रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त 2025 | Raksha Bandhan Shubh Muhurat | Raksha Bandhan Muhurat 2025
रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन के प्रेम का प्रतीक होकर चारों ओर अपनी छटा को बिखेरता सा प्रतीत होता है. सात्विक एवं पवित्रता का सौंदर्य लिए यह त्यौहार सभी जन के हृदय को अपनी खुश्बू से महकाता है. इतना पवित्र पर्व यदि शुभ मुहूर्त में किया जाए तो इसकी शुभता और भी अधिक बढ़ जाती है.
राखी में भद्रा का महत्व
धर्म ग्रंथों में सभी त्यौहार एवं उत्सवों को मनाने के लिए कुछ विशेष समय का निर्धारण किया गया है जिन्हें शुभ मुहूर्त समय कहा जाता है, इन शुभ समय पर मनाए जाने पर त्यौहार में शुभता आती है तथा अनिष्ट का भाव भी नही रहता.इसी प्रकार रक्षा का बंधन के शुभ मुहूर्त का समय भी शास्त्रों में निहित है, शास्त्रों के अनुसार भद्रा समय में श्रावणी और फाल्गुणी दोनों ही नक्षत्र समय अवधि में राक्षा बंधन नहीं करना चाहिए. इस समय राखी बांधने का कार्य करना मना है और त्याज्य होता है. मान्यता के अनुसार श्रावण नक्षत्र में राजा अथवा फाल्गुणी नक्षत्र में राखी बांधने से प्रजा का अहित होता है. इसी का कारण है कि राखी बांधते समय, समय की शुभता का विशेष रुप से ध्यान रखा जाता है.
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष 2025 में रक्षा बंधन का त्यौहार 09 अगस्त को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि आरम्भ 08 अगस्त को आरंभ होगी और 09 अगस्त तक व्याप्त रहेगी. भद्रा मुक्त समय होने रक्षाबंधन संपन्न किया जाएगा, यदि यह कार्य करना हो तो मुख त्यागकर इसे पुच्छ में इसे करना चाहिए.
इस वर्ष 2025 में रक्षा बंधन का त्यौहार 09 अगस्त, को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि का आरम्भ 08 अगस्त 2025 को 14:13 से आरंभ होगा और 09 अगस्त रात्रि 13:25 तक व्याप्त रहेगी.
09 अगस्त को भद्रा नहीं रहेगी. रक्षा बंधन समय भद्रा विचार किया जाता है. भद्रा मुक्त समय होने से रक्षाबंधन संपन्न करना अनुकूल होता है. यदि भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए. 09 अगस्त को भद्रा समय नहीं होगा.
अन्य विचारकों के मतानुसार
धर्मशास्त्र के अनुसार किसी त्यौहार एवं उत्सव समय में चौघड़िए तथा ग्रहों के शुभ समय एवं अशुभ समयों को जाना जाता है. रक्षाबंधन के समय में भद्रा काल का त्याग करने की बात कही जाती है, तथा निर्दिष्ट निषेध समय दिया जाता है, अत: वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य होता है. पौराणिक मान्यता के आधार पर देखें तो भद्रा का उचित नहीं माना जाता क्योंकि जब भद्रा का वास किसी उत्सव समय को स्पर्श करता है तो उसके समय को उपयोग में नहीं लाया जाता है भद्रा में नक्षत्र व तिथि के अनुक्रम तथा पंचक के पूर्वाद्ध नक्षत्र के मान व गणना से इसका समय में बदल सकता है.
मान्यतानुसार भद्रायुक्त काल का वह समय छोड़ देना चाहिए, जिसमें भद्रा के मुख तथा पृच्छ का विचार हो रहा हो, रक्षाबंधन का पर्व भद्रा रहित अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा में करने का विधान है. यदि पहले दिन अपराह्न काल भद्रा व्याप्त हो तथा दूसरे दिन उदयकालिक पूर्णिमा तिथि तीन मुहूर्त्त से अधिक हो तो उसी उदयकालिक पूर्णिमा के दोपहर समय में रक्षाबंधन मनाना चाहिए. इस दृष्टि से भद्रा के उक्त समय को छोड़कर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा सकता है.
रक्षा के सूत्र के लिए उचित मुहूर्त्त का इंतजार सभी की चाह है पर सबसे खास बात है राखी के साथ कुमकुम रोलौ, हल्दी, चावल, दीपक, अगरबती, मिठाई का उपयोग किया जाता है. कुमकुम हल्दी से भाई का टीका करके चावल का टीका लगाया जाता है और भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है.
अन्य त्यौहारों की तरह इस त्यौहार पर भी उपहार और पकवान अपना विशेष महत्व रखते है.इस दिन पुरोहित तथा आचार्य सुबह सुबह अपने यजमानों के घर पहुंचकर उन्हें राखी बांधते है, और बदले में धन वस्त्र, दक्षिणा स्वीकार करते है. राखी बांधते समय बहनें निम्न मंत्र का उच्चारण करें, इससे भाईयों की आयु में वृद्धि होती है.
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: I तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षे मा चल मा चल II”
रक्षा बंधन का पर्व जिस व्यक्ति को मनाना है, उसे उस दिन प्रात: काल में स्नान आदि कार्यों से निवृ्त होकर, शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद अपने इष्ट देव की पूजा करने के बाद राखी की भी पूजा करें साथ ही पितृरों को याद करें व अपने बडों का आशिर्वाद ग्रहण करें.