खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी कथा और पूजा विशेष

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को खंडोबा षष्ठी या खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी के नाम से भी मनाया जाता है। मान्यता है कि खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी का पर्व भगवान शिव के अवतार खंडोवा को समर्पित है। खंडोवा या खंडोबा को कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता है। इनमें खंडेरया, मल्हारी, मार्तंड आदि नाम बहुत प्रसिद्ध हैं। खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी के दिन स्कंद षष्ठी भी पूजते हैं और इसे चंपा षष्ठी नाम से भी पूजा जाता है.

खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी कब मनाया जाता है?
मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होगा। 6 दिवसीय यह उत्सव नवरात्रि की तरह मनाया जाता है। व्रत रखने के साथ-साथ लोग पूजा-पाठ भी करते हैं। पूजा से जुड़े नियमों का पालन करते हुए भक्त इन दिनों को भक्ति भाव के साथ मनाते हैं. यह लोक परंपराओं और भक्ति के जुड़ा विशेष दिवस है.

खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी : देश के इन भागों का है विशेष पर्व
खंडोबा मार्तण्ड षष्ठी का पर्व नवरात्रि की ही भांति देश के कुछ स्थानों में मार्गशीर्ष माह के प्रतिपदा से षष्ठी तिथि तक चलता है मान्यता अनुसार भगवान शिव के अवतार खंडोवा देव को महाराष्ट्र और कर्नाटक में रहने वाले लोग कुल देवता के रूप में पूजते हैं। इनकी पूजा हर वर्ग के लोग करते हैं। इनमें अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है। सभी लोग भगवान की पूजा समान स्तर पर करते हैं। इसके अलावा खंडोबा को कुछ लोग स्कंद का अवतार भी मानते हैं तो कुछ के अनुसार उन्हें शिव या उनके भैरव रूप का अवतार मानते हैं। कुछ अन्य लोगों के अनुसार खंडोबा एक वीर योद्धा थे और इसलिए उन्हें देवता का रूप माना जाता था। खंडोबा के बारे में ऐसे कई मत मिलते हैं। इतने सारे अलग-अलग मत और मान्यताएं यह साबित करती हैं.

मार्तण्ड षष्ठी : मल्हारी मार्तण्ड पूजा
मल्हारी मार्तण्ड को भगवान शिव का ही रूप माना जाता है। इस पर्व को चंपा षष्ठी और स्कंद षष्ठी कहा जाता है। महाराष्ट्रीयन समाज में मल्हारी मार्तण्ड का खंडोबा उत्सव छह दिन तक मनाया जाएगा। जिसे छह दिवसीय उत्सव के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन भगवान को पूरन पोली और बैंगन का प्रसाद चढ़ाया जाएगा इस पर्व के देवता खंडोबा बाबा की विशेष पूजा की जाती है। हवन-पूजा के साथ-साथ उनकी मूर्ति या फोटो पर हल्दी उड़ाने की रस्म के साथ भंडारे का आयोजन किया जाता है इसमें मल्हारी मार्तंड को बैंगन, बाजरे की रोटी, पूरन पोली और विभिन्न व्यंजन का भोग लगाया जाता है।

मल्हारी मार्तंड : भगवान शिव का रूप
मल्हारी मार्तंड को भगवान शिव का रूप माना जाता है। इस पर्व को चंपा षष्ठी और स्कंद षष्ठी कहते हैं। बैंगन देवता को अर्पित किया जाता है। दक्षिण भारतीय लोग इस दिन महादेव के पुत्र कार्तिकेय की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि मल्हारी मार्तण्ड 64 भैरवों में से एक हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शंकर ने मल्हारी मार्तण्ड का रूप धारण कर मणिमल्ल नामक राक्षस का वध किया था। यह दिन चंपा षष्ठी था।

जेजुरी में खंडोबा मंदिर विशेष
खंडोबा षष्ठी देश के पूना और महाराष्ट्र क्षेत्रों में अधिक मनाई जाती है। जेजुरी में खंडोबा मंदिर में इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन खंडोबा देव को हल्दी, फल, सब्जियां आदि चढ़ाई जाती हैं। यहां मेला भी लगता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान शिव की मार्तंड के रूप में पूजा की जाती है।

महाकाल भैरवाष्टकम्

यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं
सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरं चन्द्रबिम्बम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनखमुखं चोर्ध्वरोमंकरालं
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥

रं रं रं रक्तवर्णं कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं
घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घोरनादम् ।
कं कं कं कालपाशं ध्रुक्ध्रुक्ध्रुकितं ज्वालितं कामदाहं
तं तं तं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥

लं लं लं लम्बदन्तं ल ल ल ल ललितं दीर्घजिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुटविकटमुखं भास्करं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रुण्डमालं रवितमनियतं ताम्रनेत्रं करालं
नं नं नं नग्नभूषं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥

वं वं वं वायुवेगं नतजनसदयं ब्रह्मसारं परन्तं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् ।
चं चं चं चं चलित्वाऽचल चल चलिता चालितं भूमिचक्रं
मं मं मं मायिरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ४॥

शं शं शं शङ्खहस्तं शशिकरधवलं मोक्षसम्पूर्णतेजं
मं मं मं मं महान्तं कुलमकुलकुलं मन्त्रगुप्तं सुनित्यम् ।
यं यं यं भूतनाथं किलिकिलिकिलितं बालकेलिप्रधानं
अं अं अं अन्तरिक्षं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५॥

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं कालकालं करालं
क्षं क्षं क्षं क्षिप्रवेगं दहदहदहनं तप्तसन्दीप्यमानम् ।
हूं हूं हूंकारनादं प्रकटितगहनं गर्जितैर्भूमिकम्पं
बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६॥

सं सं सं सिद्धियोगं सकलगुणमखं देवदेवं प्रसन्नं
पं पं पं पद्मनाभं हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं सततभयहरं पूर्वदेवस्वरूपं
रौं रौं रौं रौद्ररूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ७॥

हं हं हं हंसयानं हसितकलहकं मुक्तयोगाट्टहासं
धं धं धं नेत्ररूपं शिरमुकुटजटाबन्धबन्धाग्रहस्तम् ।
टं टं टङ्कारनादं त्रिदशलटलटं कामगर्वापहारं
भ्रूं भ्रूं भ्रूं भूतनाथं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ८॥

भैरवाष्टकमिदं पुण्यं षण्मासं यः पठेन्नरः ।
स याति परमं स्थानं यत्र देहो महेश्वरः ॥

इति महाकालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
श्रीक्षेत्रपालभैरवाष्टकम्

नमो भूतनाथं नमः प्रेतनाथं
नमः कालकालं नमः रुद्रमालम् ।
नमः कालिकाप्रेमलोलं करालं
नमो भैरवं काशिकाक्षेत्रपालम् ॥