मार्गशीर्ष माह में क्यों की जाती है श्री पंचमी पूजा
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि श्री पंचमी का पर्व मनाया जाता है. पंचमी तिथि के दिन लक्ष्मी जी को "श्री" रुप में पूजा जाता है. देवी लक्ष्मी को "श्री"का स्वरुप ही माना गया है. दोनों का स्वरुप एक ही है ऎसे में ये दिन लक्ष्मी के पूजन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. श्री पंचमी के दिन देवी लक्ष्मी का पूजन करने से सभी प्रकार का सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है.
श्री पंचमी का पौराणिक महत्व
देवी लक्ष्मी को “श्री संपत्ति” का स्वरुप माना गया है. इस पर्व को लक्ष्मी के भिन्न भिन्न रुपों का पूजन होता है. यह बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है. श्री पंचमी पर्व सभी के समक्ष शुभ और संपन्न आदर्श की स्थापना करता है. सभी के लिए सदैव के लिए पूजनिय बनता है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्री पंचमी का संबंध सरस्वती से भी है और लक्ष्मी जी से भी है. पंचमी तिथि को "श्री" के पृथ्वी पर आने के समय से जोड़ा गया है. लक्ष्मी पंचमी के जन्म समय को समझने की भी आवश्यकता होती है. लक्ष्मी जन्म से संबंधित अनेक कथाएं मिलती हैं. वहीं जब हम लोक जीवन से जुड़ी कथाओं को देखें तो यहां भी हमें उनकी जन्म कथा के विभिन्न रुप दिखाई देते हैं. वहीं इस दिन को लक्ष्मी-विष्णु विवाह से भी जोड़ कर देखा जाता है.
श्री पंचमी पूजन कब और क्यों किया जाता है.
लक्ष्मी पंचमी पर्व को इनके श्री विष्णु विवाह से जोड़ा गया है. यह दिवस अत्यंत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष इस दिन देवी देवी लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है. इस उपलक्ष पर मंदिरों में भजन एवं कीर्तन होते हैं.
श्री पंचमी पूजा विधि
श्री पंचमी के दिन कैसे करें पूजन और किन चीजों को भोग के लिए उपयोग में लाएं, आईये जानते हैं इस दिन के व्रत एवं पूजन की विधि विस्तार से -
- श्री पंचमी के दिन प्रात:काल समय स्नान आदि कार्यों से निवृत्त होकर लक्ष्मी जी के नाम का स्मरण करना चाहिए.
- देवी लक्ष्मी के साथ श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है.
- अक्षत(चावल), कुमकुम, धूपबत्ती, घी का दीपक जलाएं व अष्टगंध से पूजा करनी चाहिए.
- देवी लक्ष्मी को लाल और सफेद रंग के पुष्प भेंट करने चाहिए.
- लक्ष्मी जी की आरती करनी चाहिए "ऊँ महालक्ष्मयै नमः" मंत्र का जप करना चाहिए.
- प्रसाद में मिष्ठान एवं खीर, नारियल, पंचामृत इत्यादि का भोग लगाना चाहिए.
- श्री पंचमी पूजन के बाद भगवान के भोग को प्रसाद रुप में सभी को बांटना चाहिए व परिवार समेत ग्रहण करना चाहिए.
लाभ की वृद्धि करता है श्री पंचमी पूजन
श्री पंचमी पूजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. आर्थिक सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. सभी स्त्रियों के लिए एवं सुहागिन स्त्रियों के लिए यह दिन विशेष रुप से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. श्री पंचमी का पूजन एवं व्रत करने से स्त्री को अच्छे वर की प्राप्ति होती है. सुहागिन स्त्रियों द्वारा इस दिन व्रत पूजन करने से उनके पति की आयु लंबी होती है और वह सदा सुहागिन होने का आशीर्वाद भी पाती हैं.
श्री पंचमी का पूजन करने से संतान सुख एवं दांपत्य जीवन के सुख की प्राप्ति होती है. आर्थिक जीवन में किसी भी प्रकार की परेशानियां आ रही हैं, तो इस दिन व्रत का संकल्प लेकर पूजा करने से सभी परेशानियां का अंत होता है. श्रीपंचमी का पूजन एवं व्रत जीवन के कष्टों को दूर करने में अत्यंत ही प्रभावशाली उपाय बनता है.
जानें श्री पंचमी व्रत की कथा
धन, वैभव और सुख-समृद्धि को देने वाली देवी का स्थान माता लक्ष्मी को प्राप्त है. लक्ष्मी जी विष्णुप्रिया हैं. वह श्री विष्णु को अत्यंत प्रिय हैं. मान्यता है कि मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है. इन्हें प्रसन्न करने के लिये इस दिन पूजा के साथ-साथ दिन भर व्रत भी रखा जाता है. इसी कारण इस पंचमी को लक्ष्मी पंचमी व श्री पंचमी कहा जाता है.
श्री पंचमी मां सरस्वती की उपासना के दिन बसंत पंचमी को भी कहा जाता है. लेकिन देवी लक्ष्मी का भी एक नाम श्री माना जाता है. इस कारण लक्ष्मी पंचमी को श्री पंचमी भी कहा गया है. परिवार में सुख-समृद्धि व धन प्राप्ति की कामना के लिये मां लक्ष्मी की उपासना का यह पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण होता है.
पौराणिक ग्रंथों में जो कथा मिलती है उसके अनुसार मां लक्ष्मी किसी कारण से देवी लक्ष्मी देवताओं से अलग हो जाति है. देवों को मिले श्राप और उनके द्वारा किए गए व्यवहार से देव “श्री” हीन हो जाते हैं. नाराज हुई “श्री” को पाने के लिए सभी देव माता लक्ष्मी की उपासना में लीन हो जाते हैं. क्षीर सागर में जा कर देवी लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए देवताओं ने कठिन तप किया. लक्ष्मी को पुन: प्रसन्न करने के लिये कठोर तपस्या और विशेष विधि विधान से देवी के लिए अनुष्ठान किया.
मां लक्ष्मी की उपासना द्वारा देवी लक्ष्मी जी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार किया. कई स्थानों पर इस कथा को अमृत मंथन कथा में भी दर्शाया गया है. जहां लक्ष्मी समुद्र से निकती हैं ओर श्री विष्णु के साथ उनका विवाह होता है. यही कारण था कि इस तिथि को श्री पंचमी के व्रत और त्यौहार के रूप में मनाया जाता रहा है.
श्री पंचमी पूजन महत्व
श्री पंचमी पूजन करने पर जीवन में सदैव सुख संपत्ति कि प्राप्ति होती है. देवी को प्रणाम करते हुए मंदिर में उनके समक्ष दीप प्रज्जवलित करना चाहिए. व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए. पूजा में लाल रंग के वस्त्र एवं फूलों का उपयोग करना अधिक शुभ होता है. अगर लाल रंग नही हो तो जो भी आपके सामर्थ्य में है उस अनुरूप भी पूजा की जा सकती है. देवी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए. भक्ति और श्रद्धा से किया गया पूजन जीवन में भौतिक सुखों की कमी नहीं होने देता है.
विधि विधान के साथ श्री पंचमी का पूजन और व्रत करने वाले को जीवन में कभी भी धन की कमी परेशान नहीं करती है. उसके जीवन में कर्ज की स्थिति नहीं आती है. कन्या या स्त्री यदि इस व्रत को विधान पूर्वक करती है वह सौभाग्य, दांपत्य सुख, संतान और धन से सम्पन्न हो जाती है. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार इस दिन मां की पूजा करने व व्रत रखने से व्रती को मनोवांछित फल प्राप्त होता है.