विष्णु सप्तमी 2025 | Vishnu Saptami 2025 | Vishnu Saptami Vrat
विष्णु सप्तमी व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है. इस वर्ष विष्णु सप्तमी 27 नवंबर 2025 को मनाई जानी है. भारतीय संस्कृति में ,मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है, इस मास में सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक से रिश्ता जोडा जाता है. आत्मा का नियंत्रक ग्रह सूर्य धर्म के कारक होकर आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं.
मार्गशीर्ष मास की हर तिथि अपना विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व रखती है. ऐसा माना जाता है कि विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कार्य सफल होते हैं. विष्णु पुराण में शुक्लपक्ष की विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्यदायिनी कहा गया है. इस तिथि में सूर्यनारायण का पूजन करने से रोग-मुक्ति मिलती है.
विष्णु सप्तमी पूजन | Vishnu Saptami Pujan
सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है. सप्तमी का व्रत करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद प्रात:काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए. निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए.
सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है. रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को लाळ रंगा का डोरा अर्पित किया जाता है. श्री भोलेनाथ को यह डोरा समर्पित करने के बाद इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए. व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, फल, फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए. और भगवान कि आरती करनी चाहिए.
विष्णु सप्तमी महत्व | Significance of Vishnu Saptami
भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं सर्वव्यापक भगवान श्री विष्णु समस्त संसार में व्याप्त हैं कण-कण में उन्हीं का वास है उन्हीं से जीवन का संचार संभव हो पाता है संपूर्ण विश्व श्री विष्णु की शक्ति से ही संचालित है वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं. विष्णु भगवान का स्वरूप बहुत ही विशाल एवं विस्तृत है उनके रूप को वेदों पुराणों में बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया गया है भक्तों द्वारा उनके रूप का वर्णन तो देखते ही बनता है.
शेषनाग पर विराजमान भगवान विष्णु अपने चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए होते हैं पिताम्बर को धारण किए हुए उनकी आभा से समस्त लोक प्रकाशमान हैं, कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, कमल नेत्र वाले भगवान श्री विष्णु देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ धाम में निवास करते हैं. भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं तथा ब्रह्मा एवं शिव सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं.
अत: विष्णु सप्तमी व्रत करते हुए जो भी प्रभु विष्णु का ध्यान मन करता है वह समस्त भव सागरों को पार करके विष्णु धाम को पाता है. भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु तथा जीवों पर करुणा-वृष्टि करने वाले हैं उनकी शरण में जाकर श्री विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, दर्शन, वन्दन, श्रवण तथा उनका पूजन करने से समस्त पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं. "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" महामंत्र के जाप से सभी के कष्ट दूर होते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.