शबरी जयंती का महत्व और पूजा विधि

फाल्गुन मास की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती का उत्सव मनाया जाता है. शबरी जयंती का समय देश के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष रुप से मनाया जाता है. गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में इसकी अलग ही धूम देखने को मिलते है. शबरी जयंती के दिन विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. दक्षिण भारत के भद्राचलम के सीतारामचंद्रम स्वामी मंदिर में इस दिन को बड़े उत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. 

शबरी जयंती के दिन शबरी माता की देवी के रूप में पूजा की जाती है. रामायण, भागवत रामचरितमानस आदि ग्रंथों में राम भक्त शबरी की कई कहानियां बताई गई हैं. भगवान श्री राम ने अपनी सबसे बड़ी भक्त शबरी के जूठे बेर ग्रहण किए थे. इसी वजह से इस दिन को शबरी माता के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. और पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ उनकी पूजा की जाती है. 

शबरी जयंती पूजा   

शास्त्रों में शबरी को परम भक्त एवं देवी का स्थान दिया गया है. शबरी जयंती के दिन माता शबरी की देवी के रूप में पूजा की जाती है.  शबरी जयंती को आस्था और भक्ति से मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार, शबरी एवं माता की पूजा से भक्ति से व्यक्ति को उसी तरह भक्ति की कृपा प्राप्त होती है, जैसे शबरी को भगवान राम की भक्ति प्राप्त हुई थी.

शबरी जयंती के दिन रामायण का पाठ किया जाता है. देवी शबरी का वास्तविक नाम 'श्रमणा' था और उनका जन्म भील जाती में हुआ था. शबरी के पिता भील समुदाय के राजा थे. जब शबरी विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने उसका विवाह एक भील राजकुमार से तय कर दिया. उस समय विवाह में पशुओं की बलि दी जाती थी. माता शबरी के विवाह में बलि के लिए बकरे और भैंसे एकत्र किए गए थे.जब शबरी को इस बात का पता चला तो उसने अपने पिता से पूछा, तब शबरी के पिता ने बताया तुम्हारे विवाह के अवसर पर इन सभी पशुओं की बलि दी जाएगी. यह बात सुनकर शबरी को बहुत दुख हुआ और रात में अपने घर से भाग गई. घर से भागने के बाद उसने अपना पूरा जीवन भगवान राम की भक्ति में समर्पित कर दिया. घर से निकलने के बाद शबरी जंगल में रहने लगी और ऋषि मतंग की शिष्या  

शबरी जयंती पूजा विधि-

शबरी जयंती के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में विशेष पूजा की जाती है. भक्ति और विश्वास के साथ इस दिन शबरी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.

इस दिन शबरी और भगवान विष्णु को बेर चढ़ाए जाते हैं. शबरी जयंती के दिन माता शबरी और भगवान विष्णु को बेर चढ़ाने के बाद पूरा परिवार प्रसाद के रूप में बेर खाता है. इस दिन भगवान विष्णु या शबरी की पूजा में सफेद चंदन से शबरी और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. 

शबरी जयंती कथा 

शबरी जयंती की कथा का संबंध रामायण से रहा है. रामायण के विभिन्न पात्रों में से एक शबरी भी एक महान पात्र है. शबरी के जीवन और उनकी श्री राम से भेंट का उल्लेख रामायण में मिलता है.  शबरी भगवान श्री राम की बहुत बड़ी भक्त थीं और उन्होंने अपना पूरा जीवन राम की भक्ति में समर्पित कर दिया था. रामायण की कथा अनुसार शबरी अपनी कुटिया में बैठकर भगवान श्री राम के आने का इंतजार किया करती थीं और उसकी साधना भक्ति को देख कर भगवान ने उन्हें दर्शन भी दिये थे. जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से भगवान की स्तुति करता है, उसे भगवान की कृपा  मिलती है. उसी तरह भक्ति की धारा में बहते हुए शबरी को भी श्री राम जी के दर्शन हुए और वह उनसे मिलने आते हैं.  

शबरी का आरंभिक जीवन और भक्ति का प्रादुर्भाव

कथाओं के अनुसार, शबरी भील समुदाय से थीं, भील समुदाय में किसी भी शुभ अवसर पर जानवरों की बलि दी जाती थी, लेकिन शबरी को पशु-पक्षियों से बहुत लगाव था. इसलिए पशुओं को बलि से बचाने के लिए शबरी ने विवाह नहीं किया और ऋषि मतंग की शिष्या बन गईं और ऋषि मतंग से धर्म और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया.

ऋषि मतंग के आश्रम में आने के बाद शबरी हमेशा भगवान श्री राम की भक्ति में लीन रहने लगीं. शबरी की भगवान के प्रति ऐसी भक्ति देखकर ऋषि मतंग ने अपने अंतिम समय में शबरी से कहा कि शबरी को श्री राम के दर्शन होंगे और मोक्ष मिलेगा. यह सुनकर शबरी प्रतिदिन अपनी कुटिया में भगवान के आने का इंतजार करने लगी. 

वह नियमित रुप से मार्ग के रास्ते में आने वाले पत्थर और कांटे हटाती और प्रभु के आने की प्रतिक्षा किया करती थी. शबरी प्रतिदिन ताजे फल और बेर तोड़कर श्री राम के लिए रखतीं. जीवन भर राम का इंतजार करने वाली शबरी की इच्छा आखिरकार पूरी हुई. वन में माता सीता की खोज करते हुए श्री राम और लक्ष्मण शबरी की कुटिया में पहुंचे. जब शबरी ने श्री राम को देखा तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. वह उनके पैरों से लिपट गई. शबरी ने श्री राम को केवल मीठे बेर स्वयं चखकर खिलाए और श्री राम ने बचे हुए बेर प्रेम से खाए. श्री राम शबरी की अपार भक्ति से बहुत प्रसन्न होते हैं और अंत में शबरी को मोक्ष प्रदान होता है.