कार्तिक पंचक : पंचक सबसे अधिक शुभ और पूजनीय समय
पंचक एक ऎसा समय माना जाता है जिसे अनुकूल कम ही कहा गया है. लेकिन कार्तिक मास में आने वाले पंचक की स्थिति उन पंचक से भिन्न होती है जो पंचांग गणना के अनुसार निर्मित होते हैं. कार्तिक माह में आने वाले पंचक को भीष्म पंचक के नाम से जाना जाता है. ऎसे में पंचक का ये समय सबसे ज्यादा शुभ दिनों में जाना जाता है. इन दिनों को भीष्म पंचक या विष्णु पंचक के नाम से जाना जाता है. यह पांच दिन बहुत ही शुभ और खास माने गए हैं. कार्तिक मास में भीष्म पंचक व्रत का विशेष महत्व है. इस पर्व को पंच भिखू के नाम से भी जाना जाता है.
पांच दिवसीय पंचक व्रत पौराणिक महत्व
देव उत्थान एकादशी तिथि से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक इन पांच दिनों का प्रभाव होता है. धर्म कथाओं में इस दिन की शुभता के बारे में विचारों में हरि भक्ति विलास के अनुसार,जो भक्त यह व्रत करने में सक्षम है, तो उसे भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए भीष्म-पंचक पर कुछ विशेष खाद्य पदार्थों से उपवास करना चाहिए. पद्म पुराण में कहा गया है कि जो भक्त इस पंचक व्रत को करते हैं, उन्हें आध्यात्मिक उन्नति और भगवान कृष्ण की शुद्ध भक्ति प्राप्त होती है. यह व्रत पहले सत्ययुग में ऋषि वशिष्ठ, भृगु, गर्ग आदि द्वारा कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों में किया जाता था. त्रेतायुग में अम्बरीष महाराज ने इस व्रत को किया था और अपने सभी राजसी सुखों का त्याग किया था. भीष्म पंचक व्रत करने से, यदि कोई इसे करने में असमर्थ रहा हो, तो उसे चारों चातुर्मास व्रतों का लाभ मिलता है.
भीष्म-पंचक माता गंगा और राजा शांतनु के पुत्र भीष्म को समर्पित है जो कुरु वंश के महान राजा भरत के वंशज हैं. महाभारत और श्रीमद्भागवतम् के अनुसार भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचारी रहने का व्रत लिया था, अपनी युवावस्था में, उन्हें वरदान मिला था कि वे अपनी इच्छा के अनुसार मरेंगे. जब महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद गंगा पुत्र भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तर की ओर बढ़ने की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब भगवान कृष्ण पांडवों के साथ उनके पास गए और युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह से प्रार्थना करी थी की कृपया हमें राज्य चलाने के बारे में सलाह दें और पांच दिन तक उन्होंने ज्ञान प्रदान किया. पद्म पुराण में लिखा है कि कार्तिक मास के अंतिम पांच दिनों में इस व्रत को करने वाले भक्तों को पापों से मुक्ति प्राप्त होती है.
भीष्म पंचक : पांच दिनों का धार्मिक महत्व
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से भीष्म पंचक का समय शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस पंचक में किए गए स्नान और दान को बहुत शुभ माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भीष्म पंचक के दौरान व्रत रखने को विधान भी कहा जाता है. भीष्म पंचक का यह व्रत अत्यंत शुभ होता है और भक्तों के पुण्य में वृद्धि करता है. जो कोई भी व्यक्ति इन पांच दिनों तक भक्तिपूर्वक व्रत, पूजा और दान करता है, वह मोक्ष का अधिकारी बन जाता है.
भीष्म पंचक कथा
एक बहुत ही सुंदर गांव था जहां एक साहूकार अपने बच्चों के साथ रहता था. साहूकार का एक बेटा था और उसकी एक बहू भी थी. बहू बहुत धार्मिक थी. वह नियमित रूप से पूजा-पाठ करती थी और सभी रीति-रिवाजों का पालन करती थी. कार्तिक मास में भी यही होता था. वह पूरे कार्तिक मास में सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान करती थी. उसी गांव के राजा का बेटा भी गंगा स्नान करता था. एक बार राजा के बेटे को पता चला कि उससे पहले कोई गंगा स्नान कर चुका है. वह कोई और नहीं बल्कि साहूकार की बहू थी. लेकिन राजा के बेटे को यह नहीं पता था कि यह वही है और वह उत्सुक हो गया. कार्तिक माह समाप्त होने में केवल पाँच दिन शेष थे और वह यह जानने के लिए बेताब था कि वह व्यक्ति कौन है.
स्नान समाप्त करने के बाद, बहू अपने घर की ओर चलने लगती है. राजा का बेटा उसके पीछे-पीछे चलता है. पदचाप सुनकर बहू तेजी से चलने लगती है. रास्ते में उसकी पायल उतर जाती है. राजा के बेटे को पायल मिल जाती है. वह बहू के प्रति बहुत आकर्षित हो जाता है. वह सोचता है कि वह स्त्री कितनी सुंदर होगी, जिसकी पायल ही इतनी सुंदर है. अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए वह घोषणा करता है कि जिस स्त्री की पायल उसे भोर में मिली है, वह उसके सामने आए.
जवाब में, साहूकार की बहू संदेश भेजती है कि वह वही है जो सुबह-सुबह गंगा में स्नान कर रही थी. वह आगे बताती है कि यदि राजा का बेटा उसे देखना चाहता है तो वह सुबह-सुबह गंगा नदी के तट पर आ सकता है.
कार्तिक स्नान महत्व
कार्तिक माह समाप्त होने में अभी पाँच दिन शेष थे और वह पाँचों दिन आएगी. राजा का बेटा नदी के किनारे एक तोता रखता है और तोते से कहता है कि जब बहू स्नान करने आए तो उसे बता देना. अगले दिन, वह स्नान के लिए जाती है और रास्ते में भगवान से प्रार्थना करती है कि वह उसकी रक्षा करें. वह चाहती है कि राजा का बेटा बिल्कुल भी न उठे ताकि वह शांति से स्नान कर सके. भगवान उसकी इच्छा पूरी करते हैं और राजा का बेटा सोता रहता है.
जब बहू अपना स्नान समाप्त कर लेती है तो वह तोते से चुप रहने और राजा के बेटे को कुछ न बताने के लिए कहती है. वह तोते से उसकी रक्षा करने का अनुरोध करती है. तोता उसकी मदद करने के लिए तैयार हो जाता है. इसलिए, जब राजा का बेटा उठता है और उसे कोई नहीं मिलता है तो वह तोते से पूछता है. तोते ने उसे बताया कि कोई नहीं आया था. निराश राजा का बेटा अगले दिन किसी भी कीमत पर नहीं सोने का फैसला करता है. ऐसा करने के लिए, वह अपनी उंगली काट लेता है ताकि दर्द उसे सोने न दे. बहू फिर से भगवान से उसकी मदद करने के लिए प्रार्थना करती है. उसकी प्रार्थना को स्वीकार करते हुए राजा दर्द के बावजूद फिर से सो जाता है. बहू गंगा में स्नान करती है और राजा के बेटे को देखे बिना वापस चली जाती है.
जब सुबह राजकुमार उठता है, तो वह तोते से बहू के ठिकाने के बारे में पूछता है. एक बार फिर तोता नकारात्मक जवाब देता है. फिर राजकुमार उसकी आँखों में मिर्च लगाने का फैसला करता है ताकि वह सो न सके. बहू एक बार फिर भगवान से उसकी रक्षा करने की प्रार्थना करती है, वह ऐसा करता है और राजकुमार सो जाता है. जब वह उठता है तो वह तोते से सवाल करता है और तोता फिर से कहता है कि उसने किसी को नहीं देखा है. अंत में, वह अपने बिस्तर को साथ ले जाने का फैसला करता है ताकि सोने का सवाल ही न रहे. बहू फिर से भगवान की पूजा करती है और तोते से अनुरोध करती है. वे उसकी इच्छा पूरी करते हैं और फिर से राजकुमार बहू को देखने से रोक दिया जाता है.
आखिरी दिन, राजकुमार ने वहीं रहने का फैसला किया. हालाँकि वह सो जाता है और महिला को नहीं देखता है. चूंकि यह कार्तिक महीने का अंतिम दिन था, इसलिए बहू तोते से कहती है कि वह राजकुमार से कहे कि वह उसकी पायल वापस भेज दे. जब राजकुमार की नींद खुलती है तो तोता उसे सारी कहानी सुनाता है. राजा के बेटे को एहसास होता है कि राजकुमार कितना धार्मिक है.