नव ग्रहों में एक शनि ग्रह को न्याय कर्ता की उपाधी प्राप्त है. जीवन में व्यक्ति के सभी अच्छे और बुरे कर्मों के प्रभाव से उत्पन्न फल को प्रदान करने में शनि देव की अहम भूमिका है. धार्मिक ग्रंथों में शनि देव के न्याय और उनकी दृष्टि के संदर्भ में हमें अनेको कहानियां प्राप्त होती हैं. जिनमें शनि देव के प्रभाव से भगवान भी नहीं बच पाए थे. मनुष्य रुप धारण करने के पश्चात भगवान को भी शनि के प्रभावों ने घेरा है और उससे उन्हें भी कष्ट एवं सुख सभी चीजों की प्राप्ति भी हुई है.
शनि देव का नाम सुनते ही सभी के मन में के प्रकार का भय व्याप्त रहता ही है. शनि देव को प्रसन्न करने के लिए सभी अपनी ओर से हर संभव प्रयास करते भी हैं जैसे कि दान, मंत्र जाप, पूजा और न जाने कितने उपाय हैं जो शनि देव के प्रकोप से बचाव करने के लिए किए जाते हैं. शनि देव के लिए किए गए उपायों से जातक को परेशानी से कुछ राहत अवश्य मिल पाती है.
शनि साढेसाती क्या होती है
शनि की साढे़साती यानी के साढे सात वर्षों का समय जब शनि देव का प्रभाव व्यक्ति विशेष पर पड़ता है. शनि की साढे साती व्यक्ति की राशि पर जब अपना प्रभाव डालती है तब साढे़साती का आरंभ होता है. इसे आप इस प्रकार से समझ सकते हैं- जैसे की किसी व्यक्ति की जन्म राशि धनु है, तब गोचर में शनि वृश्चिक राशि में आता है तो व्यक्ति की साढेसाती का पहला चरण आरंभ होता है, दूसरे चरण में शनि जन्म राशि धनु पर ही गोचर करता है और तीसरे चरण में शनि मकर राशि में गोचर कर रहा होता है. यहां शनि की साढे़साती धनु राशि के जातक पर प्रभाव डालती है. शनि ढा़ई वर्ष एक राशि में रहता है और उसके साथ अपने इन तीन चरणों में 7½ वर्ष पूरे करता है.
दूसरे अर्थों में जब शनि गोचर में जन्म चन्द्रमा से पहले, दूसरे और बारहवें भाव से गुजरता है तो शनि साढे़साती होती है. शनि एक राशि से गुजरने में ढ़ाई वर्ष का समय लेता है इस तरह तीन राशियों से गुजरते हुए यह साढ़े सात वर्ष का समय लेता है जो साढ़े साती कही जाती है.
शनि साढ़ेसाती का जीवन पर प्रभाव
साढ़े साती के बारे में अधिकांशत: सभी लोगों के मन में डर भरा रहता है. यह समय लोगों के लिए मानसिक उथल-पुथल से भरा होता है, व्यक्ति में असंतोष, बिना किसी वजह के वाद-विवाद, कलह, निराशा जैसी स्थितियां अपना प्रभाव दिखाती हैं. इस समय के दौरान व्यक्ति को अपनों से बिछड़ने का दुख भी झेलना पड़ और विपरीत परिणामों का सामना करना होता है.
यह बातें पूर्ण रुप से सही हों ऐसा नही है क्योंकि बहुत से लोगों के जीवन में साढे़साती उत्कर्ष लाने वाली भी होती है. व्यक्ति जीवन में बहुत अच्छी उपलब्धियों को भी पाता है. आर्थिक रुप से संपन्न भी होता है. इसलिए शनि की साढे़साती सभी के लिए बुरे प्रभाव वाली रहेगी यह कहना सही नहीं होगा.
शनि अगर जन्म कुण्डली में योगकारी है और शभ स्थान एवं प्रभाव से युक्त है तो वह व्यक्ति के लिए सकारात्मक भी रहता है. मुख्य रुप से शनि हमारे कर्मों का फल ही हमे देता है ऐसे में हमारा छोटे से छोटा कर्म भी यहां प्रकट होता है. वह चाहे बुरा हो या अच्छा सभी का फल उसके अनुरुप ही मिलता है. इसलिए हम सभी को यही कोशिश करनी चाहिए कि सदैव शुभ और अच्छे आचरण को जीवन में अपनाएं और सत्य का मार्ग चुनें. ऐसा करना व्यक्ति को शनि के दुष्प्रभाव से बचाने में बहुत सहायक बनता है.
शनि साढेसाती में प्राप्त होने वाले अशुभ फलों से बचने के लिये अपने धैर्य व सहनशक्ति में वृद्धि करने के लिये शनि के उपाय करने चाहिए. विपरीत समय में व्यक्ति की संघर्ष करने की क्षमता बढ जाती है, तथा ऐसे समय में व्यक्ति अपनी पूर्ण दूरदर्शिता से निर्णय लेता है. जिसके कारण निर्णयों में त्रुटियां होने की संभावनाएं कम हो जाती है.
शनि साढेसाती उपाय
शनि साढेसाती (Shani Sade Sati) के कष्टों में कमी करने के लिये शनि से संम्बन्धित अनेक उपाय किये जा सकते है. जिनमें शनि स्तोत्र (Shani Stotra Path) पाठ व शनि स्तोत्रम (Shani Stotratam) को विशेष महत्व दिया जाता है. शनि श्त्रोत के विषय में कहा जाता है की इस स्त्रोत की रचना दशरथ जी ने की थी जब शनि देव रोहिणी शकट भेदन करने के लिए जाते हैं तब इस घटना को रोकने के लिए और उससे बचने के लिए दशरथ जी शनि देव के समक्ष इस स्त्रोत का पाठ करते हैं जिससे प्रसन्न होकर शनि देव उन्हें शनि प्रकोप से मुक्ति का आशीर्वाद देते हैं. ऐसे में जब कोई व्यक्ति दशरथ कृत इस शनि स्त्रोत का पाठ करता है तो उसे शनि के दुष्प्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है.
शनि के शुभ फल पाने के लिये इस पाठ का जाप नियमित रुप से प्रतिदिन (रविवार को छोडकर) करना लाभकारी रहता है. शनि स्तोत्र (Shani Stotra Path) का पाठ करते समय व्यक्ति में शनि के प्रति पूर्ण श्रद्धा व विश्वास होना अनिवार्य है. बिना श्रद्धा के लाभ प्राप्त होने की संभावनाएं नहीं बनती है.
दशरथ कृत शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।
प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत। एवं स्तुतस्तद सौरिग्रहराजो महाबल:।।
शनि स्तोत्र पाठ - Shani Stotra Path
नीलांजन समाभासम रविपुत्रं यमाग्रजम
छाया मार्तण्ड सम्भूतं तम नमामि शनैश्चरम
सूर्यपुत्रो दीर्घदेही विशालाक्षा श्विप्रिया:
मंदचारा प्रसन्नात्मा पीडाम हरतु में शनि
नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय च नमोस्तुते
नमस्ते बभ्रु रुपाय कृ्ष्णाय च नमोस्तुते
नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च
नमस्ते यम संज्ञाय नमस्ते सौरये विभो
नमस्ते मंद संज्ञाय शनेश्वर नमोस्तुते
प्रसाद कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च
कोणस्थ पिंगलों, बभ्रु, कृ्ष्णों, रौद्रान्तक यम:
सौरि:, शनिश्चरो मंद: पिपलादेन संस्तुत:
एतानि दश नमानि प्रात: उत्थाय य: पठेत
शनेश्वचर कृता पीडा न कदाचित भविष्यति
जिन व्यक्तियों की जन्म राशि पर शनि की साढेसाती का प्रभाव चल रहा है, उन व्यक्तियों को इस पाठ का जाप प्रतिदिन करना चाहिए. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की शनि की ढैय्या या लघु कल्याणी की अवधि चल रही हों, उनके लिये भी यह पाठ लाभकारी सिद्ध हो सकता है.
इसके अलावा शनि महादशा के शुभ फल प्राप्त करने में भी शनि स्तोत्र सहयोगी रहता है. तथा जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि निर्बल या पाप प्रभाव में होकर स्थित हो, उन व्यक्तियों को भी इस पाठ जाप से लाभ प्राप्त हो सकते है.