शीतला सप्तमी : ऎसे करें शीतला माता की पूजा
शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व माता शीतला के पूजन से संबंधित है. शीतला सप्तमी का व्रत संतान प्राप्ति एवं संतान के सुख के लिए किया जाता है. शीतला माता के व्रत में एवं इनके पूजन में बासी एवं ठंडा भोजन करने का नियम होता है. इस दिन माता शीतला को ठंडा भोजन ही भोग स्वरुप लगाया जाता है. माता शीतला अपने नाम के अनुरुप ही शीतल हैं, ऎसे में इनका पूजन करने से जीवन में मची कोई भी उथल-पुथल एवं अशांती दूर हो जाती है और शांति शीतलता का वास होता है.
शीतला सप्तमी पूजन इन बातों का रखें ख्याल
शीतला सप्तमी व्रत करता है चेचक रोग का नाश
बच्चों में होने वाली एक बीमारी जिसे खसरा(चेचक) या आम बोलचल की भाषा में माता आ जाना कहा जाता है. इस बीमारी की शांति के लिए मुख्य रुप से शीतला माता की पूजा करने का विधान बताया जाता है. ऎसे में आज भी हम ग्रामीण क्षेत्रों में इस रोग के समय माता शीतला के पूजन को विशेष रुप से देख सकते हैं. शहरों में भी बहुत से लोग बच्चों में अगर इस रोग का प्रभाव देखते हैं तो शीतला माता का पूजन करते हैं व मंदिर में जाकर माता की शांति करते हैं.
शीतला सप्तमी कथा
शीतला सप्तमी का व्रत संतान की सुरक्षा एवं आरोह्य प्राप्ति के लिए किया जाता है. इस दिन व्रत रखने के साथ ही शीतला सप्तमी कथा भी करनी चाहिए. शीतला सप्तमी कथा को सुनने और पढ़ने से शुभ फलों में वृद्धि होती है.
शीतला सप्तमी कथा इस प्रकार है : - एक गांव में एक वृद्ध स्त्री अपनी बहुओं के साथ रहती है थी और सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही होती है. एक बार शीतला सप्तमी का दिन आता है. वृद्ध स्त्री और उसकी दोनों बहुएं शीतला सप्तमी का व्रत रखती हैं. वृद्ध स्त्री खाना बना कर रख देती हैं क्योंकि माता के व्रत में शीतल व बासी भोजन करना होता है. लेकिन उसकी दोनों बहुओं को कुछ समय पूर्व ही संतान प्राप्ति हुई होती है, इस कारण बहुओं को था की उन्हें शीतला सप्तमी के दिन बासी ओर ठंडा भोजन करना पड़ेगा. बासी भोजन करने से उनकी संतानों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है. इस कारण वह भोजन ग्रहण करना नहीं चाहती थीं.
शीतला माता की पूजा करने बाद बहुओं ने बासी भोजन का सेवन नहीं किया और अपने लिए खाना बना कर खा लिया. जब सास ने उनसे खाने को कहा तो उन दोनों ने बहाना बना कर सास को झूठ बोल दिया की वह दोनों घर का काम खत्म करने के बाद भोजन कर लेंगी. बहुओं की बात सुन सास बासी भोजन खा लेती है. बहुएं माता का भोजन नहीं खाती हैं.
बहुओं के इस कार्य से शीतला माता उनसे रुष्ट हो जाती हैं. माता के क्रोध के परिणाम स्वरुप बहुओं के बच्चों की मृत्यु हो जाती है. अपनी संतान की ऎसी दशा देख वह बुरी तरह से रोने लगती हैं, अपनी सास को सारी सच्चाई बता देती हैं. सास को जब इस बात का पता चलता है तो वह अपनी बहुओं को घर से निकाल देती है. बहुएं अपनी मृत संतानों को अपने साथ लेकर वहां से चली जाती हैं.
रास्ते में दोनों एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ जाती हैं. वहीं पर ओरी और शीतला नामक दो बहनें मिलती हैं. वह दोनों अपने सिर पर पड़े कीड़ों से दुखी हो रखी होती हैं. बहुओं को उन पर दया आती है और वह उनकी मदद करती हैं. शरीर पर से पिड़ा दूर होने पर दोनों को सकून मिलता है और वह बहुओं को पुत्रवती होने का आशीर्वाद देती हैं.
बहुएं पहचान जाती हैं की वह बहने शीतला माता है, दोनों बहुओं ने माता से क्षमा याचना की तो माता को उन पर दया आती है और वह उन्हें माफ कर देती हैं. संतान के पुन: जीवित होने का वरदान देती हैं. शीतला माता के वरदान से बच्चे जीवित हो जाते हैं और बहुएं अपनी संतान को लेकर अपने घर जाकर सास और गांव के लोगों को इस चमत्कार के बारे में बताती हैं. सभी लोग शीतला माता की जयकार करते हैं और माता का पूजन भक्ति भाव से करने लगते हैं.
शीतला माता पूजन विधि
शीतला माता के पूजन में जो भी विधि विधान होते हैं उन सभी का ध्यान पूर्वक पालन करना चाहिए. शीतला माता के पूजन में किसी भी प्रकार की गलती इत्यादि से बचना चाहिए. यदि अनजाने में कोई गलती हो जाती है तो उसका प्रायश्चित अवश्य करना चाहिए.