वैदिक ज्योतिष में बहुत सी बातों का अध्ययन करने के बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है. किसी एक बात के आधार पर फलित करना किसी की जान को खतरे में डालने जैसा काम हो सकता है. इसलिए फलकथन कहने के लिए जितनी भी आवश्यक शर्ते होती हैं उन सभी का ध्यान से विश्लेषण करना चाहिए. फलकथन के लिए कुंडली के योग, दशा, घटना से संबंधित भाव और संबंधित वर्ग कुंडलियाँ, घटना के समय का गोचर व उस वर्ष की वर्ष प्रवेश कुंडली अवश्य देखनी चाहिए ताकि होने वाली घटना की अधिक से अधिक पुष्टि हो सकें. आज इस वेबकास्ट में हम घटनाओं के घटने के समय का अनुमान लगाने का प्रयास करेगें कि व्यक्ति को फल कब मिलेगें.

घटना के घटने के लिए आवश्यक तथ्य | Some Important Principles for An Incident

किसी भी व्यक्ति विशेष के जीवन में किसी भी घटना के घटने के लिए उसकी जन्म कुंडली में उन योगो का होना आवश्यक है.

उदाहरण के लिए जन्म कुंडली में संतान जन्म की घटना को देखने के लिए सबसे पहले ये देखेगे कि क्या कुंडली में संतान प्राप्ति के योग मौजूद हैं.यदि जन्म कुंडली में योग ही नहीं होगें तब बाकी बाते देखना निष्फल होगा. इसलिए किसी भी घटना के होने के लिए कुंडली में प्रोमिस होना आवश्यक है. जन्म कुंडली में किसी घटना के योग मिलने के बाद यह देखा जाएगा कि किस दशा/अन्तर्दशा में घटना घट सकती है. उसे नोट कर लेना चाहिए.

जब हमें दशा पकड़ में आ जाती है तब हम शनि और गुरु का दोहरा गोचर देखेगे कि क्या वह संबंधित भाव को अपनी दृष्टि से सक्रिय कर रहा है? जन्म कुंडली में किसी भी घटना के घटने में शनि व गुरु ग्रह का दोहरा गोचर आवश्यक होता है. बिना इनके दोहरे गोचर के जीवन में कोई घटना घटित नही होती है.

शनि को काल कहा गया है. काल का अर्थ है - समय अर्थात शनि का गोचर किसी घटना के लिए समय निर्धारित करता है. गुरु को जीव कहा गया है और यह शनि द्वारा तय किए समय पर अपनी अनुमति की मोहर लगाते हैं. इस तरह से जिस घटना का समय शनि ने ढ़ाई वर्ष के लिए तय किया है उसे गुरु ने 12 महीने में बांध दिया है.

इसके बाद संबंधित घटना को मंगल का गोचर 45 दिन तक के लिए सीमित कर देता है और सूर्य का गोचर संबंधित घटना को 30 दिन में बांध देता है. अंतिम सहमति चंद्रमा की होती है जो दो से ढ़ाई दिन में काम होने का संकेत देता है. जिस भाव से संबंधित फल जिस दिन मिलते हैं उस दिन उस भाव के आसपास ही अधिकतर ग्रहों का गोचर होता है.

संबंधित वर्ग कुंडली | Related Varga Kundali

आइए अब हम संबंधित वर्ग कुंडलियों की चर्चा भी कर लें. जन्म कुंडली में जिस भाव से संबंधित फल मिलने हैं उनकी पुष्टि वर्ग कुंडलियों में अवश्य करनी चाहिए. बहुत बार जन्म कुंडली में योग मौजूद होते हैं लेकिन संबंधित वर्ग कुंडली में योग मौजूद नही होते हैं.

उदाहरण के लिए यदि व्यवसाय संबंधी प्रश्न है तब जन्म कुंडली के दशम भाव के साथ दशमांश कुंडली को भी देखना चाहिए कि उसमें क्या योग हैं. यदि दशमांश कुंडली में योग अच्छे नहीं हैं तब व्यक्ति को व्यवसाय में दिक्कत हो सकती है और तब दशा व गोचर भी ज्यादा शुभ फल नहीं दे पाएंगें.

बहुत बार ऎसा भी होता है कि जन्म कुंडली किसी घटना के होने का प्रोमिस करती है लेकिन वर्ग कुंडली नहीं करती तब ऎसे में व्यक्ति परेशान ही रहता है. यदि जन्म कुंडली में योग हैं और वर्ग कुंडली में नही है तब घटना के घटित होने में विलम्ब व बाधाओ का सामना करना पड़ता हैं.

वर्ष कुंडली का अध्ययन | Analysis of Varsha Kundali

आइए अब हम एक नजर वर्ष कुंडली पर भी डालने का प्रयास करते हैं. जिस वर्ष सभी बाते किसी घटना के होने का संकेत दे रही है तब उस वर्ष का वर्षफल देखे कि उसमें दशा/अन्तर्दशानाथ की क्या स्थिति है और संबंधित भाव किस हाल में है.

वर्षफल में इस घटना की पुष्टि करने का प्रयास करें कि क्या उसकी पुष्टि हो रही है. यदि वर्ष कुंडली में पुष्टि नही हो रही है तब उस घटना के होने में कुछ विलम्ब हो सकते हैं. वर्ष कुंडली में किसी भी घटना के घटने की पुष्टि स्पष्ट तौर पर नजर आती है.


उदाहरण | Example

आइए एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं. माना किसी जतक का विवाह होना है तब सबसे पहले यह देखेगे कि क्या कुंडली में विवाह के योग स्थित हैं? सप्तम भाव से व्यक्ति का विवाह देखा जाता है. इसकी पुष्टि नवांश कुंडली में भी करेगें. अब दशा को देखेगे कि किस दशा/अन्तर्दशा में व्यक्ति का विवाह होने की सबसे अधिक संभावना बनती है. फिर उन दशाओं की पुष्टि नवांश कुंडली में भी करेगें. इसके बाद यह देखेगे कि क्या शनि व गुरु का दोहरा गोचर सप्तम भाव या सप्तमेश पर हो रहा है. यदि हाँ तब विवाह होने की अति बली संभावना बन जाएगी. उसके बाद वर्ष कुंडली में देखेगे कि सप्तमेश व लग्नेश का क्या संबंध है? क्या दोनो का इत्थशाल हो रहा है और वर्ष कुंडली के अधिकतर ग्रहों का प्रभाव सप्तम भाव या सप्तमेश पर होना चाहिए.

विवाह के लिए दशा/अन्तर्दशा तय करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. सप्तमेश की दशा, सप्तम में बैठे ग्रह की दशा, द्वित्तीय व द्वितीयेश की दशा, पंचम व पंचमेश की दशा में विवाह होता है. सप्तम या सप्तमेश को प्रभावित करने वाले ग्रहो की दशा में विवाह संपन्न हो जाता है. इस तरह से नवांश कुंडली के लग्न्/लग्नेश और सप्तम/सप्तमेश की दशा में विवाह होता है.