लक्ष्मी सीता अष्टमी व्रत : विवाह सुख और आर्थिक उन्नती देता है
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी को लक्ष्मी सीता अष्टमी रूप में पूजा जाता है. देवी लक्ष्मी को सीता का स्वरुप ही माना गया है दोनों का स्वरुप एक ही है ऎसे में ये दिन लक्ष्मी-सीता अष्टमी के पूजन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. लक्ष्मी सीता अष्टमी के दिन इन दोनों रुपों का पूजन हो सर्वप्रथम देवी लक्ष्मी का पूजन एवं उसके पश्चात सीता माता का पूजन करना चाहिए.
लक्ष्मी सीता अष्टमी का पौराणिक महत्व
देवी लक्ष्मी का एक रुप सीता भी है, और इस पर्व को सीता लक्ष्मी अष्टमी के रुप में भी मनाया जाता है. देवी लक्ष्मी के स्वरुप में सीता का जीवन एवं उनके संघर्ष का स्वरुप. यह पर्व सभी के समक्ष एक ऎसे आदर्श की स्थापना करता है जो सदैव के लिए पूजनिय और अविस्मरणीय बन गया है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन माह की कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता जी के पृथ्वी पर आने के समय से जोड़ा गया है. देवी-देवताओं के अवतारों रुप में जब माता सीता के चित्रण को समझने की कोशिश करते हैं तो सर्वप्रथम उनके जन्म समय को समझने की भी आवश्यकता होती है. वेदों में हमें इस बात का अधिक पता नहीं चलता है लेकिन यदि हम पुराणों की बात करें तो उसमें हमें सीता जन्म से संबंधित अनेक कथाएं मिलती हैं वहीं जब हम लोक जीवन से जुड़ी कथाओं को देखें तो यहां भी हमें उनकी जन्म कथा के विभिन्न रुप दिखाई देते हैं.
सीता जिसे पृथ्वी से उत्पन्न माना गया और इसी कारण उन्हें ये नाम भी प्राप्त होता है. माता सीता का चरित्र हमें राम कथा में प्राप्त होता है. रामचरितमानस, श्री राम और सीता जी के जीवन पर आधारित पौराणीक ग्रंथ है. माता सीता को मिथिला नरेश राजा जनक की पुत्री बताया गया है. जनक की पुत्री होने के कारण इन्हे जानकी एवं जनकसुता इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है. मिथिला कुमारी होने के कारण इन्हें मैथिली नाम भी प्राप्त हुआ. इनका विवाह अयोध्या के नरेश राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्री राम के साथ हुआ था. उसके पश्चात जीवन में आने वाले अनेक उतार-चढा़वों को झेलते हुए इनका जीवन व्यतित हुआ. जिस प्रकार देवी सीता भूमि से उत्पन्न हुई मानी जाती हैं उसी प्रकार अपने अंत समय में भी देवी सीता पृथ्वी में ही समा जाती हैं. त्रेतायुग में इन्हें देवी सीता को माँ लक्ष्मी का अवतार माना गया है.
लक्ष्मी सीता अष्टमी पूजन कब और क्यों किया जाता है.
लक्ष्मी-सीता अष्टमी पर्व को इनके जन्म समय को भी इस समय से जोड़ा जाने के कारण यह दिवस अत्यंत उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है. प्रत्येक वर्ष इस दिन देवी सीता व देवी लक्ष्मी जी का पूजन किया जाता है. इस उपलक्ष पर मंदिरों में भजन एवं कीर्तन होते हैं.
लक्ष्मी सीता अष्टमी पूजन विधि
लक्ष्मी सीता अष्टमी के दिन कैसे करें पूजन और किन चीजों को भोग के लिए उपयोग में लाएं, आईये जानते हैं इस दिन के व्रत एवं पूजन की विधि विस्तार से -
सीता पूजन विधि
लक्ष्मी पूजन विधि
सौभाग्य की वृद्धि करता है लक्ष्मी-सीता अष्टमी पूजन
सीता-लक्ष्मी अष्टमी पूजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सभी आयु वर्ग की स्त्रियों के लिए एवं सुहागिन स्त्रियों के लिए यह दिन विशेष रुप से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. सीता-लक्ष्मी अष्टमी का पूजन एवं व्रत करने से स्त्री को अच्छे वर की प्राप्ति होती है.
सुहागिन स्त्रियों द्वारा इस दिन व्रत पूजन करने से उनके पति की आयु लंबी होती है और वह सदा सुहागिन होने का आशीर्वाद भी पाती हैं. इस दिन व्रत एवं सीता-लक्ष्मी जी का पूजन करने से संतान सुख एवं दांपत्य जीवन के सुख की प्राप्ति होती है. यदि वैवाहिक जीवन में किसी भी प्रकार की परेशानियां आ रही हैं तो इस दिन व्रत का संकल्प लेकर पूजा करने से सभी परेशानियां का अंत होता है. किसी कारण से विवाह नहीं हो पा रहा है तो इस दिन व्रत करने से मनचाहे वर की प्राप्ति का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है.
सीता-लक्ष्मी अष्टमी का पूजन एवं व्रत वैवाहिक जीवन के कष्टों को दूर करने में अत्यंत ही प्रभावशाली उपाय बनता है.