नन्दा(Nanda Tithi) , भद्रा (Bhadra Tithi) , जया (Jaya Tithi) , रिक्ता (Rikta Tithi) और पूर्णा तिथियां (Poorna Tithi) एक पक्ष में तीन चरण में आती हैं. शुक्ल पक्ष के प्रथम चरण में ये तिथियां अशुभ, द्वितीय चरण में मध्यम फल देने वाली तथा तृतीय में उपयुक्त और शुभफलदायी होती हैं. परन्तु कृष्ण पक्ष में यह क्रम उल्टा चलता है. प्रथम चरण में ये तिथियां उपयुक्त एवं शुभफलदायी, द्वितीय में मध्यम फल देने वाली तथा तृतीय में अशुभ होती हैं.
शुक्ल पक्ष की तिथि के प्रथम चरण में चन्द्र सौर चन्द्र वृत में 60 अंश पर रहता है इसलिए इस दौरान चन्द्रमा अशुभ फलदायी होता है. दुसरे चरण में चन्द्र 60 से 120 अंश पर रहता है और इस दौरान चन्द्रमा न ही ज्यादा अशुभ और न ही शुभ होता है. तीसरे में चन्द्र 120 से 180 अंश पर रहता है और इस दौरान चन्द्रमा बहुत ज्यादा अशुभफलदायी होता है. परन्तु कृष्ण पक्ष में पहले चरण के दौरान चन्द्र 180 से 240 के अंश पर रहता है तथा अत्यधिक शुभ फलदायी होता है. इस पक्ष के दूसरे चरण में चन्द्र 240 से 300 के अंश पर रहता है और इस दौरान चन्द्रमा से प्राप्त फल न ही ज्यादा शुभ होते हैं और न ही अशुभ. इसी तरह इस पक्ष के तीसरे चरण में चन्द्र 300 से 360 के अंश पर रहता है और यह बहुत ही ज्यादा अशुभ फलदायी होता है.
अशुभ फलदायी तिथियां (Inauspicious Tithis)
शुभ कार्यो के लिए चौथी, छठवीं, आठवीं, नौवीं, बारहवीं, चौदहवीं और पन्द्रहवीं तिथियों को अशुभ फलदायी माना जाता है. इन तिथियों में व्यक्ति को कार्य करने तथा नये कार्य की शुरुआत करने से बचना चाहिए. इन तिथियों में कुछ अपवादों को छोड़ दें तो व्यक्ति को शुभ फल नहीं मिलते, इसमें छठी तिथि बहुत ज्यादा अशुभ फलदायी नहीं होती. अगर शुक्र अथवा गुरु लग्न में है तो व्यक्ति को अशुभ फल नही मिलता क्योंकि यह अशुभ तिथि के नकारात्मक प्रभाव को नष्ट कर देता है. इसी तरह अगर कोण शुभ हैं तो रिक्ता तिथि के नकारात्मक प्रभाव भी कम हो जाते हैं. अगर गुरु अच्छी अथवा अपने मित्रवत राशि में हो तो इस स्थिति में छठवीं, आठवीं और पन्द्रवीं राशि अशुभ फल नहीं देती.पक्ष चित्रा तिथियां (Paksha Chitra Tithis)
उपरोक्त अशुभ तिथियों को पक्ष चित्रा तिथी के नाम से भी जाना जाता है, जिसका मतलब कमजोर स्थिति से है. यह तिथियां मन में बुरे विचार और दुख का कारक होती हैं और इनसे व्यक्ति की कमजोरी और उसके अनिश्चित व्यवहार का विचार किया जाता है.पर्व तिथियां (Parva Tithis)
चौथी, आठवीं, बारहवीं, पन्द्रहवीं और संक्रान्ति के दौरान आने वाली तिथियों को पर्व तिथि के नाम से जाना जाता है, जिसका मतलब टूटना होता है. इन तिथियों में आमने-सामने बदलाव और परिवर्तन का कार्य करने से व्यक्ति को अच्छे फल नहीं मिलते. अत: इस दौरान व्यक्ति को शुभ कार्य की शुरुआत करने से बचना चाहिए. लेकिन अगर कुछ मूलभूत बदलाव करने हो तो पर्व तिथि सूक्ष्म रुप से ही सही परन्तु व्यक्ति के पक्ष में होती है.काली तिथियां (Black Tithis)
शुक्ल पक्ष की पहली और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, चौदहवीं और पन्द्रहवीं तिथि को काली तिथि के नाम से जाना जाता है. शुभ कार्य की शुरुआत के लिए कुछ विशेष मामलों को छोड़ दें तो इन तिथियों को अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि इन तिथियों के दौरान चन्द्रमा डूबा तथा सूक्ष्म रुप से फलदायी होता है.कृष्ण पक्ष की तिथियां (Krishna Paksha Tithis)
कृष्ण पक्ष की पहली पांच तिथियां शुभ होंगी या अशुभ कुछ नहीं कहा जा सकता परन्तु पहली तिथि को छोड़कर शुक्ल पक्ष की पहली पांच तिथियां शुभ फलदायी होती हैं. कृष्ण पक्ष की दूसरी पांच तिथियां शुक्ल पक्ष की तिथियों की तुलना में न ही ज्यादा शुभ और न ही अशुभ होती हैं. इसलिए अगर कोई अच्छा विकल्प नहीं है तो इस दौरान कार्य करना व्यक्ति के लिए अच्छा रहता है. कृष्ण पक्ष की अन्तिम पांच तिथियों में कुछ अन्धी तिथियां आती हैं इसलिए इस दौरान किसी शुभ कार्य की शुरुआत करने से बचना चाहिए.क्षय और अन्धी तिथियां (Kshaya and blind tithis)
तिथि उस स्थिति में प्रभावकारी मानी जाती है जब वह एक सूर्योदय में पूरी हो जाये, परन्तु अगर कोई तिथि दो सूर्योदय में पूरी होती है तो उसे अन्धी तिथि कहा जाता है. इसी तरह अगर कोई तिथि सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त की बजाय अगले सूर्योदय को खत्म होती है तो उसे क्षय तिथि कहते हैं. यह दोनों तिथियां अच्छी नहीं मानी जाती अत: व्यक्ति को इन तिथियों के दौरान शुभ कार्य की शुरुआत करने से बचना चाहिए.जन्म तिथि (Birth Tithi)
जिस पक्ष और तिथि में व्यक्ति का जन्म हुआ हो उस पक्ष की तिथि से व्यक्ति को बचना चाहिए.शून्य तिथियां (Shunya Tithis)
प्रत्येक महिने की कुछ शून्य तिथियां होती हैं, कौन सी तिथि शून्य तिथी है इस सम्बन्ध में कालप्रकाशिका और मूहुर्त चिन्तामणि तरह-तरह के विचार रखते हैं. कालप्रकाशिका से सिर्फ महिने के आधार पर शून्य तिथि का निर्धारण किया जाता है, जबकी मूहुर्त चिन्तामणि से पक्ष और महिने दोंनों के आधार पर शून्य तिथि का निर्धारण होता है. परन्तु कालप्रकाशिका द्वारा महीने के आधार पर निकाली गयी तिथि मूहुर्त चिन्तामणी से पक्ष के आधार पर निकाली गयी तिथि ज्यादा प्रभावकारी मानी जाती है.शून्य तिथि के गलत प्रभाव को कम करने का अगर कोई उपाय नहीं है तो इस दौरान किसी भी स्थिति में कार्य को पूरा करने से बचना चाहिए. अगर कार्य समाप्ति की ओर हो और उसे समाप्त करने में कुछ परेशानी आ रही हो तो शून्य तिथी में कार्य करना कुछ स्थितियों में शुभ फलदायी होता है. जैसे-
अगर तिथि का स्वामी दुस्थान में बैठा हो और शून्य राशि दुस्थाना के स्वामी के अलावा किसी अन्य ग्रह में नहीं बैठा हो अथवा तिथि का स्वामी दुस्थान के स्वामी से सम्बन्ध बना रहा हो.
इस स्थिति में सृजनशील और फायदेमंद कार्यक्रम करना भी उपयुक्त रहता है क्योंकि इन मामलों में शून्य तिथि के सारे गलत प्रभाव खत्म हो जाते हैं. अगर स्थिति पक्ष में नहीं है तो शून्य तिथि की थोड़ी परेशानियों के बाद निम्न स्थितियों में तिथि पक्ष में आ सकेगी. अगर लग्न का स्वामी अपनी राशि से सम्बन्ध बना रहा हो तो शून्य तिथि के नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जायेंगे. अगर चन्द्रमा की तरह गुरु भी उसी नक्षत्र में हो तो शून्य तिथि के सारे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. अगर सभी शुभफल मजबूत स्थिति में हो तो इस स्थिति में भी शून्य तिथि के सारे प्रभाव समाप्त हो जाते हैं.
अन्धी तिथियां (Blind Tithis)
शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं चौदहवीं पन्द्रवीं तथा कृष्ण पक्ष की पहली, दुसरी, तीसरी और चौथी तिथि को अन्धी तिथि कहा जाता है. शुक्ल पक्ष की आठवीं, नौवी, दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं और तेरहवीं तिथि को अर्धदृष्टी तथा चौदहवीं और पन्द्रवीं को पूर्णदृष्टी तिथि कहा जाता है. कृष्ण पक्ष की पहली, आठवीं, नौवीं, दसवीं को अर्धदृष्टी तिथि तथा दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी, छठवीं और सातवीं को पूर्णदृष्टी तिथि कहा जाता है.अर्धदृष्टी कुछ हद तक ही शुभ फलदायी होती है तथा पूर्णदृष्टी कार्य की शुरुआत के लिए बहुत ही ज्यादा अच्छी और उपयुक्त होती है. अन्धी तिथि कुछ अपवादों को छोड़कर शुभ फलदायी नहीं होती इसलिए इस तिथि के दौरान कार्य की शुरुआत करना अच्छा नही होता परन्तु अगर बुध तीसरे, छठे, दसवें अथवा ग्यारहवें तथा चन्द्रमा नौवें तथा दसवें घर में हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो अन्धी तिथि के सारे नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाते हैं.
अगर बुध, गुरु अथवा शुक्र चौथे, सातवें, अथवा दसवें घर में शुभ होकर स्थित हो तो भी अन्धी तिथि के नकारात्मक प्रभाव खत्म हो जाते हैं. अगर ग्रह शुभ स्थिति में अथवा लगन में हो तो अन्धी तिथि के सारे नकारात्मक प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. अगर चन्द्रमा चौथे, सातवें, नौवें तथा दसवें घर में हो तो भी अन्धी तिथि का गलत व्यक्ति पर नहीं पड़ता.
युगादि और मनवादी तिथियां (Yugadi and Manvadi Tithis)
ऎसा माना जाता है कि निम्न महिनों और तिथियों मे इन युगों की शुरुआत हुई और इन्हें युगादि तिथि कहते है.सत्ययुग कार्तिक महिने में शुक्ल पक्ष की नौवीं तिथि से सत्ययुग की शुरुआत होती है.त्रेतायुग- बैशाख महिने में शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि से सत्यगुग की शुरुआत होती है.
द्वापरयुग- भद्रपद महिने की कृष्ण पक्ष की तेरहवीं तिथि से द्वापर युग की शुरुआत होती है.
कलयुग- मेघ मास की अमावस्या को कलयुग की शुरुआत हुई.
ऎसा माना जाता है कि निम्न महिनों और तिथियों में इन मनवन्तर की शुरुआत हुई और इन्हें मनोवादि तिथी कहते है. जैसे स्वायाम्भूवा मनवन्तर की शुरुआत चैत्र मास में शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को तथा ब्रह्म स्वर्णी मनवन्तर की शुरुआत मेघ मास की शुक्ल पक्ष की सातवीं तिथि को हुई.
मनवादी तिथि के सन्दर्भ में तीनों मनवन्तरों के कुछ अलग विचार हैं जिसमें से पहला मुहूर्त चिन्तामणि से आता है और अन्य सभी कालप्रकाशिका से आते हैं. परन्तु इस तरह की युति बहुत ही कम बनती है और इस सन्दर्भ में जानकारी का भी काफी अभाव है.
मुहूर्त चिन्तामणि (Muhurta Chinatamani) के अनुसार जो तिथि युग और मनवन्तर से होती है वह कार्य की शुरुआत के लिए अच्छी नही होती. इसलिए व्यक्ति को दान-पुण्य, पवित्र नदी में स्नान, तीर्थयात्रा और इसी तरह के धार्मिक कार्यकलापो के अलावा कोई नया कार्य नही करना चाहिए. कालप्रकासिका के अनुसार सिर्फ वेदों के अध्ययन के लिए समय उपयुक्त नही होता.
विषनाडी तिथि (Vishnadi Tithis)
सभी तिथियों का एक अलग समय होता है जब वे अपना नकारात्मक प्रभाव देती हैं इस अवधि को विषनाडी तिथि कहते हैं, यह तिथि कुछ अपवादों को छोड़कर बाकी मामलों में शुभफल नहीं देती है. विषनाडी तिथि चार नाडियों के लिए मौजूद होती है. पहली नाडी को पतन का कारक कहा जाता है, दूसरी नाडी व्यक्ति विशेष की जिन्दगी को प्रभावित करती है, तीसरी नाडी सभी तरह की चीजों और सभी लोगों के पतन का कारक होती है. चौथी नाडी परिवार की खुशहाली को नुकसान पहुंचाने का कारक होती है.अगर चन्द्रमा नौवें अथवा दसवें घर में हो और उस पर बृहस्पति की दृष्टि पड़ रही हो तो विषनाडी के अशुभ प्रभाव समाप्त हो जाते हैं. इसी तरह अगर लग्न में शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा अपने नवमांस में उच्च का हो अथवा सिंहासनमासा में हो तो भी विषनाडी के गलत प्रभाव समाप्त हो जाते हैं.
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वैदिक ज्योतिष एवं चन्द्र दिवस तिथि (Introduction of Tithi in Vedic Jyotish)