पुंसवन संस्कार के लिये शुभ मुहूर्त Auspicious Muhurat for Punsavan Sanskar
गर्भधारण के दूसरे या तीसरे माह में पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) संपन्न किया जाता है. इस संस्कार को मूल, पुनर्वसु, मृगशिरा, श्रवण, हस्त, पुष्य इत्यादि नक्षत्रों में करना शुभ रहता है. इसके लिये पुरुष वारों को प्रयोग किया जाता है अर्थात रविवार, मंगलवार, गुरुवार इत्यादि.संस्कार कार्य के लिये शुभ तिथियों में नन्दा व भद्रा को लिया जाता है.चन्द्र बल प्राप्त करने के लिये शुक्ल पक्ष व शुभ ग्रहों का केन्द्र व त्रिकोण में होना संस्कार कार्य की शुभता में वृद्धि करता है. पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) को कर लेने के बाद प्रसव तक की अवधि में किये जाने वाले अन्य संस्कारों में शुभ प्रभाव बना रहता है. इस अवधि के सभी संस्कारों में यह संस्कार सबके अधिक महत्व रखता है.
वर्जित समय मुहूर्त Inauspicious Time for Punsavan Sanskar
निम्नलिखित योग होने पर पुंसवन संस्कार (Punsavan Sanskar) को नहीं करना चाहिए- व्याघात (Vyaghata Yoga)
- परिध ( Paridh Yoga)
- वज्र (Vajra Yoga)
- व्यतिपात (Vyatipata Yoga)
- बैध्रति (Vaidhriti Yoga)
- गंड (Ganda yoga)
- अतिगंड (atiganda yoga)
- शूल (Shool Yoga)
- विषकुम्भ (Vishkambha yoga)
ये 9 योग पुंसवन संस्कार, कर्णवेध, व्रतबंध और विवाह के लिये वर्जित है. इन योगों के नाम के अनुसार ही इनसे मिलने वाले फल भी है. ये सभी योग पुंसवन संस्कार की शुभता में कमी करने के साथ-साथ माता व शिशु के स्वास्थ्य के लिए अच्छे नहीं माने जाते हैं.