कैसे और कब शुरु करें सोमवार व्रत: सोमवार व्रत में इन बातों का रखें ध्यान
सोमवार के दिन भगवान शिव और सोम देव के निमित्त जो व्रत किया जाता है, उसे सोमवार के व्रत के नाम से जान जाता है. सोमवार के व्रत में भगवान शिव का विशेष रुप से पूजन होता है. इस व्रत के दौरान भगवान शिव का अभिषेक एवं रात्रि के समय चंदरमा का पूजन एवं रात्रि जागरण करने का विधान रहा है.
सोमवार व्रत कितने प्रकार का होता है
सोमवार का व्रत तीन प्रकार का होता है. इसमें से सामान्य रुप में सोमवार के दिन रखा जाने वाला व्रत, दूसरा सोम प्रदोष व्रत और तीसरा सोलह सोमवार का व्रत. यह तीनों व्रतों का अपना अपना अलग-अलग महत्व होता है. इन सभी व्रतों में थोड़ी बहुत भिन्नता हो सकती है. पर पूजन विधि में बहुत हद तक समानता और सरलता ही होती है.
सोमवार व्रत कितने रखे जाएं और कब शुरु करें
सोमवार के व्रत का आरंभ करने के लिए माघ माह, फाल्गुन माह और सावन माह के शुक्ल पक्ष के सोमवार अत्यंत शुभ माने जाते हैं. सोमवार व्रत की संख्या को आप अपने अनुसार रख सकते हैं, लेकिन किसी भी व्रत का अपना महत्व और अपना प्रभाव होता है. कुछ सोमवार के व्रत 16 सोमवार, 7 सोमवार, 5 सोमवार तक रखे जाए हैं.
सोलह सोमवार व्रत -सोलह सोमवार व्रत को रखते हुए नियमों का विशेष ध्यान रखा जाता है. मुख्य रुप से ये व्रत सौभाग्य और मनपसंद जीवन साथी की प्राप्ति के लिए किया जाता है. किसी का दांपत्य जीवन परेशानियों से निकल रहा है तो इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली कठिनाईयां तो दूर होती ही हैं, साथी ही वैवाहिक जीवन में सुख भी आता है.
सोम प्रदोष व्रत -सोम प्रदोष अत्यंत ही शुभ होता है. इस व्रत को करने से संतान सुख एवं योग्य संतान की प्राप्ति होती है. इस व्रत के दौरान प्रदोष समय शिव पूजन का अत्यंत महत्व माना गया है.
सामान्य सोमवार व्रत -सोमवार के व्रत जिसे आप बिना किसी संख्या के जब चाहें और जितना चाहें रख सकते हैं. आप इन तीनों श्रेणी के व्रत आप जीवन भर रख सकते हैं. इन व्रतों को संपूर्ण भक्ति और विश्वास के साथ करने से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है.
सोमवार व्रत रखते समय सावधानियां
सोमवार व्रत की विधि
सोमवार व्रत का ज्योतिष दृष्टि से महत्व
सोमवार के व्रत का ज्योतिष की दृष्टि से भी अत्यंत महत्व रहा है. सोमवार के दिन को चंद्रमा से जोड़ा जाता है. सोमवार के दिन चंद्रमा के पूजन का भी विशेष महत्व होता है. चंद्र ग्रह का कुंडली में खराब होना या पाप प्रभाव में होने पर चंद्रमा से मिलने वाले बुरे फलों से बचने के लिए सोमवार का व्रत करना बहुत ही शुभ माना गया है.
सोमवार के दिन शिव पूजा और चंद्र ग्रह की पूजन दोनों ही बातें एक दूसरे की पूर्क बन जाती हैं. चंद्रमा को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया है. ऎसे में शिवलिंग की पूजा से चंद्रमा का पूजन भी स्वत: ही हो जाता है.
सोमवार व्रत कथा
एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी मृत्युलोक में भ्रमण की इच्छा से माता पार्वती के साथ विदर्भ देश की अमरावती नगरी जो कि सभी सुखों से परिपूर्ण थी वहां पधारे. वहां के राजा द्वारा एक अत्यंत सुन्दर शिव मंदिर था, जहां वे रहने लगे. एक बार पार्वती जी ने चौसर खलने की इच्छा की. तभी मंदिर में पुजारी के प्रवेश करने पर माता जी ने पूछा कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? तो ब्राह्मण ने कहा कि महादेव जी की. लेकिन पार्वती जी जीत गयी. तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया.
कई दिनों के पश्चात देवलोक की अपसराएं, उस मंदिर में पधारीं, और उसे देखकर कारण पूछा. पुजारी ने निःसंकोच सब बताया. तब अप्सराओं ने पुजारी को सोलह सोमवार के व्रत की महिमा और व्रत विधि बताकर व्रत का पालन करने को कहती हैं. इस व्रत से शिवजी की कृपा से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं. फिर अप्सराएं स्वर्ग को चली जाती हैं. ब्राह्मण ने सोमवार का व्रत करने का निश्चिय किया और वह व्रत के प्रभाव से रोगमुक्त होकर जीवन व्यतीत करने लगा.
कुछ दिन उपरांत शिव पार्वती जी के पधारने पर, पार्वती जी ने उसके रोगमुक्त होने का करण पूछा. तब ब्राह्मण ने सारी कथा बतायी. तब पार्वती जी अपने रुठे पुत्र कार्तिकेय को वापिस पाने के लिए यही व्रत किया, और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई. उनके रूठे पुत्र कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए. परन्तु कार्तिकेय जी ने अपने विचार परिवर्तन का कारण पूछा. तब पार्वती जी ने वही कथा उन्हें भी बतायी. तब स्वामी कार्तिकेय जी ने भी यही व्रत किया.
व्रत के प्रभाव से उन्हें अपने मित्र से पुन: मिलाप का मौका मिला. जब मित्र ने इस विषय में पूछा तो कार्तिकेय जी ने उन्हें व्रत के बारे में कहा. उनके मित्र ब्राह्मण ने पूछ कर यही व्रत किया. फिर वह ब्राह्मण जब विवाह की इच्छा से और एक राज्य में जाता है और वहां की राज्कुमारी के स्वयंवर के यहां स्वयंवर में गया. वहां राजा ने संकल्प लिया था, कि हथिनी एक माला, जिस वर के गले में डालेगी, वह अपनी पुत्री उसी से विवाह करेगा. वहां शिव कृपा से हथिनी ने माला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी.
राजा ने उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया. उस कन्या के पूछने पर ब्राह्मण ने उसे कथा बतायी. तब उस कन्या ने भी वही व्रत कर एक सुंदर पुत्र पाया. बाद में उस पुत्र ने भी यही व्रत किया और एक वृद्ध राजा का राज्य पाया.
सोमवार व्रत उद्यापन
सोमवार के व्रत का उद्यापन करते समय उद्यापन वाले सोमवार के दिन स्नान के बाद साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए यदि श्वेत वस्त्रों का उपयोग करीं तो वह और भी अच्छा होता है. पूजा के लिए एक वेदी का निर्माण करें, इसे फूलों से और केले के पत्तों से सजाना चाहिए.
इस स्थान पर भगवान शिव, माता पार्वती, चंद्रदेव एवं समस्त शिव परिवार को स्थापित करना चाहिए. धूप दीप से पूजन करें एवं फूल माला अर्पित करें. भगवान को चूरमा और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए. ब्राह्मण को भोजन खिलाएं और दक्षिणा प्रदान करके अपना व्रत पूर्ण करना चाहिए.
यदि सामान्य रुप से पूजन करना चाहिए तो शिव मंदिर में शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल का पंचामृत से अभिषेक करना चाहिए. शिवलिंग पर बिल्व पत्र, धतूरा चढ़ाना चाहिए. उसके पश्चात जल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए. धूप-दीप से पूजन उपरांत भगवान शिव को जनेऊ व धोतीऔर माता पार्वती को लाल चुनरी और शृंगार का सामान भेंट करना चाहिए. मंत्र एवं आरती के पश्चात एक या दो ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए अथवा उन्हें भोजन का सामान व दक्षिणा प्रदान करने के उपरांत अपना व्रत खोलना चाहिए. उद्यापन के दिन भी आपको एक समय ही भोजन करना है और सभी नियमों का पालन करते हुए उद्यापन संपूर्ण करना चाहिए.