देवी कामाख्या, तंत्रविद्या का शक्ति केन्द्र
कामाख्ये वरदे देवी
नीला पर्वता वासिनी
त्वम् देवी जगतम माता
योनि मुद्रे नमोस्तुते ||
देवी कामाख्या , तंत्र और मंत्र का शक्ति पीठ
तंत्र और मंत्र की अधिठात्रि देवी कामाख्या, शक्ति का वह स्वरुप हैं जो सृष्टि के निर्माण को दर्शाती हैं. कामाख्या संपूर्ण कामानाओं को पूर्ण करने वाली देवी हैं. देवी के प्रमुख शक्ति पीठों में कामाख्या को विशेष स्थान प्राप्त है. कामाख्या मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है जो भारत के आसाम के खूबसूरत शहर गुवाहाटी में नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है. शक्ति का यह अभयारण्य भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है और हर दिन हजारों तीर्थयात्री इस स्थान पर आकर देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं यह स्थान देवी के प्रमुख शक्ति पीठों में सबसे पुराना माना जाता है.
देवी कामाख्या योनी स्वरुपा
देवी कामाख्या को अक्सर श्मशान घाट में विभिन्न प्रकार की साधना हेतु चित्रित किया जाता है. अन्य देवी-देवताओं के विपरीत, इनके योनी रुप का पूजन होता है क्योंकि देवी गर्भ स्थान में योनी रुपा स्वरुप में स्थित हैं.
देवी कामाख्या तारण और मारण की शक्ति
देवी कामाख्या तंत्र की अधिष्ठात्री देवी हैं, सृजन और विनाश दोनों ही स्थितियां इनमें विराजमान हैं. कामाख्या नाम का अर्थ काम तथा कामना से संबंधित माना गया है. देवी समस्त कामानों को पूर्ण करने वाली हैं. कामाख्या देवी कोमल एवं कठोर दोनों ही रुपों में विराजित हैं देवी अपने भक्तों के लिए माता करुणा हैं तथा शत्रुओं के लिए विनाशकारी शक्ति हैं. सृष्टि के निर्माण में इन्हीं का स्वरुप विराजमान है. प्रकृति की नवीनता का कारण भी देवी ही हैं. तीन लोकों में देवि की सत्ता सर्वविदित है.देवी कामाख्या वह अग्नि, प्रकाश, अंधकार सभी पहलुओं को धारण करती है. कुंडलिनी की देवी हैं, जो रीढ़ के आधार के रूप में स्थित ऊर्जा का एक दिव्य रूप है. यही कारण है कि देवी कामाख्या की पूजा में ध्यान की चेतना पर विशेष बल दिया जाता है, जो कुंडलिनी को जगाने में मदद होता है.
तंत्र विद्या में कामाख्या
वह महान ब्रह्मांडीय चेतना का एक रूप है और कामाख्या माता को सबसे शक्तिशाली तांत्रिक देवी में से एक माना जाता है. वह एक ऐसी मां है जो अपने बच्चों की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है. तंत्र विद्या में, वह शक्ति का रूप है. वह कामाख्या क्रिया जैसे कई तांत्रिक क्रियाओं से जुड़ी हुई हैं. इन क्रियाओं को करने वाले प्रकाश, अग्नि और पृथ्वी की सभी प्रकार की ऊर्जा को एक में केंद्रित करते हैं. कामाख्या मंदिर प्राचीन भारत के सबसे रहस्यमय स्थानों में से एक स्थान भी है, जिसे दैवीय शक्तियों की प्राप्ति के लिए बनाया गया था. तंत्रवाद से जोड़ा गया माता का रुप शक्तियों का समुह है जिसमें सभी शक्तिशाली क्रियाओं को किया जाता है.
देवी की पूजा प्रकृति के पंचभूतों पर नियंत्रण करने के लिए शरीर और मन को नियंत्रित करने की इच्छा रखने वालों के लिए उत्तम होती है. देवी कामाख्या की पूजा एक चक्र के रूप में पूजा की जाती है पूजा करने से तत्काल आशीर्वाद मिलता है और व्यक्ति को सभी कुछ प्राप्त होता है. देवी अपने उपासकों एवं भक्तों को दर्द और पिड़ा से राहत दिलाने में मदद करती है.कामाख्या साधना को सिद्ध करने वाले साधक को सभी अष्टसिद्धियां प्राप्त होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सभी अलौकिक शक्ति में महारत हासिल करने के लिए आध्यात्मिक प्रगति प्राप्त होती है.
देवी कामाख्या की उत्पत्ति
देवी कामाख्या सती का प्रतिरुप हैं जो भगवान शिव के साथ मौजूद हैं. देवी को काल कामाख्या के नाम से भी जाना जाता है. देवी काली को ऊर्जा के आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है.
पौराणिक ग्रंथों में शक्ति की स्थापना एवं शिव शक्ति के मिलन से जुड़ी कई कहानियां ओर मिथक मिल जाते हैं. कामाख्या को देवी सती का स्वरुप माना गया है और इसे देवी के महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में गिना जाता है.
अनेक कथाएं अलग अलग रुप से चित्रित हैं. एक कथा अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने ब्रह्मांड के निर्माण में सहायता के लिए शक्ति और शिव को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ किया जिसके फलस्वरुप देवी शक्ति शिव से अलग हो जाती हैं और ब्रह्मा जी की सहायता के लिए निकल पड़ती हैं. जब उद्देश्य पूर्ण होता है तो शक्ति पुन: शिव के पास चली जाती हैं. सहस्त्र वर्षों उपरांत ब्रह्मा के मानस पुत्र दक्ष ने सती को अपनी बेटी के रूप में पाने हेतु बहुत तप किया और देवी शक्ति दक्ष के घर उनकी पुत्री स्वरुप उत्पन्न होती हैं. दक्ष को भगवान शिव से अत्यंत वैर रहा अपने पिता के अपमान का भी उनके भीतर क्षोभ था उन्होंने सती का विवाह शिव से न करने का निश्चय किया हुआ था किंतु ऎसा होन नहीं पाया और अंत में सती का विवाह शिव के साथ ही संपन्न होता है.
दक्ष एक बार फिर शिव द्वारा पराजित हुआ अनुभव करता है ओर शिव का प्रतिपल अपमान करने का संकल्प बनाए रखता है. एक बार वह दक्ष ने एक महाविशाल यज्ञ का आयोजन किया जिसमें समस्त देवी देवताओं को आमंत्रित किया किंतु उन्होंने अपने पुत्रि सती ओर अपने जमाता शिव को आमंत्रण नहीं दिया. ये यज्ञ दक्ष ने भगवान शिव से बदला लेने की इच्छा से ही किया था. जब सती को पता चला की पिता ने सभी को पूजा में बुलाया लेकिन उन्हें बुलावा नहीं दिया गया तो वह बिना आमंत्रण के ही अपने पिता के घर जाने को व्याकुल होने लगीं.
देवी सती ने उसने शिव से अपनी इच्छा व्यक्त की, शिव नहीं माने और सती को जाने से रोकने की पूरी कोशिश करते हैं. किंतु सती के बार -बार कहने पर वह मान जाते हैं, सती अपने पिता के यज्ञ में चली जाती है लेकिन सती को यज्ञ में सम्मान नहीं दिया जाता है अपना और अपने पति के अनादर से वह इतनी पीड़ा से भर जाती हैं की उसी यज्ञ की अग्नि में समा जाती है. यज्ञ में सती के आत्मदाह को देखते ही समस्त लोक त्राही त्राही करने लगते हैं. भगवान शिव को जब इस घटना का पता चलता है तो वह क्रोधित हो पत्नी के अपमान और मृत्यु का दंड देने के लिए अपने वीरभद्र अवतार को दक्ष के यज्ञ में भेजते हैं जहां यज्ञ पूर्ण रुप से नष्ट कर दिया जाता है और दक्ष का सिर काट दिया जाता है.
शिव अपनी शक्ति को खोने से व्यथित हो जाते हैं. दु: ख में डूबे हुए, शिव देवी सती के शरीर को अपने कंधों पर उठा कर तांडव करने लगते हैं. यह एक विनाश का समय होता है और देवता भगवान श्री विष्णु के पास जाकर इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए आग्रह करते हैं. श्री विष्णि तब अपने सुदर्शन चक्र द्वार देवी सती की देह को काट देते हैं ओर देवी के प्रत्येक अंग जहां जहां भी गिरते हैं उस स्थान पर शक्ति पीठों की स्थापना होती है.
इस कथा अनुसार देवी का योनी भाग आसाम में गिरा जहां आज का कामाख्या मंदिर स्थापित है. देवी योनी स्वरुपा होकर कामाख्या स्थल पर विराजमान हुईं.