जन्म कुण्डली में महादशा के फल अथवा अन्तर्दशा के फल ग्रहों की कुंडली में स्थिति पर निर्भर करते हैं और महादशा में अन्तर्दशा के फल दोनो ग्रहों की एक-दूसरे से परस्पर स्थिति पर निर्भर करते हैं. आइए इसे कुछ बिंदुओ की सहायता से समझने का प्रयास करते हैं.


  • महादशानाथ यदि राहु/केतु अक्ष पर स्थित है तब यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.
  • जब द्वादशेश की युति द्वित्तीयेश के साथ होती है या दृष्टि होती है तब वह अपनी दशा/अन्तर्दशा में वह एक बली मारक बन सकता है.
  • जन्म कुंडली में केन्द्र के शुभ स्वामी ग्रह अपने मित्र की दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करते हैं.
  • सर्वाष्टकवर्ग में जिस ग्रह से 11वें भाव में अधिकतम बिंदु होते हैं या जो ग्रह स्वयं अधिक बिंदुओ के साथ कुंडली में स्थित होता है उस ग्रह की दशा/अन्तर्दशा शुभ फल प्रदान करती है.
  • यदि जन्म कुंडली में शुक्र तथा शनि दोनो ही बली अवस्था में स्थित हो तब यह दोनो अपनी दशा/अन्तर्दशा में व्यक्ति को असफलताएँ प्रदान कराते हैं. लेकिन यदि यह दोनो ग्रह एक-दूसरे से छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों या एक-दूसरे से त्रिक भावों में स्थित हो तब यह यह एक-दूसरे की दशा में शुभ फल प्रदान करते हैं.
  • यदि जन्म कुंडली का उच्च का ग्रह नवांश में नीच का हो जाता है तब वह शुभ व अच्छे फल देने में असफल रहता है. यदि जन्म कुंडली का नीच का ग्रह नवांश में उच्च का हो जाता है तब वह अपनी दशा/अन्तर्दशा में शुभ फल प्रदान करता है.
  • राहु यदि त्रिक भाव में स्थित होकर केन्द्रेश अथवा त्रिकोणेश से युति करता है तब अपनी आरंभ की दशा में शुभ फल देता है लेकिन बाद की दशा में व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए अशुभ हो जाती है.
  • यदि जन्म कुंडली में शुक्र व बृहस्पति दोनो ही वृश्चिक राशि में स्थित हों या दोनो में से एक ग्रह वृश्चिक राशि में हो लेकिन एक-दूसरे की दृष्टि में हों तब शुक्र की दशा में शुभ परिणाम मिलते हैं.
  • यदि जन्म कुंडली में सूर्य तथा बुध की युति होती है तब बुध की दशा शुभता प्रदान करती है.
  • जन्म कुंडली में चंद्रमा तथा मंगल की युति होने पर या परस्पर दृष्टि संबंध बनने पर चंद्रमा की दशा अत्यधिक शुभ हो जाती है लेकिन मंगल की दशा सामान्य सी ही रहती है.
  • जन्म कुंडली में यदि शनि तथा बृहस्पति की युति अथवा दृष्टि संबंध बन रहा हो तब शनि की दशा तो शुभ हो जाएगी लेकिन बृहस्पति की दशा सामान्य लाभ देने वाली होगी.
  • इसी प्रकार यदि चंद्रमा व बृहस्पति युति कर रहे हो या दृष्टि संबंध बना रहे हों तब चंद्रमा की दशा शुभ हो जाएगी लेकिन बृहस्पति की दशा साधारण रह सकती है.
  • किसी भी भाव विशेष से आठवें भाव का स्वामी अपनी दशा में भाव का नाश करता है.
  • किसी भी भाव विशेष से 22वें द्रेष्काण का स्वामी ग्रह अपनी दशा में उस भाव के संबंध में अशुभ फल प्रदान करता है.
  • किसी भी भाव से छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में बैठे ग्रह यदि निर्बल अवस्था में हों तब अपनी दशा में अशुभ फल प्रदान करते हैं.
  • यदि महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ दूसरे, चौथे, पांचवें, नवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में हो तब शुभ फल मिलते हैं.
  • अन्तर्दशानाथ और महादशानाथ एक-दूसरे से समसप्तक हो तो इसे सामान्य स्थिति माना जाता है और यह हल्के परिणाम देती है.
  • यदि अन्तर्दशानाथ, महादशानाथ से तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित होता है तब अशुभ फल मिलते हैं.
  • यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ नैसर्गिक मित्र होते हैं तथा शुभ भावों के स्वामी होते हैं तब अपनी दशा में अच्छे परिणाम देते हैं.
  • जन्म कुंडली में महादशानाथ की उच्च राशि में यदि अन्तर्दशानाथ स्थित होता है तब यह अपनी दशा में अनुकूल फल प्रदान करता है.
  • महादशानाथ से चौथे, पांचवें, नवम व दशम भाव के स्वामियों की दशा व्यक्ति को अनुकूल फल प्रदान करती है.
  • महादशानाथ और उसके नक्षत्रेश(महादशानाथ जिस नक्षत्र में स्थित है) की दशा/अन्तर्दशा में जीवन की मई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटती हैं.
  • जन्म कुंडली में जिस ग्रह की महादशा चल रही है उसकी गोचर में स्थिति फलों का निर्धारण करती है अथवा महादशानाथ से गोचर के अन्य ग्रहों की स्थिति दशा के प्रभावों में परिवर्तन लाती है.
  • दशानाथ यदि त्रिक भाव का स्वामी ना होकर शुभ भाव का स्वामी होता है और गोचर में जब वह अपनी उच्च, स्वराशि, मूलत्रिकोण राशि में आता है या जिस भाव में दशानाथ स्थित है उस भाव से तीसरे, छठे, दसवें या ग्यारहवें भाव में आता है तब शुभ फलों की प्राप्ति होती है.