ऋषि जमदग्नि | Saint Jamdagni | Maharshi Jamadagni
जमदग्नि ऋषि का जन्म भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र के रुप में हुआ था. जमदग्नि जिनकी गणना 'सप्तऋषियों' में होती है इनकी पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं. भृगुवंशीय जमदग्नि ने अपनी तप्सया एवं साधना द्वारा उच्च स्थान को प्राप्त किय अथा उनके समक्ष सभी आदर भाव रखते थे. ऋषि जमदग्नि तपस्वी और तेजस्वी ऋषि थे. ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पांच पुत्र रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्ववानस और परशुराम हुए.
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब पृथ्वी पर हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का आतंक एवं अत्याचार बढ़ जाता है तब सभी लोग इन राजाओं द्वारा त्रस्त हो जाते हैं. ब्राह्मण एवं साधु असुरक्षित हो जाते हैं धर्म कर्म के कामों में यह राजा लोग व्यवधान उत्पन्न करने लगते हैं. ऐसे समय में भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ को करते हैं जिससे प्रसन्न होकर भगवान वरदान स्वरूप उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देते हैं और उनकी पत्नी रेणुका से उन्हें पाँच पुत्र प्राप्त होते हैं जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्वानस और परशुराम. इन सभी में परशुराम जी उन हैहयवंशी राजाओं का अंत करते हैं.
जमदग्नि और कार्तवीर्य अर्जुन | Jamdagni and Kartavirya Arjun
हैहयवंश का राजा कार्तवीर्य अर्जुन बहुत ही अत्याचारी राजा था. एक बार वह जमदग्नि ऋषि के आश्रम में जाता है. जहां पर वह कामधेनु गाय की विशेषता को देखकर उसे अपने साथ ले जाने का प्रयास करता है परंतु जमदग्नि कार्त्तवीर्य अर्जुन को कामधेनु गौ देने से मना कर देते हैं. इस पर वह राजा जमदग्नि ऋषि का वध कर देता है तथा कामधेनु गाय को अपने साथ ले जाता है.
अपने पिता की हत्या का बदला परशुराम कार्तवीर्य को मारकर लेते हैं और कामधेनु वापिस आश्रम में ले आते हैं. अपने पिता का अन्त्येष्टि संस्कार सम्पन्न करने के उपरांत वह प्रण लेते हें कि पृथ्वी की क्षत्रियों से विहीन कर देंगे ओर इसके लिए वह समस्त पृथ्वी पर घूम-घूमकर इक्कीस बार क्षत्रियों का संहार करते हैं.
जमदग्नि और रेणुका
ऋषि जमदग्नि जी की पत्नि रेणुका एक पतिव्रता एवं आज्ञाकारी स्त्री थी वह अपने पति के प्रती पूर्ण निष्ठावान थीं किंतु एक गलती के परिणाम स्वरुप दोनों के संबंधों में अलगाव की स्थिति उत्पन्न होगी जिस कारण ऋषि ने उन्हें मृत्यु का दण्ड दिया. प्राचीन कथा अनुसार एक बार रेणुका जल लेने गई लिए नदी पर जाती हैं. जहां पर गंधर्व चित्ररथ अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहे होते हैं उन्हें देख रेणुका उन पर आसक्त हो गई जाती हैं और जल लाने में विलंब हो जाने से यज्ञ का समय समाप्त हो जाता है. तब मुनि जमदग्नि ने अपनी योग शक्ति द्वारा पत्नी के मर्यादा विरोधी आचरण को देखकर अपने पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा देते हैं.
परंतु तीनों पुत्र मना कर देते हैं इस केवल परशुराम ऎसा करने को तैयार होते हैं तब जमदग्नि अपने तीनों पुत्रों को ने सबको संज्ञाहीन कर देते हैं और पिता की आज्ञा स्वरूप परशुराम माँ का वध कर देते हैं. परशुराम जी की पितृ भक्ति देख कर पिता जमदग्नि उसे वर माँगने को कहते हैं और परशुराम पिता से वरदान माँगते हैं कि वह उनकी माता को क्षमा कर उन्हें जीवित कर दें तथा सभी भाईयों को भी चेतना युक्त कर दें. इस प्रकार उनके वरदान स्वरूप उनकी माता एवं भाई दोबारा जीवन प्राप्त करते हैं.