महानवमी पर करें शक्ति पूजन
माँ दुर्गा की पूजा में प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व होता है. इसमें अत्यंत ही महत्वपूर्ण समय नवरात्रि का होता है. नव रात्रि अर्थात देवी पूजा के वो नौ दिन, जब हर एक दिन एक अलग रुप में होता है. साधक के लिए यह सभी नौ दिन उसकी उपासना और साधना को हर पल एक नए आयाम देते जाते हैं. दुर्गा पूजा में नवीं रात्रि के दिन माता के सिद्धि दात्री रुप का पूजन होता है. यह माता की नवीं शक्ति के रुप में संसार का कल्याण करती है. शक्ति को अंतिम चरण में पहुंचाने का भी करती है.
मां दुर्गा जी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं. अपने नाम के अनुरुप देवी सिद्धियों को देने वाली है. दुर्गा पूजा के नौवें दिन की पूजा में विधि-विधान और पूर्ण शुचिता के साथ साधना करनी होती है. तभी भक्त को देवी के आशीर्वाद स्वरुप सिद्धियों की प्राप्ति हो सकती है. माता सिद्धिदात्री के उपासक के लिए कुछ भी अधुरा नही रहता है. साधक को ब्रह्मांड के अनसुलझे रहस्यों का ज्ञान हो पाता है. संकटों और रुकावटों से विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है.
मार्कण्डेय पुराण के अनुसार आठ सिद्धियों के बारे में बताया गया है. इन सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व नाम की सिद्धियां को बताया गया है. इसके अलावा कुछ अन्य जगह पर जैसे की ब्रह्मवैवर्तपुराण में इन सिद्धियों की संख्या और अधिक भी बताई गई हैं.
सिद्धिदात्री मंत्र
माता सिद्धिदात्री के पजन में मंत्र का होना अत्यंत ही उपयोगी होता है. माता के मंत्र का प्रभाव साधक को उस शक्ति के ओर समीप ले जाता है जिसकी तलाश उसे इन नौ दिनों में होती है. माता की पूजा में मंत्र का जाप जितना संभव हो सके करना चाहिए. सिद्धिदात्री मंत्र इस प्रकार है :-
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
सिद्धिदात्री कथा
मां सिद्धिदात्री का आगमन होने पर भक्त को चारों ओर से शुभता और सुख प्राप्त होता है. माँ की भक्ति साधक को सभी सिद्धियां देती है. अगर हम देवी पुराण के अनुसार समझें तो भगवान शिव ने भी देवी की कृपा से ही इन सभी सिद्धियों को पाया था. मां की शक्ति ही भगवान शिव के भीतर अर्द्धनारीश्वर के रुप में विध्यमान है. ऎसे में जो माता सिद्धिदात्री को प्रसन्न करता है वह प्रकृति के सभी रहस्यों को जान सकता है.
मां सिद्धिदात्री का रुप कैसा है
मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली सिंह पर सवार दुष्टों का संहार करती हैं. भक्तों को अभय का वरदान देती हैं. माता को कमल पुष्प अत्यंत प्रिय होते हैं. माँ इन्हीं कमल पर बैठी होती हैं. देवी के हाथों में कमलपुष्प होते हैं. अगर देवी कि पूजा में कमल के फूलों द्वारा अनुष्ठान किया जाए और निरंतर पुष्पों से पूजन हो तो मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त होती है. माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप सौम्य है, माँ की चार भुजाएं हैं, जिन में माता ने चक्र, गदा, शंख और कमल पुष्प धारण किए हुए हैं. प्रसन्न होने पर माँ सिद्धिदात्री सम्पूर्ण जगत की रिद्धि सिद्धि अपने भक्तों को प्रदान करती हैं.
देवी सिद्धिदात्री की कृपा से दुख दूर होते हैं. व्यक्ति समस्त सारे सुखों को भोगने का सुख भी पाता है. सिद्धिदात्री मां की पूजा और मंत्र जाप से कामनाएं पूर्ण हो जाती है.
मां के आशीर्वाद को पाने के लिए निरंतर नियम और निष्ठ से उपासना करनी चाहिए. देवी सिद्धिदात्री का स्मरण, ध्यान, पूजन द्वारा परम शांति प्राप्त होती है. भक्त को चाहिए की वह अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुरुप जप, तप, पूजा-अर्चना करनी चाहिए. मन की शुद्ध एवं सात्विक भावना ही सिद्धि प्राप्त कराने में सहायक होती है.
महानवमी पूजन कैसे करें?
नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा में शुद्धि का अत्यंत ध्यान रखने की जरुरत होती है. इनकी पूजा और मंत्र के जाप से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवमी के दिन पूजा का आरंभ प्रात:काल में स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद करना चाहिए. साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. मां सिद्धिदात्री की पूजा में कमल, गुलाब पुष्प, अक्षत्, सिंदूर, धूप-दीप, सुगंध, फल एवं मेवे इत्यादि रखने चाहिए.
माता को भोग भिन्न-भिन्न प्रकार के मिष्ठान समर्पित करने चाहिए. तिल का उपयोग भी माता के पूजन में किया जाता है. माता को तिल से बने लड्डू भोग स्वरुप अर्पित करने चाहिए. माता की पूजा में हवन कार्य भी करना चाहिए और 108 देवी मंत्र के जाप द्वारा हवन में आहुति देनी चाहिए.
सिद्धियों की प्राप्ति के लिए करें सिद्धिदात्री पूजन
सिद्धियों से अर्थ ऎसी साधना से है जो आध्यात्मिक स्तर में उच्च स्थिति को दर्शाती है. आत्मिक शक्तियों का भंडार होती है. यह सिद्धियां देवी के पूजन एवं अथक संघर्ष से भरी साधना द्वारा ही संभव हो पाती है. शास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियां वर्णित हैं जिन मे आठ सिद्धियां अधिक प्रसिद्ध हैं यह आठ सिद्धियां इस प्रकार हैं :-
अणिमा सिद्धि -
अणिमा में शरीर को आकार में एकदम छोटा बनाया जा सकता है. वस्तु को एक अणु के जितना छोटा कर लेने की क्षमता इस सिद्धि में होती है इसलिए यह अणिमा कहलाती है.
महिमा सिद्धि -
देह अर्थात शरीर का बहुत बड़े आकार का बना लेना महिमा नाम की शक्ति से संभव हो पाता है. वस्तु का अत्यंत विशाल रुप में होना महिमा है.
गरिमा सिद्धि -
देह को अत्यन्त भारी-भरकम बना लेना ही गरिमा सिद्धि कहलाता है.
लघिमा -
लघिमा सिद्धि में शरीर इतना हल्का हो जाता है की उसमें कुछ भी भार का अनुभव नहीं होता है.
प्राप्ति सिद्धि -
इस सिद्ध में व्यक्ति के पास ऎसी शक्ति होती है कि वह किसी भी प्रकार की रुकावट के बिना कहीं भी जा सकता है.
प्राकाम्य सिद्धि -
इस सिद्धि की शक्ति से व्यक्ति की कोई भी इच्छा पूरी हो सकती है. जिस भी वस्तु की उसे चाहत हो वह उसे प्राप्त हो जाती है. प्राकाम्य सिद्धि से किसी व्यक्ति को अपने अनुसार नियंत्रित कर लेने कि क्षमता भी होती है.
इश्त्व सिद्धि -
यह सिद्धि ऎसी होती है जिसमें व्यक्ति किसी भी वस्तु को अपने नियंत्रण में कर सकता है.
वशित्व सिद्धि -
वशित्व सिद्धि से किसी भी व्यक्ति को अपना बनाकर रख सकने की क्षमता होती है. जिसे चाहे वश में किया जा सक्ता है और अपने अनुसार उससे काम करवा सकते हैं.