चैत्र पूर्णिमा 2024 : शुभ संयोग, जानें इसकी महिमा और पूजा कथा विधि की विस्तारपूर्वक
चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को चैत्र पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. चैत्र की पूर्णिमा को चैती पूर्णिमा, चैत पूर्णिमा, चैती पूनम आदि नामों से पुकारा जाता है. इस वर्ष 23 अप्रैल 2024 को चैत्र पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाएगा. चैत्र पूर्णिमा का दिन हिन्दु पंचांग में एक बहुत ही खास दिन होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और धर्म स्थलों में जाकर दान पुण्य एवं पूजा पाठ करने का बहुत ही शुभ एवं अमोघ फलदायक प्रभाव माना जाता है.
चैत्र पूर्णिमा: हनुमान जन्मोत्सव
चैत्र पूर्णिमा के शुभ दिन में सभी ओर माहौल भक्तिमय सा होता है. दक्षिण भारत में इस दिन को भगवान हनुमान जी के जन्म उत्सव के रुप में मनाते हैं. हनुमान जयंति कि तिथि के संबंध में दो मत बहुत अधिक प्रचलित हैं एक मत अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन हनुमा जयंती मनाई जाती है और दूसरे मत अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है.
चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जयंती का विचार दक्षिण भारत में अधिक मान्य रहा है. जबकि उत्तर भारत में कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमान दिवस की मान्यता रही है. दोनों ही मतों के अनुसार श्री हनुमान भगवान जी का जन्म महानिशा काल समय हुआ था. इसलिए ये दोनों ही मत प्रचलित एवं मान्य रहे हैं.
चैत्र पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण कथा पूजन
चैत्र पूर्णिमा के दिन भगवान श्री सत्यनारायण जी का पूजन एवं कथा करने से बहुत शुभ एवं सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं. इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का पठन-पाठन होता है. सत्यनारायण कथा, हवन एवं यज्ञ किया जाता है.
चैत्र पूर्णिमा : चंद्रमा का पूजन
चैत्र पूर्णिमा के दिन चंद्रमा के पूजन का विशेष महत्व होता है. पूर्णिमा तिथि के दौरान चंद्रमा अपनी संपूर्ण कलाओं से युक्त होता है. धार्मिक मान्यताओं एवं शास्त्रों में पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्रमा का पूजन करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत तुल्य रोशनी पृथ्वी पर पहुंचती है. जिसका सेवन सभी को करना चाहिए. चंद्रमा के प्रकाश की शीतलता इस दिन अत्यधिक होती है. विशेष अनुष्ठानों एवं मंत्र सिद्धि के लिए भी पूर्णिमा तिथि को बहुत ही प्रभावशाली समय माना गया है. मानसिक शांति एवं एकाग्रता की प्राप्ति के लिए पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्रमा का पूजन अवश्य करना चाहिए.
चैत्र पूर्णिमा के दिन रात्रि के समय कच्चे दूध-जल और चीनी का मिश्रण बना कर चंद्र देव को चढ़ाना चाहिए. ॐ सों सोमाय नम: मंत्र का जाप करते हुए जल अर्पित करना चाहिए. इसके साथ ही चंद्रमा की आरती और चंद्रमा के मंत्र जाप करते हुए पूजन करना चाहिए. चंद्रमा की रोशनी में कुछ समय ध्यान लगाना चाहिए. जिन लोगों की कुण्डली में चंद्र ग्रह से संबंधित कोई परेशानी उत्पन्न होती है या जिन बच्चों में एकाग्रता का अभाव है उन्हें इस दिन विशेष रुप से चंद्र देव का पूजन करना चाहिए. खीर का भोग पूर्णिमा के दिन चंद्र देव को अवश्य लगाना चाहिए और खीर को गरीबों में बांटना चाहिये.
चैत्र पूर्णिमा : वैशाख स्नान का आरंभ
चैत्र पूर्णिमा के दिन से ही वैशाख स्नान का आरंभ भी होता है. चैत्र पूर्णिमा के बाद वैशाख माह का आरंभ होता है. अत: पूर्णिमा तिथि के साथ ही वैशाख माह में किए जाने वाले धार्मिक कृत्यों में से एक वैशाख स्नान के शुरुआत का समय होता है. इस दिन से वैशाख माह महात्म्य का आरंभ होता है. पूरे एक माह चलने वाले धार्मिक क्रिया कलापों एवं दान, जप तप इत्यादि को इसी चैत्र पूर्णिमा के दिन से शुरु कर दिया जाता है.
वैशाख माह की जो भी उपयोगिता है और जो भी काम इस दौरान करने चाहिये उन सभी के नियमों की शुरुआत इसी चैत्र पूर्णिमा के दिन से मानी जाती है. चैत्र शुक्ल पूर्णिमा से वैशाख मास स्नान आरंभ हो जाता है. यह पूरे माह तक चलता है. स्कंदपुराण में वैशाख मास के समय स्नान के महत्व को बहुत ही सुंदर रुप् से वर्णित किया गया है. वहीं भगवन श्री कृष्ण स्वयं वैशाख माह की महत्ता को भी बताते हैं. जो भी व्यक्ति चैत्र पूर्णिमा के दिन से पूरे वैशाख मास तक स्नान, व्रत, जप तप एवं दान का कार्य करते हैं उन्हें भगवान विष्णु का कृपा प्राप्त होती है. अंत में व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है.
चैत्र पूर्णिमा में दीप दान का महत्व
चैत्र पूर्णिमा की रात्रि में दीप दान का भी बहुत महत्व रहता है. इस दिन रात में असंख्य दीपों को जला कर पवित्र नदियों में प्रवाहित करने से कामनाएं पूर्ण होती है. घरों एवं मंदिरों में दीपक जलाए जाते हैं.
चैत्र पूर्णिमा के दिन ब्रज में होता है महारास
चैत्र पूर्णिमा के दिन पौराणिक मान्यता यह भी है की इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने ब्रज भूमि पर महारास का आयोजन किया था. भगवान कृष्ण ने राधा जी ओर गोपियों के साथ रास रचाया था, अत: आज भी इस दिन के शुभ अवसर को मथुरा व ब्रज क्षेत्र में उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है. भगवान कृष्ण की ये रासलीला आत्मा का परमात्मा के साथ एकाकार और ब्रह्म की अनुभूति को दर्शाने वाली होती है. सभी कुछ प्रभु में लिन होता है और सभी के स्वरुप में प्र्भु का स्वरुप लक्षित होता है. यही इस रासलीला का सार भी है. मथुरा, वृंदावन बृज आदि सभी प्रमुख स्थानों पर इस दिन विशेष पूजा एवं भोग का आयोजन होता है और भागवत इत्यादि का पाठ भी किया जाता है.
चैत्र पूर्णिमा पर देश भर में धूम धाम से मनाते हैं
चैत्र पूर्णिमा को संपूर्ण भारत वर्ष में उत्साह के साथ मानाया जाता है. इस उत्सव को अनेक चैती पूर्णिमा, हनुमान जी के जन्मोत्सव ओर अनेक रुपों में मनाते हैं. दक्षिण भारत में इस दिन को हनुमाना जी जन्म दिवस के रुप में मनाते हैं. चैत्र पूर्णिमा के दिन श्री सत्यनारायण कथा का आयोजन भी किया जाता है. मंदिरों एवं घरों में लोग भजन एवं किर्तन करते हैं. जगह-जगह पर भंडारों का आयोजन भी होता है.
चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर देश भर में भव्य मेलों का आयोजन भी होता है. पवित्र नदियों एवं घाटों को सजाया जाता है. इस समय पर में कई संस्कृतियों को एकाकार देखने को मिलता है. लाखों लोग पवित्र नदियों तालाबों एवं घाटों पर जाकर स्नान एवं पूजा पाठ इत्यादि कार्य भी करते हैं. ग्रामीण क्षेत्र में इस दिन विशेष रुप से उत्साह देखा जाता है. क्योंकि कृषक वर्ग इस समय पर चना, सरसों, मटर इत्यादि फसलें तैयार कर लेता है और किसान के घर में इससे धन धान्य का आगमन भी होता है. अपनी खेती से संबंधित नई वस्तुओं को भी खरीदने का सामर्थ्य रख पाते हैं इसलिए उनके जीवन शैली में इस दिन का अत्यंत ही महत्व रहता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्रद्धा एव विश्वास से मांगी गईं मुरादें भी पूरी होती हैं.