चंद नवमी 2024
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को श्री चंद्र नवमी के रुप में या जाता है. यह उत्सव उदासीन संप्रदाय के प्रवर्तक चंद्र जी के लिए समर्पित है. इस वर्ष 12 सितंबर 2024 को चंद्र नवमी मनाई जाएगी.
भारतवर्ष की तपोभूमि में समय-समय पर धार्मिक विचारों का जन सैलाब सदैव ही उमड़ता रहा है. यह किसी एक व्यक्ति की बात हो या फिर किसी जन समूह की. सभी ने धार्मिक विचारधारा में अपना-अपना विशेष योगदान भी दिया और जिसकी अमिट छाप किसी न किसी रुप में आज भी देखने को मिलती है.
इस धार्मिक वैचारिक मार्ग में एक नाम श्रीचंद जी का भी आता है. श्रीचंद जी ने अपने विचारों ओर कार्यों द्वारा जो भी सामाज कल्याण के कार्य किए वह सभी आज भी एक आर्दश के रुप में स्थापित हैं. श्री चंद्र जी द्वारा धर्म के क्षेत्र में जो भी अनुसंधान और नए विचार आए वह सभी आज भी सभी के पथ प्रदर्शक बने हुए हैं.
कौन थे बाबा श्री चंद जी
चन्द जी का समय काल 1494–1643 के मध्य का माना गया है. श्री चंद्र जी का जन्म सिखों के गुरु नानक देव जी के घर हुआ था. श्री चंद्र जी ने पिता की ही भांति अपने कार्यों द्वारा लोक कल्याण की भावना को सर्वोपरी दर्शाया.
श्री चंद्र बचपन से ही साधना और आध्यात्मिक यात्रा में निकल पड़े थे. जिस अवस्था में बच्चे खेलकूद में व्यस्त रहते हैं, उस समय बाबा श्रीचंद जी एकांत में उपासना और समाधि में लीन रहते थे. उन्हें वन में एकांत समय बहुत भाता था जहां वह अपनी चेतना और ज्ञान का विकास करने में लगे रहते थे.
युवा होने पर वह देश भ्रमण को निकल पड़े. इस समय उन्हेंने देश के अनेक क्षेत्रों की यात्राएं की साथ ही अनेक साधु-संतों से मिले और उनके साथ अपने ज्ञान को बांटा.
श्री चंद्र जी जहां भी गए अपनी शब्द वाणी और धार्मिक चेतना द्वारा सभी को आश्चर्य से भर दिया. अपने प्रयासों द्वारा दुखियों के कष्टों का निवारण भी किया. उनके कार्यों द्वारा उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैलती चली जाती है. उनसे मिलने के लिए सभी लोग बहुत व्याकुल से रहते थे. उनके दर्शनों की अभिलाषा करने में बहुत से हिन्दू राजाओं के साथ ही मुगल बादशाह भी शामिल रहे.
बाबा श्री चन्द से जुड़ी कथाएं
श्री चन्द जी से संबंधित कुछ कथाएं भी प्राप्त होती हैं जो उनके चमत्कारों ओर उनकी महत्ता को दर्शाती हैं. एक कथा अनुसार जब श्री चन्द जी देश भ्रमण के दौरान कश्मीर जाते हैं तो बाबा अपनी मस्ती में धूप में बैठे हुए थे. उसी समय एक जमींदार ने यह देखकर की ये कैसा बाबा खुद तो धूप के मजे ले रहा है. जब बाबा को अपनी ही फिक्र है तो वह दूसरों का क्या भला कर पाएगा और क्या छाया देगा.
श्री चंद जी उसके मन की बात को समझ गए और उसी समय उन्होंने कुंड से जलती हुई लकड़ी निकालकर धरती में गाड़ देते हैं. पल भर में वह लकड़ी विशाल चिनार के वृक्ष में बदल जाती है. यह चमत्कार देख कर जमींदार बाबा श्री चन्द जी के पैरों में गिर पड़ता है और अपने अज्ञान की माफी मांगता है. माना जाता है कि तब से वह वृक्ष चंद चिनार के नाम से आज भी है.
एक अन्य कथा अनुसार -
कहा जाता है कि रावी नदी के किनारे चम्बा शहर के राजा राज्य चलता था. उस राजा के आदेश बिना कोई भी नाविक किसी संत-महात्मा को नदी पार नहीं करा सकता था. एक बार बहां श्री चंद जी आते हैं और नाविक से नदी पार करने की इच्छा जताते हैं. लेकिन नाविक उन्हें राजा के आदेश की बात बताते हुए नाव पार कराने से मनअ कर देते हैं ओर राजा से आदेश लेकर आने को कहते हैं. इस पर श्री चंद जी ने वहां पड़ी एक बड़ी शिला को नदी में ढकेल कर उस पर बैठकर नदी पार कर लेते हैं.
नाविक यह दृश्य देख राजा के पास जा कर उन्हें बाबा श्री चंद जी के बारे में बताते हैं. राजा को पता लगा तो वह दौड़ कर और बाबा के चरणों में गिर जाता है और उनका सेवक बन जाता है. श्री-चंद ने उसे अपना कर उसे अहंकार का त्याग करने को कहा. राज को धर्म का उपदेश देकर उसके अज्ञान को दूर किया. बाबा के आशीर्वाद से राजअ को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. कहा जाता है की जिस शिला को बबा चंद जी ने अपनी नाव के रुप में उपयोग किया था वह आज भी चम्बा में स्थापित है.
उदासीन(उदासी) संप्रदाय के संस्थापक
श्री चंद्र जी ने उदासीन संप्रदाय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. उदासीन संप्रदाय सिख-साधुओं का एक महत्वपूर्ण सम्प्रदाय भी रहा है. उनके इस संप्रदाय में बहुत सी शिक्षाएँ सिख पंथ से लीं गयी थीं.श्री चंद्र जी ने मानवता के विचार को सदैव ऊपर रखा. वह एक प्रकार की अहिंसात्मक प्रवृत्ति की ओर बहुत अधिक झुकाव भी रखते थे. श्री चंद्र जी की बातों में सदैव ही भोलापन ओर मासूमियत की एक अनोखी छटा थी. वह सभी के मध्य प्रेम और सदभाव की भावना को स्थान देने की बात करते रहे.
कुछ मामलों में उनके विचारों को जैन धर्म से प्रभावित भी मान लिया गया. उनके विचारों पर सभी लोगों की सहमति इस कारण भी नही बन पाई क्योंकि अहिंसात्मक प्रवृत्ति के कारण उन्हें अकर्मण्य भी कहा गया. परंतु अनेक लोगों द्वारा उनके ज्ञान की उस गहराई को समझा गया जो सभी के जीवन को प्रकाशित और शुभ बनाने के समर्थन में था.
बाबा श्री चंद जी ने अपने विचारों में यह बात मुख्य रुप से कही की हमें हर सुख-दुख को समान भाव से ही देखना चाहिए. उसमें स्वयं को जोड़ना नहीं चाहिए. इस के प्रति उदासीन भाव रखने से मन को कष्ट नहीं होता है. श्री चंद जी ने सिखों के छठे गुरु श्री हरगोविंद जी के बड़े पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को अपना उत्तराधिकारी बनाकर स्वयं को समाधी में लीन कर लिया था.
उदासीन संप्रदाय शिक्षाएं
उदासीन संप्रदाय के मत में अनेक बातें पता चलती हैं. इनके विचारों में कई बातों को अलग-अलग स्थानों में बांटा गया है. इनकी चार प्रधान शाखाएं निकलती हैं. इस संप्रदाय को मानने वाले लोग सनातन धर्म के प्रति आस्था रखते हैं. वैदिक काल से चली आ रही पांच तत्वों की महत्ता को भी ऊपर रखते हैं. जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु, आकाश का पूजन करते हैं.
इसकी एक शाखा फूल साहिब वाली बहादुरपुर की शाखा बनी है. इसकी दूसरी शाखा बाबा हसन की आनन्दपुर के निकटवर्ती चरनकौल की शाखा मानी गई है. इसकी तीसरी शाखा अलमस्त साहब की पुरी नामक नैनीताल की शाखा है. इसकी चौथी शाखा गोविंद साहब की शिकारपुर वाली शाखा हैं यह सभी शाखाएं या कहें विचारधाराएं एक-दूसरी से अलग भी दिखाई भी देती हैं. सभी शाखाएं मे एक दूसरे से स्वतंत्र भी जान पड़ती हैं.