चैत्र नवरात्र में शक्ति पूजा का महत्व 2025

चैत्र माह की प्रतिपदा का आरंभ नव वर्ष के आरंभ के साथ साथ दुर्गा पूजा के आरंभ का भी समय होता है. इस वर्ष  30 मार्च 2025 को चैत्र नवरात्रों के आरंभ से ही विक्रम संवत का आरंभ होगा और इसी के साथ ही प्रतिपदा से नवरात्रों का भी आरंभ होगा. चैत्र नवरात्र का समय देवी दुर्गा के विभिन्न रुपों की पूजा का समय होता है जिसे हम शक्ति पूजा भी कहते हैं. इसी शक्ति पूजा को राम ने भी सफलता एवं युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए देवी के इन रुपों को पूजा और उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई. यही इन नौ दिनों की पूजा का प्रभाव होता है.

जो भी व्यक्ति पूर्ण निष्ठा और सत्य भावना के साथ इन दिनों मॉं के सभी रुपों की पूजा करते हैं उन्हें अपने क्षेत्र में सकारात्मक परिणामों की प्राप्ति अवश्य होती है. चैत्र नवरात्रों के आगमन द्वारा नए वर्ष का आरंभ हो जाता है. इस समय को आधार बनाकर ज्योतिष की गणनाएं भी की जाती हैं.

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती

नवरात्र में शक्ति पूजा के अंतर्गत दुर्गा सप्तशती का बहुत महत्व माना जाता है. इस समय पर सप्तशती के पठन पाठन को शीघ्र फल प्रदान करने वाला माना जाता है. दुर्गा सप्तशती के पाठ का श्रवण मनन करना बहुत ही लाभदायक होता है साथ ही इस समय के दौरान की जाने वाली इस पाठ पूजा में साधक को पूर्ण रुप से सात्विकता और शुद्धता का ध्यान रखने की सलाह दी जाती है.

चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नान इत्यादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए.

दुर्गा सप्तशती पाठ पूजन में साधना करने वाले को प्रात:काल स्नान करके, आसन शुद्धि पश्चात आसन ग्रहण करके माता के पूजन की समस्त सामग्री को एकत्रत करके ध्यान पश्चात पूजा को आरंभ करना चाहिए. यदि साधक इस पाठ को पूरा न कर सके तो इनमें दिए गए कुछ मंत्रों के पाठन कर लेने से ही समस्त अध्यायों के पाठन जितना ही फल प्राप्त होता है.

नवरात्र में कन्या पूजन

नवरात्रि के इन नौ दिनों में माता के नव रुपों की पूजा उपासना की जाती है. माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है होता है जिसमें अष्टमी और नवमी के दिन पर विशेश रुप से कन्या पूजन होता है. इस पूजन में 10-9 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को पूजा जाता है उन्हें माता का भोग लगाया जाता है तथा विशेष उपहार भी प्रदान किए जाते हैं.

नवरात्रि पूजा विधान

नौ दिनों की इन महत्वपूर्ण रात्रि में देवी दुर्गा जी को मंत्र एवं तंत्र द्वारा प्रसन्न किया जाता है. पूजा के साथ इन दिनों में तंत्र और मंत्र के कार्य भी किये जाते है. बिना मंत्र के कोई भी साधाना अपूर्ण मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को सुख -शान्ति पाने के लिये किसी न किसी ग्रह की उपासना करनी ही चाहिए. माता के इन नौ दिनों में ग्रहों की शांति करना विशेष लाभ देता है. इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा के कलश की स्थापना कर पूजा प्रारम्भ की जाती है.

इन दिनों में माता को प्रसन्न करने के लिए बहुत प्रकार से पूजा का विधान रहता है और इन पूजा में माता के सभी रुपों के लिए विभिन्न नियमों एवं कार्यों को संपन्न करके शक्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है.