अन्नकूट पर्व 2024 : जाने क्यों मनाया जाता है अन्नकूट
अन्नकूट पर्व अपने नाम के अर्थ को सिद्ध करता है. इस दिन अन्न का पूजन होता है और भगवान को ढेर सारे पकवानों का भोग लगाया जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन अन्नकूट का त्यौहार मनाया जाता है. यह पर्व एक सांस्कृतिक धरोहर भी है. यह पर्व पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है. अन्नकूट पूजा के दिन भगवान श्री कृष्ण को 56 भोग लगाए जाने का भी विधान है. इस दिन बेसन से बनी कढ़ी, पत्ते वाली सब्जियों से बनी सब्जी को मुख्य रुप से बनाया जाता है.
अन्नकूट पूजा समय
अन्नकूट इस वर्ष 2 नवंबर 2024 को शनिवार के दिन मनाया जाएगा.
प्रतिपदा तिथि का प्रारम्भ = 01 नवंबर 2024 को 18:17 पर होगा.
प्रतिपदा तिथि समाप्त = 02 नवंबर 2024 को 20:22 तक.
अन्नकूट त्यौहार का कृष्ण के जन्म स्थान से जुड़ा है. मथुरा गोवरधन क्षेत्र पर इस त्यौहार को बहुत ही बड़े स्तर पर मनाया जाता है. द्वापर युग से संबंधित इस पर्व की महत्वता आज भी वैसे ही मौजूद है. कई जगह इस पर्व को गोवर्धन पर्व के नाम से भी जाना जाता है.
अन्नकूट - प्रकृति के प्रति सम्मान का दिन
आंचलिक परंपरा के साथ संबंधित इस पर्व में प्रकृति के साथ मनुष्य का एक अभिन्न सम्बन्ध दिखाई देता है. इस संबंध के द्वारा प्रकृति में मौजूद जो कुछ भी है, वह मनुष्य के लिए कितना आवश्यक है बस इसी की झलक हमें इस पर्व में दिखाई देती है.
इस पर्व की अपनी मान्यताएं हैं. लोक जन जीवन से संबंधित अनेकों कथाएं हैं . अन्नकूट पूजा में कृषि एवं अन्न का सम्मान होता है. अनाज को पूजनीय स्थान दिया गया है. अनाज ही प्राणों की रक्षा के लिए आवश्यक है. मानव के विकास में अन्न की महत्ता सर्वदा ही रही है.
इस दिन गायों की पूजा भी की जाती है. इसके साथ ही दूधारु पशुओं का पूजन होता है उनका सम्मान किया जाता है. लोक जीवन का आधार ही कृषी और पशु पक्षी हैं. इनके बिना लोक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. इन सभी के द्वारा भौतिक सुखों की प्राप्ति संभव हो पाती है. गौ अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं. बैल खेतों में अनाज उगाता है. इस तरह यह सभी कुछ पूजनीय और आदरणीय हैं. प्रकृति के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन अन्नकूट व गोर्वधन पूजा की जाती है.
अन्नकूट पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा के सम्बन्ध में एक अत्यंत प्राचीन कथा आज भी बहुत अधिक सुनी और सुनाई जाती है. यह कथा भगवान श्री कृष्ण के बचपन से संबंधित है. कथा इस प्रकार है.
कहते हैं की भगवान श्री कृष्ण नें जब देखा की देवराज इन्द्र को अपनी शक्तियों का बहुत अभिमान हो गया है. तब उस समय इन्द्र के अभिमान को समाप्त करने के लिए भगवान ने एक लीला रची. उस समय प्रत्येक वर्ष इंद्र देव का पूजन होता था. अपनी पूजा और जय जयकार को देख कर इंद्र अपने को सर्वप्रथम पूजनीय समझने लगते हैं और उन्हें लगता है की उनके बिना जीवन नहीं चल सकता है. भगवान श्री कृष्ण इंद्र की भावना को समझ जाते हैं.
ऎसे में एक दिन जब इंद्र का पूजन होता है, उस दिन ढेर सारे पकवान बन रहे होते हैं चारों ओर सजावट हो रही होती है. सभी गांव वाले इंद्र के पूजन के लिए विभिन्न प्रकार की तैयारियां कर रहे होते हैं. तब बाल स्वरुप भगवान कृष्ण अपनी माता से पुछते हैं, कि आज इतना सभी कुछ क्यों किया जा रहा है. तब माता यशोदा उन्हें बताती हैं की आज सभी बृजवासी जो भी उत्तम पकवान बना रहे हैं. पूजा की तैयारियां कर रहे हैं, वो सभी कुछ देवताओं के राजा इंद्र के लिए हो रही हैं.
कृष्ण माता की बात पर फिर उनसे कहते हैं की ये हम ऎसा क्यों कर रहे हैं. तो माता कह्ती हैं कि इंद्र से हमें वर्षा प्राप्त होती है और उससे ही अन्न उत्पन्न हो पाता है. इस अन्न से हमारी गायों को खाना मिलता है और जिससे हमें दूध मिलता है. इसलिए हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी करते हैं. इस पर भगवान श्री कृष्ण बोले की हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. हमारी गाये तो उस पर्वत पर ही चरती हैं, तभी तो खाना खा कर हमें दूध और माखन देती हैं. इसलिए आज हम सभी गोर्वधन पर्वत का ही पूजन करेंगे. इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते हैं. लेकिन गोवर्धन तो सदैव हमारे साथ और पास में रहते हैं.
कृष्ण की बात सुन कर सभी गांव वाले इंद्र की पूजा के बदले गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए तैयार हो जाते हैं. देवराज इंद्र को जब इस बात का पता चलता है, कि गांव वाले उसकी पूजा न करके पर्वत का पूजन करने वाले हैं. तो वह इसे अपना अपमान समझते हैं. वह गांव वालों को सबक सिखाने के लिए उस दिन मूसलाधार वर्षा करना शुरू कर देते हैं. इतनी भयानक वर्षा होती है कि सभी ओर पानी ही पानी हो जाता है. गांव डूबने लगता है. प्रलय समान बारिश देखकर सभी बृजवासी भगवान कृष्ण को डांटने लगते हैं. तब श्री कृष्ण गोवरधन पर्वत को अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा उठा लेते हैं.
वह सभी बृजवासियों को उस पर्वत के नीचे आने को कहते हैं. सभी लोग अपनी गायों और पशुओं को लेकर उस पर्वत के नीचे शरण ले लेते हैं. मुसलाधार वर्ष होती रहती है. इंद्र के अभिमान को तोड़ने के लिए कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से वर्षा की गति को नियत्रित किया और शेषनाग ने मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोक दिया.
लगातार सात दिनों तक बारीश होती रहती है. तब इंद्र को अपनी भूल का ज्ञान होता है. वह ब्रह्मा जी के पास जाते हैं. ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहते हैं कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के ही अवतार हैं. यह सुनकर देवराज इन्द्र को अपने अभिमान पर लज्जा आती है. वह बारीश रोक देते हैं और श्री कृष्ण से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगते हैं. उस दिन से ही गांव वाले गोवरधन पर्वत का पूजन करने लगे ओर अन्नकूट का पर्व मनाने लगे.