लक्ष्मी नारायण व्रत और जानिये इसकी पूजा विधि कथा विस्तार से
लक्ष्मी नारायण व्रत में देवी श्री लक्ष्मी और भगवान नारायण की संयुक्त रुप पूजा की जाती है. इस पूजा को करने से घर में धन संपदा की कभी कमी नहीं आती है. श्री लक्ष्मी नारायण व्रत दरिद्रता को दूर करने का एक अचूक उपाय भी बनता है. इस दिन घर में पूजा पाठ के साथ साथ हवन इत्यादि अनुष्ठान भी करने से संपन्नता के द्वार खुलते हैं.
लक्ष्मी नारायण पूजा कब करें
लक्ष्मी नारायण व्रत एवं पूजन को करने के लिए सबसे उपयुक्त समय पूर्णिमा तिथि का दिन माना गया है. इसके अलावा इस व्रत को शुक्रवार के दिन या फिर रविवार के दिन भी किया जाता है. लक्ष्मी नारायण व्रत के विषय में पौराणिक ग्रंथों में विस्तार रुप से कथा एवं महत्व प्राप्त होता है.
लक्ष्मी नारायण की पूजा विधि
इस व्रत के बारे में नारद जी ने शौनक ऋषि से पूछा, तो इसके विषय में बताते हुए वह उनसे कहते हैं - हे महर्षि नारद पूर्णिमा तिथि के दिन शुद्ध सात्विक आचरण का नियम रखते हुए इस व्रत का आरंभ करना चाहिए. प्रत:काल स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध साफ सफेदवस्त्र धारण करने चाहिए.
लक्ष्मी नारायण व्रत एवं पूजा करने से समस्त सुखों की प्राप्ति होती है. इस व्रत का प्रभाव व्यक्ति को बैकुंठ धाम की प्राप्ति कराने वाला होता है. व्रत एवं पूजन में रात्रि जागरण का भी बहुत महत्व होता है. व्रत के अगले दिन सुबह के समय ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए एवं दक्षिणा इत्यादि देकर इस व्रत का संकल्प पूरा करना चाहिए. इस व्रत में तिल के दान का भी अत्यंत महत्व बताया गया है. तिल से होम करना भी शुभ होता है. इस प्रकार सामर्थ्य अनुसार लक्ष्मी नारायण व्रत पूजन करना चाहिए.
लक्ष्मी नारायण पूजा में क्या नहीं करना चाहिए
लक्ष्मी नारायण कथा
लक्ष्मी नारायण कथा अनुसार एक बार जब दोनों की महत्ता में से कौन अधिक महत्वपूर्ण है, इस पर बहस बढ़ जाती है. तब नारायण भगवान इस तथ्य को समझाने के लिए एक परीक्षा का आयोजन करते हैं. भगवान नारायण ब्राह्मण का भेष बना कर एक गाँव में जाते हैं, और वहां के मुखिया से कहते हैं की वह उस स्थान पर श्री नारायण का पूजन करना चाहते हैं. गांव के मुखिया उनकी बात मान कर उन्हें एक निवास स्थान देते हैं. उनके लिए कथा के स्थान का बंदोबस्त भी करते हैं.
गांव के सभी लोग उस कथा मे प्रतिदिन शामिल होने लगते हैं, ऎसे में लक्ष्मी जी अपनी स्थिति को नजरअंदाज होते देखती हैं तो वह भी भेष बदल कर एक वृद्ध स्त्री के रुप में वहां पहुंच जाती है. एक स्त्री जो कथा में जाने के लिए घर से निकल रही होती है उससे पानी मांगती हैं. ऎसे में स्त्री उन्हें पानी पीने को देती है, पर जैसे ही वृद्ध स्त्री उसे उसका बरतन वापिस करती हैं तो वह स्वर्ण धातु का हो जाता है.
इस चमत्कार को देख कर वह गांव के सभी लोगों को इस बात के बारे में बताती है, सभी लोग कथा से उठ कर उस चमत्कार को देखने के लिए वहां चले जाते हैं. धन के लोभ का स्वरुप के कारण नारायण उस स्थान से चले जाने के लिए प्रस्थान करते हैं, तो लक्ष्मी वहां आकर उन्हें अपनी महत्ता को स्वीकार करने की बात कहती हैं. श्री नारायण मान जाते हैं की लक्ष्मी उनसे अधिक महत्व रखती हैं और वहां से चले जाते हैं.
ऎसे में लक्ष्मी जी उनके जाने से दुखी होकर जाने लगती हैं तो गांव के लोग उन्हें रोकने लगते हैं. इस प्रकार वह उन्हें कहती हैं की जहां नारायण कथा पूजन का वास नहीं होता है, वहां लक्ष्मी का भी कोई स्थान नही हो सकता है. जिस स्थान पर लक्ष्मी और नारायण दोनों का पूजन होगा वहीं मैं स्थापित हो सकती हूं. इस प्रकार लक्ष्मी जी नारायण जी के समक्ष इस बात को कहती हैं की आप के बिना मैं कुछ नहीं और मेरे बिना आप. हम दोनों एक दूसरे का स्वरुप ही हैं. ऎसे में जो भी भक्त लक्ष्मी नारायण रुप का एक साथ पूजन करते हैं उन्हें सदैव प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
लक्ष्मी नारायण व्रत के लाभ
वैभव और धन संपदा की प्राप्तिलक्ष्मी नारायण व्रत एवं पूजन करने से घर में हर प्रकार की समृद्धि बढ़ती है. यदि कोई व्यक्ति कर्ज इत्यादि से पीड़ीत है तो उसे इस व्रत को जरुर करना चाहिए. इस व्रत को करने से संयुक्त पूजन से सुख-संपत्ति, धन, वैभव और समृद्धि का वरदान मिलता है. अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में केमद्रूम योग बनता है तो उनके लिए ये पूजा बहुत ही शुभ फल देने वाली बनती है.
नौकरी और कारोबार में लाभ मिलता हैलक्ष्मी नारायण व्रत को करने से व्यापार में लाभ मिलता है. व्यापारियों के लिए इस व्रत को करने से उन्हें देवी लक्ष्मी के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और उनके व्यवसाय में वृद्धि भी होती है. जो लोग नौकरी में स्थायित्व चाहते हैं ओर अपने काम में प्रमोशन की इच्छा रखते हैं उनके लिए भी इस व्रत को करने से लाभ मिलता है.
सौभाग्य की प्राप्ति जीवनसाथी का सुखलक्ष्मी नारायण व्रत करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है. स्त्रियों के मांगल्य सुख में वृद्धि होती है. अगर विवाह होने में कोई परेशानी हो रही हो तो इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. यह वैवाहिक सुख को देने वाला होता है. लंबी उम्र, अच्छी सेहत और आध्यात्मिक विकास का आशीर्वाद भी मिलता है.अगर आपकी कोई विशेष कामना है तो उसी को ध्यान में रखकर पूजन का संकल्प लें. संकल्प लेकर सही विधि से पूजन और उसका समापन करें, कामना पूरी होगी.