गुरु प्रदोष व्रत या गुरु प्रदोषम व्रत के रुप में जाना जाता है. त्रयोदशी तिथि के सायंकाल के समय को प्रदोष काल कहा जाता है. धार्मिक ग्रंथों मेम् प्रदोष व्रत को शुभ माना गया है. भक्त बड़े उत्साह के साथ यह व्रत त्योहार के रुप में मनाते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है. जब यह व्रत गुरुवार के दिन पड़ता है तो इसे गुरु प्रदोष कहा जाता है. मान्यता है कि गुरु प्रदोष त्रयोदशी व्रत करने वाले को भोलेनाथ का आशीष प्राप्त होता है, पुण्य मिलता है.

साथ ही यह सभी प्रकार के कष्टों और पापों का नाश करने वाली है. वहीं जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस व्रत की कथा पढ़ता और सुनता है, उसे वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.  पंचांग के अनुसार प्रदोष काल यानी शाम 7.00 बजे से 9.20 बजे के बीच भगवान शिव की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. इसके साथ ही इस दिन पूजन पूरी रात रहता है. ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों संयोगों को धार्मिक कार्यों के लिए बेहद शुभ माना गया है.

गुरु प्रदोष व्रत मंत्र 

गुरु प्रदोष व्रत के दौरान गुरु मंत्र एवं गुरु स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. गुरु मंत्रों में गुरु गायत्री मंत्र का पाठ करने के साथ साथ गुरु स्त्रोत करना उत्तम प्रभाव दायक होता है. 

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि ।

  तन्नो गुरुः प्रचोदयात ॥​​ गुरु गायत्री मन्त्र द्वारा देवगुरु बृहस्पति की उपासना और ध्यान करने से बृहस्पति देव अति प्रसन्न होते है। बृहस्पति देव के आशीर्वाद से स ...

गुरु स्तोत्र 

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 1 ॥

अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 2 ॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परम्ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 3 ॥

स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 4 ॥

चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 5 ॥

सर्वश्रुति शिरोरत्नः विराजित पदाम्बुजः। वेदान्ताम्बुज सूर्योयस्तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 6 ॥

चैतन्यं शाश्वतं शान्तं व्योमातीतं निरंजनं। नादबिंदु कलातीतं तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 7 ॥

ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः । भुक्ति मुक्ति प्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 8 ॥

अनेकजन्म सम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने । आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 9 ॥

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापनं  सार सम्पदः । गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 10 ॥

न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः । न गुरोरधिकं ज्ञानं तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 11 ॥

मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः । मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 12 ॥

गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम् । गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 13 ॥

यत्सत्येन जगत्सर्वं यत्प्रकाशेन भ्रान्तियत। यदानन्देन नंदैन्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ 14 ॥

नित्यशुद्धं निराभासं निराकारं निरंजनं। नित्यबोधं चिदानन्दम गुरुर्ब्रह्मानमाम्यहम ॥ 15 ॥

ध्यानमूलं गुरोमूर्ति पूजा मूलं गुरोरपदं। मंत्र मूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोर्कृपा ॥ 16 ॥

नमामि श्रीगुरुपादपल्लवम्। स्मरामि श्रीगुरुनाम निर्मलम्। 

पश्यामि श्रीगुरु रूप सुन्दरम्। श्रृणोमि श्रीगुरु कीर्ति अद्भुतम् ॥ 17 ॥

गुरु प्रदोष व्रत कथा

प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार मनाया जाता है. यह व्रत शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. जब यह व्रत गुरुवार के दिन पड़ता है तो इसे गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है. प्रदोष व्रत की पूजा के बाद इसकी कथा को सुनना एवं पढ़ना आवश्यक होता है. आइए जानते हैं गुरु प्रदोष व्रत की कथा. गुरु प्रदोष व्रत अत्यंत शुभ एवं मंगलकारी माना जाता है.

गुरु प्रदोष कथा इस प्रकार है कि एक बार इंद्र और वृत्रासुर के बीच भयंकर युद्ध हुआ. उस समय देवताओं ने राक्षसी सेना को परास्त कर नष्ट कर दिया. अपनी सेना का विनाश देखकर राक्षस वृत्रासुर बहुत क्रोधित हुआ और स्वयं युद्ध के लिए तैयार हो गया. मायावी असुर ने आसुरी माया से भयंकर विकराल रूप धारण कर लिया. उसके रूप को देखकर इंद्रादि देवताओं ने बृहस्पतिजी का आह्वान किया, गुरु ने कहा- हे देवेन्द्र! वृत्रासुर महान तपस्वी है, उसने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था. पूर्वकाल में यह चित्ररथ नाम का राजा था, सुरम्य वन ही उसका राज्य था, उस वन में ऋषि-महात्मा रमण करते थे.

यह भगवान के दर्शन की अनुपम भूमि है. एक बार चित्ररथ स्वेच्छा से कैलाश पर्वत पर गये. भगवान के स्वरूप और वाम भाग में विराजमान जगदम्बा को देखकर चित्ररथ हँसे और हाथ जोड़कर शिव शंकर से बोले- हे प्रभु! हम लोग माया से मोहित हो जाते हैं और विषयों में फंसने के कारण स्त्री के वश में रहते हैं, परंतु देवताओं के लोक में ऐसा कहीं नहीं देखा गया कि कोई स्त्री के साथ सभा में बैठा हो. चित्ररथ के ऐसे वचन सुनकर देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और चित्ररथ की ओर देखकर बोलीं- हे दुष्ट, तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ-साथ मेरी भी हंसी उड़ाई, तुझे अपने कर्मों का फल भोगना होगा.

तुम राक्षस रूप धारण करके विमान से नीचे गिर जाओ, मैं तुम्हें शाप देती हूं कि तुम अब पृथ्वी पर चले जाओ. जब जगदम्बा भवानी ने चित्ररथ को श्राप दिया तो वह तत्काल विमान से गिर पड़ा और राक्षस योनि धारण कर महासुर नाम से प्रसिद्ध हुआ. तवष्टा नामक ऋषि ने घोर तपस्या से उसे उत्पन्न किया और अब वही वृत्रासुर शिव की भक्ति में ब्रह्मचारी रहा. इसलिए तुम उसे जीत नहीं सकते इसलिए मेरी सलाह से तुम यह गुरु प्रदोष व्रत करो ताकि तुम उस शक्तिशाली राक्षस पर विजय पा सको. गुरुदेव के वचन सुनकर सभी देवता प्रसन्न हुए और गुरुवार के दिन त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत विधि-विधान से किया. जिससे वृत्रासुर की पराजय हुई और देवता तथा मनुष्य प्रसन्न हुए.   

गुरु प्रदोष व्रत महत्व

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इस खास दिन पर भगवान शिव के साथ माता पार्वती की पूजा का भी विधान है. मान्यता है कि ऐसा करने से दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि आती है और परिवार में दुखों का नाश होता है. इसके साथ ही प्रदोष व्रत करने से कई प्रकार के ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलती है.