देव दिवाली : देवताओं की दीपावली
देव दिवाली 2024 महत्वपूर्ण तिथि
हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाई जाती है. देव दीपावली कोप देवताओं की दीपावली के पर्व नम से जान अजाता है. मान्यताओं के अनुसर इस दिन देवताओं दीपावली का पर्व मनाया था. इस दिन दिवाली की तरह ही चारों तरफ दीप जलाए जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देव दीपावली के दिन सभी देवी-देवता धरती पर उतरते हैं और गंगा स्नान करते हैं. इस दिन गंगा स्नान का महत्व भी बहुत माना जाता है. पृथ्वी पर इस समय देवी-देवताओं के स्वागत की खुशी में दीप जलाए जाते हैं. देव दीपावली की असली धूम-धाम काशी यानी बनारस में देखने को मिलती है.
देव दीपावली के दिन दीप जलाने, गंगा स्नान करने का महत्व बहुत विशेष होता है. देव दीपावली के दिन मंदिर, घर के मुख्य द्वार और आंगन में दीये जरूर जलाने चाहिए. इस दिन देवी-देवताओं और इष्ट देव के नाम का भी दीया जलाते हैं. पूर्वजों का आगमन भी इस दिन होता है. देव दीपावली के दिन 365 दिप जलाने का विधान भी है जो वर्ष भर के अनुसार होता है. देव दीपावली के दिन भगवान शिव, विष्णु जी और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है. माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं, अखंड दीपक जलाते हैं. देव दीपावली के दिन तुलसी के पौधे के पास दीपक जलाते हैं.
देव दिवाली 2024 मुहूर्त
इस वर्ष देव दिवाली 15 नवम्बर 2024 के दिन मनाई जाएगी. प्रदोष काल देव दीपावली मुहूर्त के लिए समय शाम 05:10 बजे से शाम 07:47 बजे तक होगा.
पूर्णिमा तिथि का आरंभ 15 नवंबर 2024 को सुबह 06:19 बजे से
पूर्णिमा तिथि का समापन 16 नवंबर 2024 को सुबह 02:58 बजे
देव दीपावली कथा
सनातन धर्म में देव दिवाली का त्यौहार भी दिवाली के दिन ही मनाया जाता है. दीपावली का यह छोटा रूप देव दिवाली, दिवाली के बाद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इसे त्रिपुरोत्सव या त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं. हिंदू कैलेंडर के अनुसार देव दिवाली कार्तिक महीने में आती है. इसके अलावा भारत के कई हिस्सों में कार्तिक पूर्णिमा मनाई जाती है. देव दिवाली के मौके पर बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी पटाखे फोड़कर जश्न मनाते हैं. कुछ प्राचीन मिथकों में कहा गया है कि देव दिवाली के इस पावन दिन को मनाने के लिए देवी-देवता स्वर्ग से भी उतरते हैं.
शिव पुराण में उल्लेख है कि त्रिपुरासुर नामक राक्षस धरती पर मनुष्यों के साथ-साथ स्वर्ग में रहने वाले देवताओं पर भी अत्याचार कर रहा था. त्रिपुरासुर ने पूरी दुनिया पर सफलतापूर्वक विजय प्राप्त की और तपस्या के माध्यम से वरदान प्राप्त किया कि उसका नाश तभी होगा जब उसके द्वारा बनाए गए तीन शहरों को एक ही बाण से छेदा जाएगा. इन तीनों शहरों का नाम 'त्रिपुरा' रखा गया.
राक्षसों के इस क्रूर कृत्य से दुखी होकर देवताओं ने भगवान शिव से मनुष्यों और देवताओं की रक्षा करने की प्रार्थना की. उनकी प्रार्थना पर भगवान शिव ने रौद्र रूप धारण किया और त्रिपुरासुर का वध करने के लिए तैयार हो गए. कार्तिक पूर्णिमा के पावन दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का अस्तित्व समाप्त कर दिया और एक ही बाण से उसके तीन नगरों को भी नष्ट कर दिया. इस विजय के उपलक्ष्य में स्वर्ग के देवी-देवता इस दिन को देव दिवाली के रूप में मनाते हैं. वर्तमान में इसे देव दिवाली या छोटी दिवाली के नाम से जाना जाता है.
देव दीपावली गंगा स्नान
देव दिवाली के दौरान भक्त धर्म नगरियों का भ्रमण करते हैं. देव दिवाली के दौरान आयोजित होने वाले गंगा महोत्सव में हज़ारों-लाखों भक्त शामिल होते हैं. पवित्र नदियों में स्नान करते हैं धार्मिक अनुष्ठानों के बाद, लोग पास के मंदिर में जाते हैं और देवी-देवताओं को नमस्कार करते हैं. ईश्वर से अपने लिए आशीर्वाद भी मांगते हैं. देव दिवाली का त्योहार दिवाली के बाद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. दिवाली की तरह इस दिन भी लोग पूजा-पाठ करते हैं, घरों के बाहर दीये जलाते हैं और गंगा के तट पर मिट्टी के दीये जलाए जाते हैं.
इस दिन के विशेष महत्व के कारण इस दिन श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान भी करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करने के लिए विभिन्न गंगा घाटों पर पहुंचते हैं. देव दिवाली प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होती है और कार्तिक पूर्णिमा को इसका समापन होता है. इस दौरान गंगा नदी के तट पर शाम की आरती की जाती है. आरती के साथ-साथ रंग-बिरंगी रोशनी और छोटे-छोटे दीयों से हर जगह को सजाया जाता है.
देव दीपावली पूजा महत्व
देव दीपावली के बारे में पौराणिक कथाएं बहुत सी हैं. एक कथा के अनुसार देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शंकर ने सबको परेशान करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था, जिसकी खुशी में देवताओं ने दीपावली मनाई थी, जिसे बाद में देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्ति की खुशी में देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दिवाली मनाई थी. ऐसा भी कहा जाता है कि त्रिपुरासुर के अंत की खुशी में सभी देवता भगवान शिव के धाम काशी पहुंचे और उनका आभार व्यक्त करते हुए गंगा तट पर दीप जलाए. कहा जाता है कि तभी से इस दिन को देव दीपावली के नाम से जाना जाने लगा.त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तप बल से स्वर्ग भेज दिया था. इससे देवता परेशान हो गए और त्रिशंकु को देवताओं ने स्वर्ग से निकाल दिया. शापित त्रिशंकु हवा में लटके रह गए. त्रिशंकु के स्वर्ग से निकाले जाने से परेशान विश्वामित्र ने अपने तप बल से धरती-स्वर्ग आदि से मुक्त नई सृष्टि की रचना शुरू कर दी इसी क्रम में विश्वामित्र ने वर्तमान ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मूर्तियां बनाईं और मंत्रोच्चार कर उनमें प्राण फूंकने लगे. पूरी सृष्टि अस्थिर हो गई. हर तरफ हाहाकार मच गया. इस अफरातफरी के बीच देवताओं ने राजा विश्वामित्र से प्रार्थना की. ऋषि प्रसन्न हुए और उन्होंने नई सृष्टि बनाने का अपना संकल्प वापस ले लिया. देवताओं और ऋषियों में खुशी की लहर दौड़ गई. इस अवसर पर धरती, स्वर्ग और पाताल सभी जगह दीपावली मनाई गई.