वैदिक ज्योतिष के अन्तर्गत अनगिनत योगों का उल्लेख मिलता है. बहुत से योग अच्छे हैं तो बहुत से योग खराब भी हैं. जन्म कुंडली में अरिष्ट की व्याख्या भावों के आधार पर भी की जाती है. कुछ भाव ऎसे हैं जो जीवन में बाधा उत्पन्न करने का काम करते हैं. इन भावों के स्वामियो को बाधक ग्रह अथवा बाधकेश का नाम दिया गया है.

हर लग्न के लिए भिन्न - भिन्न भावों के स्वामी बाधक होते हैं. इसमें सभी बारह राशियों के स्वभाव के आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया जाता है. आज हम बाधकेश की चर्चा करेगें कि वह किस तरह से जीवन में बाधाएँ पहुंचाने का काम करता है.

जन्म लग्न के अनुसार राशियों का वर्गीकरण | Categorization of astrological signs on the basis of Ascendant

वैदिक ज्योतिष में हर लग्न के अनुसार बाधक ग्रह का निर्णय किया गया है. सभी लग्नों के लिए अलग-अलग ग्रह बाधक होते हैं. सभी 12 राशियों को उनके स्वभाव के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है और फिर उसके आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय किया जाता है.

मेष, कर्क, तुला और मकर राशि चर स्वभाव की राशियाँ मानी गई हैं. चर अर्थात चलायमान रहती है.वृष, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशियाँ स्थिर स्वभाव की राशि मानी गई हैं. स्थिर अर्थात ठहराव रहता है. मिथुन, कन्या, धनु और मीन राशियाँ द्वि-स्वभाव की राशि मानी जाती है अर्थात चर व स्थिर दोनो का समावेश इनमें होता है.

जन्म लग्न के अनुसार बाधक ग्रह का निर्णय | Determination of Badhak planet by Birth Ascendant

आइए अब जन्म लग्न में स्थित राशि के आधार पर बाधक ग्रह का निर्णय करते हैं. जन्म लग्न में चर राशि मेष, कर्क, तुला या मकर स्थित हैं तब एकादश भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है.

जन्म लग्न में स्थिर राशि वृष, सिंह, वृश्चिक या कुंभ स्थित है तब नवम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है. यदि जन्म लग्न में द्वि-स्वभाव राशि मिथुन, कन्या, धनु या मीन स्थित है तब सप्तम भाव का स्वामी ग्रह बाधकेश का काम करता है. बहुत से विद्वानो के मतानुसार बाधक भावों - एकादश, नवम व सप्तम में बैठे ग्रह भी बाधकेश की भूमिका अदा करते हैं.

बाधक ग्रह का काम | Characteristics of Badhak Planet

अब हम बाधक ग्रह के कारकत्वों के बारे में जानेगें कि वह किस तरह से काम करता है. जैसा की नाम से ही स्पष्ट है, बाधक ग्रह अपनी दशा/अन्तर्दशा में बाधा व रुकावट पहुंचाने का काम करते हैं.

व्यक्ति के जीवन में जब बाधक ग्रह की दशा आती है तब वह बाधक ग्रह स्वयं ज्यादा हानि पहुंचाते हैं या वह जिन भावों में स्थित हैं वहाँ के कारकत्वों में कमी कर सकता है. व्यक्ति विशेष की कुंडली में बाधक ग्रह जब कुंडली के अशुभ भावों के साथ मिलते हैं तब ज्यादा अशुभ हो जाते हैं.

यही बाधक ग्रह जब जन्म कुंडली के शुभ ग्रहों के साथ मिलते हैं तब उनकी शुभता में कमी भी कर सकते हैं. बाधक ग्रह सबसे ज्यादा अशुभ तब होते हैं जब वह दूसरे भाव, सप्तम भाव या अष्टम भाव के स्वामी के साथ स्थित होते हैं.

बाधक सदैव बाधक नहीं होते | Badhak Planets are not always Badhak

आइए बाधक ग्रह के संदर्भ में कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्यो को जानने का प्रयास करें. वैदिक ज्योतिष में बाधक ग्रह का जिक्र किया गया है तो कुछ ना कुछ अरिष्ट होता ही होगा, लेकिन इन अनिष्टकारी बातों का अध्ययन बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए. कुंडली की सभी बातों का बारीकी से अध्ययन करने के बात ही किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए.

व्यक्ति विशेष की जन्म कुंडली में बाधक ग्रह का सूक्ष्मता से अध्ययन आवश्यक है कि वह कब अरिष्टकारी हो सकते हैं. हर कुंडली में यह अरिष्टकारी ग्रह सुनिश्चित होते ही हैं. इसलिए पहले यह निर्धारित करना चाहिए कि ये कब अशुभ फल प्रदान कर सकते हैं.

एकादश भाव को जन्म कुंडली का लाभ स्थान का लाभ स्थान माना गया है. कुंडली के नवम भाव को भाग्य स्थान के रुप में भी जाना जाता है और जन्म कुंडली के सप्तम भाव से हर तरह की साझेदारी देखी जाती है. जीवनसाथी का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है.

जन्म कुंडली में जब एकादश भाव की दशा या अन्तर्दशा आती है तब यही माना जाता है कि व्यक्ति को लाभ की प्राप्ति होगी तो क्या हमें यह समझना चाइए कि चर लग्न के व्यक्ति को एकादशेश के बाधक होने से कोई लाभ नहीं मिलेगा? इसलिए एक ज्योतिषी को बिना सोचे समझे किसी नतीझे पर नहीं पहुंचना चाहिए.

इसी तरह से स्थिर लग्न के व्यक्ति की जन्म कुंडली में यदि नवमेश को सबसे बली त्रिकोण माना गया है और भाग्येश है तब यह कैसे अशुभ हो सकता है? सप्तम भाव अगर बाधक का काम करेगा तब तो किसी भी व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सुखमय हो ही नहीं सकता है. इसका अर्थ यह हुआ कि द्वि-स्वभाव के लग्न वाले व्यक्तियों के जीवन में सदा ही बाधा बनी रह सकती हैं. बाधक ग्रह के विषय में आँख मूंदकर बोलने से पहले कुंडली का निरीक्षण भली-भाँति करना जरूरी है.