कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते है. जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का आरम्भ सिर से होता है उसी प्रकार इस भाव से कुण्डली का आरम्भ होता है. इस भाव से व्यक्ति के स्वभाव (nature), आचार-विचार की जानकारी होती है. शरीर के हिस्सों में मस्तिष्क, सिर व पूरा शरीर तथा सामान्य कद-काठी का अनुमान भी लगाया जाता है. इस भाव में उपस्थित राशि तथा इस भाव में स्थित ग्रहों के आधार पर इस विषय में फल ज्ञात किया जाता है.
कृष्णमूर्ति पद्धति और प्रथम भाव - KP Astrology and First House
ज्योतिषशास्त्र में ग्रह, नक्षत्र तथा राशियों के समान ही कुण्डली में मौजूद विभिन्न भावों का अपना खास महत्व है. प्रथम भाव से लेकर द्वादश भाव तक सभी के अधीन बहुत से विषय होते हैं. इन विषयों से सम्बन्धित फल ग्रहों राशियों एवं इनसे सम्बन्धित नक्षत्रों के आधार पर शुभ-अशुभ तथा कम और ज्यादा मिलते हैं.
कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते है. जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का आरम्भ सिर से होता है उसी प्रकार इस भाव से कुण्डली का आरम्भ होता है. इस भाव से व्यक्ति के स्वभाव (nature), आचार-विचार की जानकारी होती है. शरीर के हिस्सों में मस्तिष्क, सिर व पूरा शरीर तथा सामान्य कद-काठी का अनुमान भी लगाया जाता है. इस भाव में उपस्थित राशि तथा इस भाव में स्थित ग्रहों के आधार पर इस विषय में फल ज्ञात किया जाता है.
कुण्डली के प्रथम भाव को लग्न भाव भी कहते है. जिस प्रकार व्यक्ति के शरीर का आरम्भ सिर से होता है उसी प्रकार इस भाव से कुण्डली का आरम्भ होता है. इस भाव से व्यक्ति के स्वभाव (nature), आचार-विचार की जानकारी होती है. शरीर के हिस्सों में मस्तिष्क, सिर व पूरा शरीर तथा सामान्य कद-काठी का अनुमान भी लगाया जाता है. इस भाव में उपस्थित राशि तथा इस भाव में स्थित ग्रहों के आधार पर इस विषय में फल ज्ञात किया जाता है.