राहु का फल विचार कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार Phaldesh of Rahu as per KP Systems
कृष्णमूर्ति पद्धति के अनुसार राहु का प्रभाव जानने के लिये राहु पर जिस ग्रह की दृष्टी हो उस ग्रह को देखना चाहिए. राहु सबसे पहले दृष्टि देने वाले ग्रह के अनुसार फल देता है. उसके बाद जो ग्रह राहु के साथ स्थित हो उस ग्रह के अनुसार फल प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. सबसे अंत में राहु जिस राशि में स्थित हो उस राशि के स्वामी के अनुसार फल देता है. प्राचीन ज्योतिषशास्त्र के अनुसार राहु के फलों को इस प्रकार नहीं कहा गया है.इसके अलावा कृष्णमूर्ति पद्धति में राहु को वक्री न मानकर मार्गी माना गया है. इसका कारण इनका सदैव वक्री होना है. राहु कभी भी अपनी गति में परिवर्तन नहीं करते है. इसलिये इन्हें सदैव के लिये मार्गी मान लिया गया है. इसलिये राहु के विषय में फलादेश करते समय सावधानी का प्रयोग करना चाहिए.
राहु की विशेषताएं:- (Specialities of Rahu as per KP System)
राहु को सांप का मुख कहा गया है. विषैले रसायनों में राहु की उपस्थिति मानी जाती है. जहर या जहर के प्रयोग से होने वाले कार्यो में राहु का प्रभाव होता है. राहु के स्वभाव में विश्वास की कमी रहती है. अर्थात, कुण्डली के जिस भाव पर राहु की स्थिति हो उस भाव से संबन्धित संबन्ध पर विश्वास करने पर व्यक्ति को सदैव दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.राहु का प्रभाव द्वितीय भाव पर होने पर व्यक्ति की वाणी में सत्यता के गुण की कमी आती है. राहु को स्वभाव से क्रूर कहा जाता है. उसमें दूसरों का अहित करने की भावना मुख्य रुप से पाई जाती है. राहु को अकेले रहना पसन्द है. अत: समाज के नियमों को मानने में उसे हमेशा परेशानी होती है.
राहु का संबन्ध अन्य भावों से
राहु का प्रभाव धर्म भाव से होने पर व्यक्ति की धार्मिक आस्था में कमी रहने की संभावना बनती है. इस स्थिति में व्यक्ति के अपने पिता से सदैव वैचारिक मतभेद बने रहने की संभावनाओं को सहयोग प्राप्त होता है. इसी तरह जब राहु सप्तम भाव में हो तब व्यक्ति के अपने जीवनसाथी से विचारों के मतभेद उत्पन्न होने की आशंका रहती है.राहु तीसरे भाव में होने पर व्यक्ति के मित्र विश्वसनीय नहीं होते है तथा वक्त पड़ने पर उसे धोखा देने से भी नहीं चूकते है. इस स्थिति में व्यक्ति को अपने भाई-बन्धुओं का साथ नहीं मिल पाता है.