भालचंद्र गणेश चतुर्थी व्रत : जानें क्यों कहलाते हैं श्री गणेश भालचंद

चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टि चतुर्थी के रुप में मनाया जाता है. भगवान गणेश को बाधाओं को दूर करने वाले, कला और विज्ञान के संरक्षक के रुप में स्थान प्राप्त है.  बुद्धि और ज्ञान को प्रदान करने वाले देव हैं. अपने सभी रुपों में वह किसी न किसी रुप में ज्ञान को हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं. भगवान गणेश गणपति और विनायक के रूप में भी जाने जाते हैं. हिंदू धर्म में सर्व प्रथम पूज्य देव के रुप में यह विराजमान हैं. किसी भी शुभ कार्य का आरंभ श्री गणेश के आहवान द्वारा ही संपन्न होता है. श्री गणेश भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं और भगवान कार्तिकेय, देवी लक्ष्मी और सरस्वती के भाई स्वरुप हैं. 

बुद्धी, सिद्धि और ऋद्धि नाम के तीन गुणों को प्रदान करने वाले देव होने के नाते यह क्रमशः ज्ञान, आध्यात्मिकता और समृद्धि के रूप में जाने जाते हैं. भगवान वान गणेश स्वयं बुद्धी के अवतार हैं. अन्य दो गुणों को देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है और उन्हें भगवान गणेश की पत्नी माना जाता है. श्री गणेश जी के वैवाहिक जीवन पर अलग-अलग मत हैं, किंतु गुणों के मध्य को भेद व्याप्त नही होता है. शिव पुराण के अनुसार, भगवान गणेश के दो पुत्र थे जिनका नाम शुभ और लाभ रखा गया था. शुभ और लाभ क्रमशः शुभता और लाभ के अवतार हैं. शुभ देवी रिद्धि के पुत्र थे और लाभ देवी सिद्धि के पुत्र थे.गणेश के प्रतिनिधित्व समय के साथ बदलते व्यापक बदलाव और विशिष्ट स्थिति को दिखाता है. श्री गणेश जी को राक्षसों के खिलाफ युद्ध करते हुए, बाल रुप में माता पार्वती के साथ स्नेह रुप में तथा पिता के समक्ष साहस से खड़े होते हुए और भाई के समक्ष बुद्धि को महत्वपूर्ण दिखाते हुए देखा जा सकता है 

भालचंद्र गणेश चतुर्थी कथा 

श्री गणेश जी का चतुर्थी तिथि से गहरा संबंध है. यह उनके जन्म समय की तिथि है. इस कारण से इस तिथि के समय गणेश जी का पूजन करने का विधान भी रहा है. हाथी की सूंड, एक मानव शरीर और एक गोल पेट का स्वरुप उनके ज्ञान के हर स्वरुप का भाग बनता है. श्री गणेश भगवान अपने हाथों में एक पाश और कुल्हाड़ी लिए हैं. श्रीगणेश के निचले हाथों में से एक अभय मुद्रा में दिखाया गया है जबकि दूसरे हाथ में उनके पास मोदक से भरा कटोरा है. गणेश जी की सूंड का बाईं ओर मोड़ना एक विशेषता है. भगवान गणेश का वाहन एक चूहा है. 

गणेश चतुर्थी के दिन श्री गणेश भगवान की भालचंद्र के रूप में पूजा की जाती है. वह सभी प्रकार की परेशानियों को दूर करने वाले देव हैं. भालचन्द्र का अर्थ है जिसके मस्तक पर चन्द्रमा सुशोभित हो. गणेश के इस रूप के बारे में गणेश पुराण में एक कहानी है, एक बार चंद्रमा ने आदिदेव गणपति का मजाक उड़ाया, जिसके कारण गणेश ने उन्हें श्राप दिया कि आप अपनी संदरता को सदैव धारण नहीं कर पाएंगे यह सुंदरता भी कमजोर हो जाएगी. और आप किसी के सामने नहीं आ पाएंगे जो आपको देखेगा वह श्राप से प्रभवैत होगा. चंद्रमा को तब अपनी भूल का एहसास होता है. वह श्री गणेश से अपने कृत्य हेतु क्षमायाचना करते हैं. इस प्रकार देवताओं के अनुरोध पर गणेश जी ने अपने श्राप को भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष चतुर्थी तक ही सीमित रखा. गणेश जी ने कहा भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को ही तुम अदृश्य रहोगे, जबकि प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को मेरे साथ तुम्हारी पूजा होगी. तुम मेरे माथे पर विराजमान रहोगी. इस प्रकार चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करके गजानन भालचन्द्र बन गये.

भगवान गणेश को अगर प्रसन्न किया जाता है, तो वे सफलता, समृद्धि प्रदान करते हैं तथा विपत्ति से सुरक्षा करते हैं. हर धार्मिक मांगलिक अवसर पर उनकी पूजा की जाती है और विशेष रूप से प्रार्थना द्वारा उनका आह्वान किया जाता है.

भगवान गणेश का स्वरुप एवं महत्व 

सात चक्रा में श्री गणेश को मूलाधार चक्र के मुख्य देवता माना गया है. श्री गणेश केतु का स्वामित्व पाते हैं . इसलिए, पहले उन्हें पूजने पर समस्त प्रकार की नकारात्मकता शांत हो जाती है. मूलाधार चक्र रीढ़ की हड्डी के नीचे स्थित है. यह व्यक्ति की सबसे बुनियादी प्रवृत्ति को दर्शाता है. इसलिए ध्यात्मिक यात्रा तभी शुरू होती है जब श्री गणेश को साकार किया जाता है. श्री गणेश जी का हाथी का सिर भौतिक शक्ति और समृद्धि का भी प्रतिनिधित्व करता है. अपने बड़े आकार के कारण शत्रुओं पर भी हावि रहता है. हाथी को जंगल के अन्य सभी प्राणियों से कम डर लगता है. और इस प्रकार, शक्ति का प्रतीक. इसका अस्तित्व समृद्धि का प्रतीक बनाता है. श्री गणेश भगवान उन लोगों को आशीर्वाद देते हैं जो छिपे हुए सत्य को जने के लिए प्रेरित होते हैं. भगवान श्री गणेश भक्तों के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं और अशुद्धियों को नष्ट करने वाले होते हैं.भक्त के मन को ज्ञान से प्रकाशित कर देते हैं भक्त के जीवन में शांति, समृद्धि और खुशी प्रदान करते हैं.

अत: गणेश चतुर्थी के दिन भगवान का पूजन करने से जीवन में शुभता का वास होता है. व्यक्ति अपने कार्यों में सफलता को पाता है.