ज्येष्ठ संक्रांति 2025| Jyeshtha Sankranti

ज्येष्ठ संक्रांति में सूर्य वृष राशि में प्रवेश करेंगे यह संक्रांति 15 मई, 2025 को आरंभ होगी.  इस पुण्य काल के समय दान, स्नान एवं जप करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है. इस मास में संक्रान्ति, गंगा दशहरा व निर्जला एकादशी आदि पर्व मुख्य रुप से रहेंगें.

ज्येष्ठ संक्रान्ति के दिन व्रत-उपवास रख कर घडा, गेहूं, चावल, सतु, अनाज व दूध -चीनी, फल, वस्त्र, छाता, पंखा आदि अन्य गर्मियों में प्रयोग होने वाली वस्तुओ का दक्षिणा सहित दान करने का विशेष महत्व होता है. व्रत के दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन व "ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय " मंत्र व विष्णु सहस्त्र नाम आदि स्त्रोतों का जप-पाठ करना शुभ रहता है.

ज्येष्ठ संक्रांति पूजन | Rituals to perform Jyeshtha Sakranti Puja

ज्योतिषियों के अनुसार संक्रांति के दिन स्नान इत्यादि से निवृत होकर सामर्थ्य अनुसार दान करने से शारीरिक, धार्मिक व अन्य लाभ तथा पुण्य प्राप्त होते हैं. इसके अतिरिक्त पूजन में अष्ठदल का कमल बनाकर उसमें सूर्यदेव का चित्र स्थापित करके भगवान का पूजन करना चाहिए. व्रत-पूजन-कथा करने से इस दिन पुन्यों की प्राप्ति होती है. ज्येष्ठ मास की संक्रांति का व्रत करते समय भगवान की मूर्ति के सामने व्रत का संकल्प लिया जाता है.

व्रत का संकल्प लेने के बाद व्रत प्रारम्भ करना चाहिए. और फल-फूल, अक्षत, चन्दन, जल आदि से प्रभ की उपासना करनी चाहिए. ब्राह्माणों को भोजन कराना चाहिए और दान इत्यादि देकर विदा करना चाहिए. ज्येष्ठ संक्रांति पर्व में कई प्रकार की शास्त्रोक्त विधि संबंधी प्रार्थनाएं सम्मिलित हैं. ज्येष्ठ  संक्रांति एक बहुत ही मंगलकारी पर्व है.

ज्येष्ठ संक्रांति महत्व | Significance of Jyestha Sakranti

ज्येष्ठ का महीना हिन्दू पंचांग का तीसरा माहीना होता है और इसी माह में मनाई जाती हैं ज्येष्ठ संक्रांति. ज्येष्ठ माह गर्मी का माह है, इस महीने में गर्मी अपने चरम पर होती है. इस कारण ज्येष्ठ माह में जल का महत्त्व बढ जाता है और ज्येष्ट संक्रांति के अवसर पर जल की पूजा की जाती है. प्राचीन समय में ऋषि मुनियों ने इस ज्येष्ठ संक्रांति में जल के महत्व का उल्लेख किया.

पवित्र गंगा नदी को ज्येष्ठ भी कहा जाता है क्योंकि गंगा अपने गुणों में अन्य नदियों से ज्येष्ठ अर्थात बडी है. संक्रांति के अवसर पर प्रात: काल शुभ मुहूर्त में स्नान करना उत्तम माना जाता है. कुछ लोग गंगा अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने जाते हैं और जो लोग नहीं जा पाते वे घरों में ही पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान कर ज्येष्ठ संक्रांति का पुण्य प्राप्त करते हैं.

संक्रांति का पर्व प्रकृति परिवर्तन के साथ शरीर का संतुलन बनाए रखने की ओर भी इशारा करता है. संक्रांति पर्व हमें धार्मिक अनुष्ठान करते हुए प्रकृति से जुड़े रहने का शुभम संदेश देता है. इस पर्व की धूम गांव, नगर, शहर हर जगह दिखाई देती है. प्रत्येक दिवस किसी न किसी देवता की उपासना से जुड़ा होने से उत्सव का आनंद लोगों को मिलता ही रहता है. इसी क्रम में इस विशेष ज्येष्ठ संक्रांति पर्व पर होने वाले धार्मिक उत्सव में जनमानस एक-साथ मिलकर आनंद के साथ इसे मनाता है.