वृश्चिक संक्रांति : जाने इसके महत्व और पूजन विधि के बारे में विस्तार पूर्वक

ज्योतिष में सूर्य का महत्व सर्वोपरी रहा है. प्राचीन भारतीय ज्योतिष में सबसे महत्वपूर्ण दिन चंद्रमा की गति पर आधारित होते हैं, संक्रांति सूर्य की गति का प्रतीक है. प्रत्येक संक्रांति उस संक्रमण काल को दर्शाता है जहां सूर्य राशि चक्र की एक नई राशि, राशि, नक्षत्र में प्रवेश करता है. दो विशेष रूप से महत्वपूर्ण संक्रांति हैं. वृश्चिक संक्रांति, वह दिन है जो सूर्य की दक्षिण यात्रा को दिखाता है. 

इस साल वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर 2024 को शनिवार के दिन होगा प्रवेश समय 07:32 का रहने वाला है.

सूर्य हमारी आत्मा को इंगित करता है, ऊर्जा, प्रकाश और जीवन का स्रोत है. यह दिन और रात, ऋतुओं और वर्षों को परिभाषित करता है, और यह अधिक सर्दी का मौसम लाता है. सूर्य जीवन की नींव और आधार है और हमारे अस्तित्व के सभी पहलुओं को आकार देता है. संक्रांति का पालन सूर्य की गति और पर्यावरण पर इसके प्रभाव, किसी के पूरे अस्तित्व और दैनिक जीवन को देखने और इन संबंधों में सामंजस्य स्थापित करने का एक विशेष अवसर है.

संक्रांति समय काल क्यों है विशेष

संक्रांति एक हिंदू त्योहार है और यह दिन भगवान सूर्य की पूजा के लिए विशेष समय होता है. वृश्चिक संक्रांति का महत्व, उस दिन का प्रतीक है जब सूर्य तुला राशि से निकल कर वृश्चिक राशि में गोचर करता है. सौर पंचांग के अनुसार, यह हर साल नवंबर माह मध्य को पड़ता है. यह त्योहार सर्दियों की अधिकता का होता है. मौसम में बड़े बदलाव होने लगते हैं. इसका प्रकृतिक और धार्मिक दोनों महत्व रहा है. इसे हिंदू पंचांग के सबसे शुभ दिनों में से एक माना जाता है.

वृश्चिक संक्रांति क्यों मनाई जाती है

संक्रांति का समय भगवान सूर्य देव की पूजा का होता है. यह हिंदू संस्कृति में एक विशिष्ट सौर दिवस को दिखाता है. इस शुभ दिन पर, सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करता है. इसलिए इस पर्व को दक्षिणायन समय के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन देश भर के किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं. यह अवसर स्वास्थ्य, धन और खुशी प्रदान करने के लिए प्रकृति को धन्यवाद देने का स्मरण कराता है. सूर्य के संपर्क में आने से मानव शरीर को विटामिन डी मिलता है, जिसकी दुनिया भर की सभी चिकित्सा शाखाओं में व्यापक रूप से सिफारिश की गई है.

वृश्चिक संक्रांति 2024: तिथि और पूजा का समय

वृश्चिक संक्रांति पुण्य कला अगले दिन मध्याह्न तक रहेगा.

वृश्चिक संक्रांति पौराणिक संदर्भ 

पौराणिक कथाओं के अनुसार संक्रांति को देवता माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, संक्रांति ने शंकरसुर नाम के एक राक्षस का वध किया था. पंचांग अनुसार प्रत्येक संक्रांति की उम्र, रूप, वस्त्र, दिशा, गति एवं फल के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है. संक्रांति गतिविधियों में विशेशः रुप से स्नान करना, भगवान सूर्य को नैवेद्य अर्पित करना, दान या दक्षिणा देना, श्राद्ध अनुष्ठान करना और उपवास या पारण करना, पुण्य काल के दौरान किया जाना चाहिए. यदि संक्रांति सूर्यास्त के बाद हो तब सभी पुण्य काल की गतिविधियों को अगले सूर्योदय तक स्थगित कर दिया जाता है. सभी पुण्य काल गतिविधियों को दिन में किया जाना उचित होता है. 

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन भगवान की रात का प्रतीक है, और उत्तरायण को भगवान के दिन का प्रतीक माना जाता है. इस समय के अवसर पर सूर्य दक्षिण की ओर अपनी यात्राकर रहा होता है. इस अवसर पर लोग पवित्र स्थानों पर गंगा, गोदावरी, कृष्णा, यमुना नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं, यह समय सूर्य सभी राशियों को भी प्रभावित करता है. 

वृश्चिक संक्रांति में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है. इसी कारण से भारत में सर्दियों में रातें लंबी और दिन छोटे होते हैं. 

वृश्चिक संक्रांति के मौके पर भक्त विभिन्न रूपों में सूर्य देव की पूजा करते हैं. इस अवधि के दौरान कोई भी पुण्य कार्य या दान अधिक फलदायी होता है.

वृश्चिक संक्रांति का पर्व देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. वृश्चिक संक्रांति के दिन उड़द, चावल, सोना, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का विशेष महत्व होता है. 

वृश्चिक संक्रांति ज्योतिष महत्व 

वृश्चिक संक्रांति समय सूर्य अपनी नीच राशि तुला से निकल कर वृश्चिक में आता है. इस समय पर सूर्य अपनी निर्बल अवस्था से निकल जाता है. सूर्य इस समय पर अपने मित्र मंगल की वृश्चिक राशि आता है. इस राशि में जाने पर सूर्य को बल की प्राप्ति होती है. सूर्य के वृश्चिक राशि में होने से संसाधनों को बेहतरीन रुप से उपयोग करने का समय भी होता है. इस समय पर अनुसंधान से संबंधित कार्यों को भी विशेष परिणाम प्राप्त होते हैं.

पितरों का तर्पण कार्य 

संक्रांति का समय तर्पण कार्य हेतु भी अनुकूल माना जाता है. मार्गशीर्ष संक्रांति के समय पर पूजा पाठ व दान कार्यों को करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है. इस समय पर ब्राह्मण द्वारा पितरों के निम्मित कार्य किए जाते हैं. भोजन एवं दान इत्यादि का कार्य होता है. इस समय पर ब्राह्मण भोजन भी किया जाता है. 

वृश्चिक संक्रांति प्रभाव 

वृश्चिक संक्रांति का समय मंगल के फलों में करता है वृद्धि, इस समय पर सूर्य का मंगल के स्वामित्व की राशि वृश्चिक में गोचर होता है. मंगल एक आक्रामक एवं अग्नि युक्त ग्रह है. सूर्य भी अपनी ऊर्जा एवं पराक्रम में सदैव आगे रहता है. इस कारण से दो समान चीजों का एक साथ आना अपनी उस प्रवृति के मूल तत्व को विस्तार देने वाला होगा ही. 

दूसरा तथ्य यह है की वृश्चिक राशि एक जल तत्व युक्त राशि है, ऎसे में इस शीतलता का प्रभाव भी गोचर को प्रभावित करने वाला होगा. वृश्चिक संक्रांति का समय भी शीत ऋतु के समय को भी दर्शाता है. इस समय सूर्य की गर्मी में कमी भी आती है तथा इस समय पर सूर्य की किरणों में मौजूद शीतलता प्रकृति में भी अपना असर डालती है. इसलिए ये समय प्रकृति के अनुरुप स्वयं को ढ़ालने के लिए भी आवश्यक होता है. 

वृश्चिक संक्रांति मंगल पूजा 

वृश्चिक संक्रांति के समय सूर्य उपासना के साथ ही मंगल ग्रह शांति एवं पूजा करने से मंगल ग्रह की शुभता प्राप्त होती है. यदि कुंडली में मंगल शुभ प्रभाव में नहीं है या किसी प्रकार से मंगल के शुभ फलों की प्राप्ति नही हो पाती है तो उस स्थिति में वृश्चिक संक्रांति के समय पर मंगल देव का पूजन अत्यंत लाभकारी बनता है. इस समय पर मंगल मंत्र जाप, दान एवं हवन इत्यादि के काम द्वारा मंगल शांति संभव हो पाती है.