मत्स्य जयंती: जाने क्यों लिया भगवान विष्णु ने मछली का अवतार
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मत्स्य जयंती के पर्व के रुप में मनाया जाता है. इस वर्ष 11 अप्रैल 2024 को बृहस्पतिवार के दिन मत्स्य जयंती मनाई जाएगी. मत्स्य जयंती पर श्री विष्णु भगवान का अभिषेक होता है, पूजा अर्चना की जाती है और विभिन प्रकार के भोग लगाए जाते हैं.
विष्णु भगवान का मत्स्य अवतार
भगवान विष्णु जी के मुख्य रुपों में से एक अवतार मत्स्य अवतार का है. मत्स्य अवतार भगवान का प्रथम अवतार भी माना जाता है. इस अवतार में श्री विष्णु भगवान ने मछली का रुप धरके सृष्टि को विनाश से बचाया था. भगवान के इस अवतार में जलीय अवतार लेने पर कई प्रकार की कथाएं प्रचलित है. इन कथाओं में सृष्टि के संचालन और प्रकृति के संतुलन की ओर ध्यान जाता है. इसके साथ ही मत्स्य जयंती जिस स्वरुप को दर्शाती है, वह यही है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में मानवता ही परम धर्म कहलाता है. निर्बलों की सुरक्षा करना ही श्रेष्ठ धर्म है.
भगवान का ये अवतार मनुष्य के जीवन की एक नई यात्रा को दर्शाती है. इस दिन को हिन्दूओं में बहुत उत्साह और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. श्री विष्णु भगवान की पूजा होती है और मंदिरों में भागवत इत्यादि कथाओं को पाठ भी होता है. मत्स्य जयंती के उपलक्ष्य पर धर्म स्थलों का दर्शन करने एवं पवित्र नदियों में स्नान की भी विशेष परंपरा रही है.
मत्स्य जयंती पूजा मुहूर्त 2024
मत्स्य जयंती चैत्र माह की तृतीया तिथि के दिन मनाते हैं. सूर्योदय कालीन तृतीया तिथि के दिन व्रत एवं पूजन किया जाना चाहिए.
मत्स्य जयंती की पूजा विधि
- मत्स्य जयंती के दिन प्रात:काल सूर्योदय समय पवित्र नदियों में स्नान करना चाहिए.
- यदि नदियों में स्नान न कर पाएं तो घर पर ही शुद्ध जल से स्नान करें.
- सूर्योदय समय सूर्य को अर्घ्य प्रदान करें.
- श्री विष्णु का ध्यान करना चाहिए और "श्री नमो नारायण" मंत्र का जाप करना चाहिए.
- पूजा स्थान पर चौकी रखें उसे गंगाजल से शुद्ध करके उस पर पीला कपड़ा बिछाएं. इस पर भगवान विष्णु की मत्स्य अवतार की मूर्ति या प्रतिमा स्थापित करें.
- भगवान विष्णु को चंदन केसर का तिलक करना चाहिए.
- फूलों की माला चढ़ानी चाहिए.
- पूजा में पंचामृत, फल, मेवे इत्यादि भगवान को अर्पित करने चाहिए.
- धूप व घी से बना दीपक जलाकर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए.
- मत्स्य अवतार की कथा पढ़नी या सुननी चाहिए.
- भागवत अथवा मत्स्य पुराण का पाठ करना चाहिए.
- भगवान श्री विष्णु की धूप व दीप से आरती उतारनी चाहिए.
- आरती के पश्चात भगवान को भोग लगाना चाहिए. भगवान को भोग स्वरुप खीर, मिठाई इत्यादि का उपयोग करना चाहिए.
- इसके बाद भगवान के प्रसाद को परिवार में सभी को दीजिये और खुद भी खाना चाहिए. मतस्य जयंती के दिन ब्राह्मणों को भोजन करना एवं दान दक्षिणा देना अत्यंत शुभदाक होता है.
मत्स्य जयंती पर करें ये काम
- मत्स्य जयंती के दिन ॐ मत्स्यरूपाय नमः" मंत्र का जाप करना चाहिए.
- आटे से बनी छोती-छोटी गोलियां बना कर इन्हें जलाशय या नदियों में मछली को खिलाने के लिए डालना चाहिए.
- इस दिन सात अनाज दान करने चाहिए.
- मंदिर में हरिवंशपुराण का दान करना चाहिए.
मत्स्य जयंती कथा
मत्स्य जयंती की कथा का उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है. भगवान विष्णु का पहला अवतार मत्स्य अवतार था. पृथ्वी पर जब प्रलय आने में कुछ समय बाकी बचा होता है उस समय भगवान विष्णु, मत्स्य अवतार लेकर पृथ्वी को बचाते हैं.
मत्स्य जयंती की कथा इस प्रकार है - सत्यव्रत मनु भगवान श्री विष्णु के अनन्य भक्त थे. एक दिन सत्यव्रत मनु भगवान के पूजन हेतु नदी पर पूजन और तर्पण करने के लिए जाते हैं और वहां पर, एक छोटी सी मछली उनके कमंडल में आ गिरती है. मनु बहुत ही धर्मपरायण, दयावान एवं परोपकारी राजा थे, वह उस छोटी सी मछली को अपने निवास स्थान में ले आते हैं. पर वह मछली इतनी बड़ी हो जाती है कि उसे उसे तालाब में छोड़ना पड़ता है. जैसे ही उस मछली को तालाब में डाला जाता है, उस मछली का आकार इतना बड़ा हो जाता है की वह उस तालाब में समा नही पाती है. तब राज मनु उस मछली को तालाब से निकालकर नदी में डाल देते हैं, किंतु वह मछली नदी से भी बड़ी हो जाती है. अब मनु उस मछली को समुद्र में डाल देते हैं, तो वह मछली समुद्र से भी बड़ी हो जाती है.
मछली का यह रुप देख कर मनु को आश्चर्य होता है और वह समझ जाते हैं की यह कोई साधारण मछली नही है. तब वह उस मछली को नमस्कार करते हुए कहते हैं की कृप्या वो इस सारे भेद का ज्ञान उसे दे की वह कौन है. उस क्षण मछली में से भगवान विष्णु प्रकट होते हैं और उन्हें कहते हैं की आज से ठीक सात दिन बाद प्रलय आएगी ओर पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी सभी प्राणियों का अंत हो जाएगा. इसलिए मैने ये अवतार लिया है और तुम्हें सृष्टि के संचालन को आगे बढ़ाने के लिए चुना है.
श्री विष्णु, मनु से कहते हैं की तुम एक बहुत बड़ी नाव तैयार करो और सप्त ऋषियों सहित सभी प्राणियों को लेकर उसमें सभी आवश्यक वस्तुएं इकट्ठा करो, जिनके उपयोग से पुन: इस सृष्टि का संचालन हो पाए. मनु, भगवान कहे अनुसार सारी तैयारी कर लेते हैं. ठीक सात दिन बाद प्रलय का समय आता है. भगवान विष्णु, मछली रुप में सत्यव्रत मनु के पास आते हैं और नाव को उन पर बांध लेने को कहते हैं. जब तक प्रलय काल समाप्त नहीं होता है तब तक भगवान मत्स्य अवतार लिए जल में ही रहते हैं.
मत्स्य अवतार में भगवान विष्णु चारो वेदों को अपने पास रखते हैं ओर जब पुन: सृष्टि का निर्माण शुरु होता है तो वेद ब्रह्मा जी को देकर सृष्टि का आरंभ करते हैं. इस प्रकार मत्स्य अवतार लेकर भगवान पृथ्वी को बचाते हैं ओर सभी जीवों का कल्याण करते हैं.