भीष्म एकादशी : जानें एकादशी कथा और महत्व

भीष्म एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह विशेष रूप से महाभारत के भीष्म पितामह से संबंधित भी है. भीष्म एकादशी का व्रत प्रत्येक वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है. इस दिन का महत्त्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि महाभारत के महान योद्धा, भीष्म पितामह ने इसी दिन अपने जीवन के अंतिम समय को प्राप्त किया था और इस दिन उन्होंने अपनी देह का त्याग किया था. उनके जीवन, त्याग और वीरता के कारण यह एकादशी खास महत्व रखती है.

भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महान और प्रतापी योद्धाओं में से एक थे. उनका असली नाम देवव्रत था, लेकिन उनके वचन निभाने और त्याग ने उन्हें "भीष्म" नाम दिया, जो कि उनके जीवन में किए गए महान व्रत और उनकी निष्ठा को दर्शाता है. भीष्म पितामह के जीवन में कई मोड़ आए, जिनमें से सबसे प्रमुख उनका वचन था कि वे कभी भी राजा नहीं बनेंगे. वे अपने पिता और उनकी इच्छा के प्रति पूरी तरह से समर्पित थे. उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी सेवा में समर्पित कर दी थी.

भीष्म पितामह ने कई युद्धों में भाग लिया और अपनी वीरता से दुश्मनों को हराया. उनकी महानता सिर्फ युद्ध में नहीं, बल्कि उनके आदर्शों और उनके द्वारा निभाए गए व्रतों में भी थी. महाभारत के युद्ध में उनका योगदान अत्यधिक था, लेकिन जब उन्होंने कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध के बाद शारीरिक रूप से अपंग होने के बाद युद्ध भूमि पर अपने जीवन के अंतिम क्षणों को बिताया, तो उनकी त्याग और धैर्य की मिसाल दी. उन्होंने उस समय के प्रचलित धर्म के अनुसार किसी भी प्रकार के द्वंद्व युद्ध से बचने का प्रयास किया और केवल धर्म के रास्ते पर चलने की शिक्षा दी.

भीष्म एकादशी व्रत की विधि

भीष्म एकादशी का व्रत करने के लिए कुछ खास नियम होते हैं, जिन्हें श्रद्धालु श्रद्धा भाव से पालन करते हैं. इस दिन प्रात:काल स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. भक्त लोग उपवास करते हैं, जिसका उद्देश्य केवल भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण को दर्शाना होता है. इस दिन विशेष रूप से व्रति को एकादशी तिथि के दिन किसी भी प्रकार के तामसिक भोजन से दूर रहना चाहिए और केवल सात्विक भोजन करना चाहिए. इस दिन विष्णु भगवान की पूजा करते हैं. वे 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करते हैं और भगवान के सामने दीपक लगाकर उनकी पूजा करते हैं. व्रत का पालन करते समय श्रद्धालु भगवान से आशीर्वाद मांगते हैं कि वे उनके जीवन से दुखों को दूर करें और उन्हें सुख-शांति की प्राप्ति हो.

भीष्म एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में विशेष रूप से पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है. यह एकादशी माघ माह की शुक्ल पक्ष की होती है और इसे पितामह भीष्म के द्वारा दी गई महान शिक्षा और उनके प्राणों के त्याग की याद में मनाया जाता है. पितामह भीष्म ने इस दिन अपने प्राणों का त्याग किया था,  अपने जीवन को एक महान उद्देश्य के लिए समर्पित किया था, और इस कारण उनका त्याग भी एक महान उदाहरण बन गया. . इस दिन उपवास रखने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही, यह व्रत व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है.

भीष्म एकादशी महत्व

भीष्म एकादशी को धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह दिन भगवान विष्णु के साथ भीष्म पितामह के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर होता है. भगवान विष्णु की पूजा करने से भगवान की कृपा प्राप्त होती है और पापों का नाश होता है. पितामह भीष्म का त्याग और उनकी भक्ति का जीवन संदेश भी इस दिन को और भी खास बना देता है. भीष्म एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को न केवल धर्म की प्राप्ति होती है, बल्कि यह जीवन में मानसिक शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य को भी प्रदान करता है. इस दिन व्रत करने से उनके दुखों का निवारण होता है.

इस प्रकार, भीष्म एकादशी का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें अपने जीवन में त्याग, समर्पण, और ईश्वर के प्रति भक्ति की महत्वता को समझाता है. यह दिन भीष्म पितामह के महान आदर्शों और उनके जीवन से प्रेरणा लेने का एक अवसर है. उनके जीवन की तरह हमें भी अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करना चाहिए और अपने जीवन में सद्गुणों को अपनाकर एक उच्च लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए. इस व्रत के माध्यम से हम अपने पापों का नाश कर सकते हैं और भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं. साथ ही, यह हमें जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति का मार्ग भी दिखाता है. इसलिए, भीष्म एकादशी का व्रत प्रत्येक श्रद्धालु के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह हमें एक आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है.