एकादशी जन्म कथा : क्यों और कब हुआ एकादशी का जन्म और कैसे बनी मोक्ष देने वाली
एकादशी तिथि को उन विशेष तिथियों में स्थान प्राप्त है जिनके द्वारा व्यक्ति मोक्ष की गति को पाने में भी सक्षम होता है. एक माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की एकादशी और कृष्ण पक्ष की एकादशी दोनों का ही विशेष महत्व रहा है. एकादशी को धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही पहलुओं से खास माना गया है जो शरीर के लिए उत्तम परिणाम देने वाली होती है. यह शरीर को शुद्ध करने और मन को पवित्र करने का साधन भी है. एकादशी का समय चंद्रमा की स्थिति के साथ बदलता रहता है.
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एकादशी 11वीं तिथि को पड़ती है, चंद्र मास के शुक्ल पक्ष में, एकादशी के दिन चंद्रमा लगभग 75 प्रतिशत समय दिखाई देता है, जबकि चंद्र मास के कृष्ण पक्ष में, यह विपरीत होता है.आइये जानने की कोशिश करते हैं एकादशी जन्म कथा और मोक्ष प्राप्ति में महत्व.
एकादशी का जन्म कब हुआ
एकादशी के जन्म कि कथा का वर्णन धर्म ग्रंथों से प्राप्त होता है. जिसमें उत्पन्ना एकादशी को एकादशी की उत्पति जन्म समय की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह कृष्ण पक्ष के दौरान मार्गशीर्ष महीने के ग्यारहवें दिन आती है. यह कार्तिक पूर्णिमा के बाद शुरू होने वाली पहली एकादशी है. प्रत्येक एकादशी हिंदू कैलेंडर के अनुसार चंद्रमा की स्थिति और उनके बदलते समय से प्राप्त होती है. उत्तर भारत में, एकादशी मार्गशीर्ष में आती है जबकि दक्षिण भारत में यह कार्तिक महीने में मनाई जाती है.
पद्म पुराण के चौदहवें अध्याय में इस एकादशी के जन्म का वर्णन मिलता है. एक बार महान ऋषि जैमिनी ऋषि ने अपने गुरु श्री व्यास जी देव से कहा कि हे गुरुदेव! मैं एकादशी के व्रत के लाभ और एकादशी के प्रकट होने की बात सुनना चाहता हूँ. " कस्मद एकादशी जाता तस्याह को वा विधीर द्विज, कदा वा क्रियते किम वा फलम किम वा वदस्व मे, का वा पूज्यतामा तत्र देवता सद्गुणार्णव, अकुर्वताः स्यात् को दोष एतं मे वक्तुं अर्हसि"
एकादशी का जन्म कब हुआ और वह किससे प्रकट हुई? एकादशी व्रत के क्या नियम हैं? कृपया इस व्रत के पालन से होने वाले लाभ तथा इसका पालन कब करना चाहिए, इसका वर्णन करें. श्री एकादशी के परम पूजनीय अधिष्ठाता कौन हैं? एकादशी का विधिपूर्वक पालन न करने से क्या दोष हैं? कृपया मुझे इन बातों के बारे में बताने की कृपा करें.
जैमिनी जी को व्यास जी ने सुनाई एकादशी जन्म कथा
जैमिनी ऋषि की जिज्ञासा सुनकर व्यास जी ने कथा और महत्व के बारे में बताना शुरु किया. भौतिक सृष्टि के आरंभ में भगवान ने इस संसार में पांच स्थूल भौतिक तत्वों से बनी चर-अचर जीवों की रचना की. साथ ही मनुष्यों को दण्डित करने के उद्देश्य से उन्होंने एक ऐसे व्यक्तित्व की रचना की जिसका स्वरूप पाप का मूर्त रूप पापपुरुष था. इस व्यक्तित्व के विभिन्न अंग विभिन्न पाप कर्मों से निर्मित थे.
उसका सिर ब्रह्महत्या के पाप से बना था, उसकी दोनों आंखें मादक द्रव्य पीने के पाप से बनी थीं, उसका मुख सोना चुराने के पाप से बना था, उसके कान गुरु की पत्नी के साथ अवैध संबंध बनाने के पाप से बने थे, उसकी नाक अपनी पत्नी की हत्या के पाप से बनी थी, उसकी भुजाएं गाय की हत्या के पाप से बनी थीं, उसकी गर्दन संचित धन की चोरी के पाप से बनी थी, उसकी छाती गर्भपात के पाप से बनी थी, उसकी छाती के निचले हिस्से में दूसरे की पत्नी के साथ संभोग करने के पाप से बनी थी.
उसके पेट में अपने रिश्तेदारों की हत्या के पाप से बनी थी, उसकी नाभि में अपने आश्रितों की हत्या के पाप से बनी थी, उसकी कमर में आत्म-मूल्यांकन के पाप से बनी थी, उसकी जांघों में गुरु को अपमानित करने के पाप से बनी थी, उसकी जननांग में अपनी बेटी को बेचने के पाप से बनी थी, उसके नितंबों में गोपनीय बातें बताने के पाप से बनी थी, उसके पैरों में अपने पिता की हत्या के पाप से बनी थी, और उसके बाल कम गंभीर पाप कर्मों के पाप से बने थे. इस प्रकार, सभी पाप कर्मों और दोषों से युक्त एक भयंकर व्यक्तित्व की रचना हुई. वह पापी व्यक्तियों को अत्यधिक कष्ट पहुंचाता था.
पाप पुरुष से मुक्ति के लिए एकादशी अवतरण
पाप व्यक्तित्व को देखकर भगवान विष्णु मन ही मन इस प्रकार सोचने लगे मैं जीवों के दुख और सुख का निर्माता हूं मैं उनका स्वामी हूँ, क्योंकि मैंने ही इस पापी व्यक्तित्व की रचना की है, जो सभी बेईमान, धोखेबाज और पापी व्यक्तियों को कष्ट देता है. अब मुझे किसी ऐसे व्यक्ति की रचना करनी चाहिए जो इस व्यक्तित्व को नियंत्रित करे.' इस समय श्री भगवान ने यमराज नामक व्यक्तित्व और विभिन्न नारकीय ग्रह प्रणालियों की रचना की. जो जीव बहुत पापी हैं, उन्हें मृत्यु के बाद यमराज के पास भेजा जाएगा, जो बदले में, उनके पापों के अनुसार, उन्हें पीड़ा सहने के लिए नारकीय क्षेत्र में भेज देंगे.
इन कामों के पश्चात, यमराज के पास गए. जब श्री विष्णु, सिंहासन पर बैठे उन्होंने दक्षिण दिशा से बहुत सी रोने की आवाज़ सुनी. वे इससे आश्चर्यचकित हो गए और इस प्रकार यमराज से पूछा, यह आवाज़ कहां से आ रही है. यमराज ने उत्तर में कहा हे देव पृथ्वी के जीव नरक लोकों में गिर गए हैं. वे अपने कुकर्मों के कारण अत्यधिक पीड़ा झेल रहे हैं. यह भयानक रोना उनके पिछले जन्मों के कष्टों के कारण है. यह सुनकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा में नारकीय क्षेत्र में जाते हैं वहां के निवासियों को देख भगवान विष्णु का हृदय करुणा से भर गया. भगवान विष्णु ने मन ही मन सोचा, मैंने ही इन सभी संतानों को बनाया है और मेरे कारण ही ये कष्ट भोग रहे हैं.
पापों के नाश के लिए हुआ एकादशी का अवतरण
भगवान ने तब अपने स्वयं के रूप से एकादशी के देवता को प्रकट किया. तब जीव एकादशी व्रत का पालन करने लगे और शीघ्र ही वैकुंठ धाम को प्राप्त हो गए. हे जैमिनी! इसलिए एकादशी भगवान विष्णु और परमात्मा का ही स्वरूप है. श्री एकादशी परम पुण्य कर्म है और सभी व्रतों में प्रधान है. एकादशी के आने पर पापपुरुष भगवान विष्णु के पास गया और प्रार्थना करने लगा, जिससे भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और बोले, तुम क्या वरदान चाहते हो. पापपुरुष ने कहा मैं आपकी सन्तान हूं, और मेरे द्वारा ही आपने उन जीवों को कष्ट देना चाहा, जो अत्यन्त पापी हैं.
अब श्री एकादशी के प्रभाव से मैं लगभग नष्ट हो चुका हूँ. हे प्रभु! मेरे मरने के पश्चात् आपके सभी अंश, जिन्होंने भौतिक शरीर धारण किया है, मुक्त हो जाएंगे और वैकुण्ठधाम को लौट जाएँगे. यदि सभी जीवों की यह मुक्ति हो गई, तो आपकी लीला कौन करेगा. हे केशव! यदि आप चाहते हैं कि ये शाश्वत लीलाएँ चलती रहें, तो आप मुझे एकादशी के भय से बचाएं. कोई भी प्रकार का पुण्य कार्य मुझे बांध नहीं सकता. किन्तु केवल एकादशी ही, जो आपका स्वयं का प्रकट रूप है, मुझे बाधा पहुंचा सकती है.अतः कृपा करके मुझे ऐसे स्थान का निर्देश करें जहाँ मैं निर्भय होकर निवास कर सकूं.
भगवान विष्णु ने हंसते हुए पापपुरुष की स्थिति देखकर कहा 'हे पापपुरुष! तीनों लोकों का कल्याण करने वाली एकादशी के दिन तुम अन्न रूपी भोजन का आश्रय ले सकते हो तब एकादशी के रूप में मेरा स्वरूप तुम्हें बाधा नहीं पहुंचाएगा. इसलिए जो लोग आत्मा के परम लाभ के बारे में गंभीर हैं, वे एकादशी तिथि को कभी अन्न नहीं खाएँगे. भगवान विष्णु के निर्देशानुसार, भौतिक जगत में पाए जाने वाले सभी प्रकार के पाप कर्म इस अन्न रूपी स्थान में निवास करते हैं. जो कोई एकादशी का पालन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और कभी भी नरक लोक में नहीं जाता है.