चातुर्मास । चातुर्मास्य | Chaturmas | Chaturmasya

चतुर्मास के चार महीने भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते है इसलिए ये समय भक्तों, साधु संतों सभी के लिए अमूल्य होता है. यह चार महीनों में होनेवाला एक वैदिक यज्ञ है जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है जिसे चौमासा भी कहा जाता है. कात्यायन श्रौतसूत्र में इसके महत्व के बारे में बताया गया है. फाल्गुन से इस का आरंभ होने की बात कही गई है इसका आरंभ फाल्गुन, चैत्र या वैशाख की पूर्णिमा से हो सकता है और अषाढ़ शुक्ल द्वादसी या पूर्णिमा पर इसका उद्यापन करने का विधान है. इस अवसर पर चार पर्व हैं वैश्वदेव, वरुणघास, शाकमेघ और सुनाशीरीय. पुराणों में इस व्रत के महत्व के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है.

वर्षाकाल के चार माह में सभी के लिए साधना पूजा पाठ करने के बारे में कहा गया है. सभी संत एवं ऋषि मुनि इस समय में इस चौमासा व्रत का पालन करते हुए देखे जा सकते हैं. इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तामसिक वस्तुओं का त्याग किया जाता है, चार माह जमीन पर सोते हैं और चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु की आराधना कि जाती है. इसके अलावा उपवास और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किया जाना शुभ फल प्रदान करने वाला होता है. चातुर्मास के चार महीनों को शुभ माना जाता है. इसके बाद चातुर्मास का समापन देव उठनी ग्यारस पर होता है और इसी के साथ चातुर्मास का माह भी समाप्त हो जाता है.

चातुर्मास व्रत एवं पूजा पाठ | Chaturmas rituals for fast and puja

इस समय के दौरान भोजन में किसी भी प्रकार का तामसिक प्रवृति का भोजन नहीं होना चाहिए. भोजन में नमक का प्रयोग करने से व्रत के शुभ फलों में कमी होती है, व्यक्ति को भूमि पर शयन करना चाहिए, जौ, मांस, गेहूं तथा मूंग की दान का सेवन करने से बचना चाहिए. इस अवधि के दौरान सत्य का आचरण करते हुए दूसरों को दु:ख देने वाले शब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए.

इसके अतिरिक्त शास्त्रों में व्रत के जो सामान्य नियम बताये गए है, उनका सख्ती से पालन करना चाहिए.  सुबह जल्दी उठना चाहिए. नित्यक्रियाओं को करने के बाद, स्नान करना चाहिए. स्नान अगर किसी तीर्थ स्थान या पवित्र नदी में किया जाता है, तो वह विशेष रुप से शुभ रहता है. किसी कारण वश अगर यह संभव न हो, तो इस दिन घर में ही स्नान कर सकता है. स्नान करने के लिये भी मिट्टी, तिल और कुशा का प्रयोग करना चाहिए. यह विष्णु भगवान् का व्रत है अतः 'नमो- नारायण' या ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र’ के जप करने से सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है.

स्नान कार्य करने के बाद भगवान श्री विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. पूजन करने के लिए धान्य के ऊपर कुम्भ रख कर, कुम्भ को लाल रंग के वस्त्र से बांधना चाहिए. इसके बाद कुम्भ की पूजा करनी चाहिए. जिसे कुम्भ स्थापना के नाम से जाना जाता है. कुम्भ के ऊपर भगवान की प्रतिमा या तस्वीर रख कर पूजा करनी चाहिए. ये सभी क्रियाएं करने के बाद धूप, दीप और पुष्प से पूजा करनी चाहीए. इस समय पूजा पाठ करने से भगवान श्री विष्णु प्रसन्न होते है. अत: मोक्ष की प्राप्ति होती है.

चातुर्मास महत्व | Significance of Chaturmas

पुराणों में ऎसा उल्लेख है, कि इस दिन से भगवान श्री विष्णु चार मास की अवधि तक पाताल लोक में निवास करते है. आषाढ मास से कार्तिक मास के मध्य के समय को चातुर्मास कहते है. इन चार माहों में भगवान श्री विष्णु क्षीर सागर की अनंत शय्या पर शयन करते है. इसलिये इन माह अवधियों में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं किया जाता है. इस अवधि में कृषि और विवाहादि सभी शुभ कार्य नहीं होते. इन दिनों में तपस्वी एक स्थान पर रहकर ही तप करते है. धार्मिक यात्राओं में भी केवल ब्रज यात्रा की जा सकती है. ब्रज के विषय में यह मान्यता है, कि इन चार मासों में सभी देव एकत्रित होकर तीर्थ ब्रज में निवास करते है.