कला जगत में सफलता दिलाने वाले ग्रह (Planets that bring success in the arts)
ज्योतिषशास्त्र में शुक्र को कला एवं सौन्दर्य का कारक माना जाता है. शुक्र से ही संगीत, नृत्य, अभिनय की योग्यता आती है. बुध बुद्धि का तथा चन्द्रमा मन एवं कल्पनाशीलता का कारक ग्रह होता है. कला जगत में कामयाबी के लिए इन तीनों ग्रहों का शुभ एवं मजबूत होना बहुत ही आवश्यक है.कला जगत में सफलता के लिए भाव एवं भावेश की स्थिति (The position of Bhava and Bhavesh for success in arts)
अभिनय तथा गायन में वाणी प्रमुख होता है. वाणी का भाव दूसरा भाव होता है. पांचवां भाव मनोरंजन स्थान होता है. इन दोनों भावों के साथ ही साथ दशम भाव जो आजीविका का भाव माना जाता है इन सभी से यह आंकलन किया जाता है कि कोई व्यक्ति कलाकार बनेगा या नहीं अथा कला के किस क्षेत्र में उसे अधिक सफलता मिलेगी. लग्न तथा लग्नेश भी इस विषय में काफी प्रमुख माने जाते हैं (Lagna and lagna lord are also important to judge whether person will be artistic).अभिनय, गायन एवं संगीत में सफलता दिलाने वाले योग (Yogas that bring success in Acting, Singing and Music)
वृष लग्न अथवा तुला लग्न की कुण्डली शुक्र एवं बुध की युति दशम अथवा पंचम में भाव में हो तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में ख्याति प्राप्त कर सकता है. पंचम भाव जिसे मनोरंजन भाव कहते हैं उस पर लग्नेश की दृष्टि हो साथ ही शुक्र या गुरू भी उसे देखते हों तो व्यक्ति अभिनय की दुनियां में अपना कैरियर बना सकता है. शुक्र, बुध एवं लग्नेश जिस व्यक्ति की कुण्डली में केन्द्र भाव में बैठे हों उन्हें कला जगत में कामयाबी मिलने की अच्छी संभावना रहती है. तृतीय भाव का स्वामी शुक्र के साथ युति सम्बन्ध बनाता है तो व्यक्ति कलाकर बना सकता है.कुण्डली में मालव्य योग, शश योग, गजकेशरी योग, सरस्वती योग (Malavya yoga, shasha yoga, gajkesari yoga, saraswati yoga) हों तो व्यक्ति के अंदर कलात्मक गुण मौजूद होता है. अपनी रूचि के अनुरूप वह जिस क्षेत्र में अपनी योग्यता को निखारता है उसमें सफलता मिलने की पूरी संभावना रहती है. चन्द्रमा पंचम, दशम अथवा एकादश भाव में स्वराशि में बैठा हो तथा शुक्र शुक्र दूसरे घर में स्थित हो या चन्द्र के साथ इन भावों में युति बनाये तो कलाकार बनने के लिए व्यक्ति को प्रेरणा मिलता है. शुक्र चन्द्र की इस स्थिति में व्यक्ति अभिनय या गीत, संगीत में नाम रोंशन कर पाता है. गुरू चन्द्र एक दूसरे को षष्टम अष्टम दृष्ट से देखता है साथ ही गुरू यदि आय भाव का स्वामी हो तो व्यक्ति कला जगत से आय प्राप्त करता है.