श्री (सरस्वती) पंचमी 2024, हर परीक्षा में होंगे सफल
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन श्री पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस पर्व को हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है. यह दिन भिन्न भिन्न रुपों में अलग अलग स्थानों पर मनाते हुए देखा जा सकता है. इस दिन मंदिरों में सरस्वती पूजा होती है. मान्यता है की इस दिन देवी सरस्वती की पूजा अर्चना करने से विधा और ज्ञान की प्राप्ति होती है इसीलिए इस दिन माँ सरस्वती की पूजा पीले फूलों, फलों व पीले व्यंजनों से की जाती है.
हिन्दू संस्कृति में इस दिन से कई धार्मिक और लोक परम्पराएं जुडी हुई हैं. इसी दिन देवी सरस्वती की पूजा करने के बाद छोटे बच्चों को विद्यारम्भ या फिर प्राथमिक शिक्षा की प्रक्रिया आरंभ की जाती है. श्री पंचमी के दिन को बच्चों की शिक्षा आरम्भ करने के लिए बहुत ही शुभ माना गया है.
श्री पंचमी के अलग-अलग रुप
“श्री” शब्द का अर्थ लक्ष्मी और सरस्वती के संदर्भ में लिया जाता रहा है. श्री को विजय, धन संपदा, बौद्धिकता और ज्ञान के साथ जोड़ा गया है. भारतीय परंपरा में देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी इन दोनों को ही श्री नाम से संबोधित किया जाता रहा है. इन दोनों का ही एक पर्व श्री पंचमी के नाम से मनाया जाता है. यह पर्व पंचांग गणना के अनुसार अलग-अलग महीनों में मनया जाता रहा है.
श्री पंचमी पूजा मुहूर्त
- पंचमी तिथि प्रारम्भ - 13 फरवरी 2024 को 14:43 से.
- पंचमी तिथि समाप्त -14 फरवरी 2024 को 12:10 तक.
श्री पंचमी प्रकृति के बदलाव की शुरुआत का समय होता है. इस समय पर पकृति का नया कलेवर दिखाई देता है. इस समय पर चारों एक अलग प्रकार का रंग दिखाई देता है. ये समय चारों ओर पीले फूलों की बहार होती है. इस पर्व का प्रकृतिक और धार्मिक रंग दोनों ही ऎसी छाप छोड़ते हैं जो सभी पर एक समान रुप से प्रभाव भी डालते हैं.
श्री पंचमी - क्यों माना जाता है शुभ मुहूर्त समय
श्री पंचमी के समय को बहुत ही शुभ माना जाता है. इस दिन पर कई प्रकार के मांगलिक कार्यों को किया जाता है. बहुत सी नई चीजों की शुरुआत करने के लिए इस दिन को विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन को विवाह जैसे पवित्र बंधन में बंधने के लिए भी शुभ माना गया है. विवाह कार्य इस दिन जरुर होते हैं. माना जाता है की इस दिन विवाह होने पर वैवाहिक जीवन मजबूत होता है और उम्र भर एक दूसरे का साथ निभाते हैं.
श्री पंचमी के दिन से कई मान्यताएं जुडी हुई हैं. इस दिन को रीती-रिवाजों के लिए उत्तम माना गया है. मान्यता है कि ब्रम्हांड की रचना इसी दिन हुई थी. देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ था. इसीलिए देवी सरस्वती की पूजा का विधान है. इस दिन गुरु से ज्ञान लिया जाता है. शिक्षा ग्रहण करने का शुभारम्भ भी किया जाता है. पुस्तकों और वाद्य यंत्रों को पूजा की जाती है.
श्री पंचमी के दिन बच्चों को पहली बार कलम पकड़ाई जाती है. विद्वानों का मानना है की इस दिन बच्चों की जीभ पर शहद से ॐ बनाना चाहिए. इससे बच्चा बुद्धिमान बनता है. अन्नप्राशन की परंपरा के लिए श्री पंचमी का दिन बहुत शुभ होता है. इनके साथ-साथ गृह प्रवेश और नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को श्रेष्ठ माना गया है.
श्री पंचमी - विभिन्न स्थानों ऎसे मनाई जाती है
श्री पंचमी का उत्सव भारत वर्ष के प्रत्येक स्थानों पर अलग-अलग रुपों में मनाया जाता है. हर स्थान में अपनी अलग-अलग परम्पराएं और मान्यताएं मौजूद हैं. यह सभी कुछ इस प्रकार से श्री पंचमी का पर्व मनाते हैं.
मध्य प्रदेश और राजस्थान में इस दिन को शिक्षण संस्थानों को खास तौर पर मनाया जाता है. इस दिन पीले रंग का उपयोग सबसे अधिक होता है. पहनावा हो या फिर खान-पान सभी में इस रंग की मौजूदगी दिखाई देती है. विधि विधान के साथ देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. संस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. यह समय मेल-मिलाप और खुशियों को बांटने का समय होता है.
उत्तर भारत क्षेत्र में श्री पंचमी के दिन घरों को साफ सुथरा किया जाता है. सजाया जाता है, पीले वस्त्र धारण किए जाते हैं. केसर-हल्दी का टिका लगाया जाता है. धूमधाम से मनाया जाता है और इस दिन मिठाई के रूप में केसरिया खीर को घरों में भोग स्वरुप बनाया जाता है. बूंदी व बेसन के लड्डू, मालपुए का प्रसाद सभी को बांटा जाता है. देवी सरस्वती का पूजन होता है.
बंगाल में श्री पंचमी का पर्व सरस्वती पूजा के रुप में धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भी दुर्गा पूजा की तरह ही पंडाल सजाकर देवी सरस्वती की पूजा की जाती है. देवी सरस्वती को प्रसाद के रूप में लड्डू, खिचड़ी, राजभोग इत्यादि को बनाया जाता है. पंजाब और हरियाणा क्षेत्र में इस दिन को बसंत पंचमी के रुप में मानाया जाता है. इस दिन पर पतंगे भी उड़ाई जाती है. सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है.
श्री पंचमी पर कैसे करें पूजा
<p.श्री पंचमी="" पूजन="" में="" देवी="" सरस्वती="" का="" विशेष="" रुप="" से="" होता="" है.="" के="" लिए="" पूजा="" की="" सामग्री="" को="" एक="" थाल="" एकत्रित="" कर="" लेना="" चाहिए.="" पिले="" फूल,="" फल,="" मिठाई,="" पंचामृत,="" मेवा,="" गुड,="" इलाइची,="" पान="" पत्ते,="" कसेर,="" वस्त्र,="" अबीर,="" चन्दन,="" अक्षत,="" धुप-अगरबत्ती,="" घी="" दीपक="" उपयोग="" किया="" जाता="" स्थान="" पर="" लाल="" या="" पीले="" रंग="" आसन="" बिछा="" प्रतिमा="" स्थापित="" करना="" वस्त्र="" अर्पित="" करने="" श्रृंगार="" चढ़ानी="" कुमकुम="" और="" अक्षत="" <="" p="">
पान के पत्ते पर हल्दी लगाकर पान के पत्ते को माता के पास रखना चाहिएदेवी सरस्वती को को पुष्प अर्पित करने चाहिए. पंचामृत अर्पित करना चाहिए, दीप जला कर धुप-अगरबत्ती से पूजा करनी चाहिए. माता सरस्वती के मंत्र जाप और आरती के बाद हाथ जोड़कर माता सरस्वती से उज्जवल भविष्य की कामना का आशीर्वाद मांगना चाहिए. घर में पढने वाले बच्चों की किताबों और पैन को भी पूजन स्थल पर रखा जा सकता है.
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