ग्रह कमज़ोर कब होता है इस बात का निर्धारण इससे किया जाता है कि कोई ग्रह कुण्डली में किस अवस्था में है यदि ग्रह नीच का है, वक्री है, पाप ग्रहों के साथ है या इनसे दृष्ट है, खराब भावों में स्थित है, षडबल में कमजोर है, अन्य अवस्थाओं में निर्बल हो इत्यादि तथ्यों से ग्रह के कमजोर होने कि स्थिति का पता लगाया जा सकता है. ग्रह के कमजोर या बलहीन होने पर उसके शुभत्व में कमी आती है और उक्त ग्रह अपने पूर्ण प्रभाव को देने में सक्षम नहीं हो पाता.

मंगल के कमज़ोर होने पर जातक की शारीरिक तथा मानसिक उर्जा प्रभावीत होती है. जातक रक्त-विकार संबधित बिमारियों अन्य ऐसे बिमारीयों से पीडित हो सकता है जिसके कारण शल्य चिकित्सा करानी पडे़. बुरे प्रभाव के कारण किसी दुर्घटना अथवा लड़ाई में अपने शरीर का कोई अंग भी गंवा सकता है. इसके अतिरिक्त मंगल की बलहीनता जातक को सिरदर्द, थकान तथा निर्णय लेने में कमी जैसी समस्याओं से भी प्रभावित करती है.

लग्न भाव में यदि बलहीन मंगल हो तो बाल्यकाल में जातक को उदर या दातों से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ सकत है. जातक मन से चंचल हो सकता है, मलिन वस्त्रों को धारण करने वाला व चुगलखोर भी हो सकता है.

दूसरे भाव में बलहीन मंगल के होने पर जातक में सहनशक्ति अधिक नहीं होगी. व्यक्ति कि अपने कुटुबं से दूरी बनी रह सकती है. सट्टेबजी से धनार्जन के कार्यों में लिप्त रह सकता है.

तीसरे भाव में कमजोर का मंगल साहस एवं कर्मठता में कमी लाता है, जातक सुख में कमी पाता है, यात्राओं में असुविधा तथा खेद की स्थिति बन सकती है. सर्वसंपन्न होने पर भी सुख में कमी बनी रहती है. पिता के प्रेम में कमी पाता है.

चौथे भाव में बलहीन मंगल के होने पर जातक बंन्धुरहित हो सकता है. दुसरों पर आश्रित रहने वाला व पर स्त्री आसक्त रहने वाला हो सकता है. भ्रमण शील रह सकता है.

पांचवें भाव में कमज़ोर मंगल के प्रभाव स्वरूप संतान से कष्ट या संतान को कष्ट की स्थिति हो सकती है. शिक्षा के क्षेत्र में कुछ परेशानियों का भी सामना करना पड़ सकता है.

छठे भाव में स्थित मंगल दुर्घटनाओं का संकेत देता है, जातक को शल्य चिकित्सा से भी गुजरना पड़ सकता है. शत्रुओं से भय बना रहता है. हृदय से विकल और क्रूर कार्यों को करने वाला रह सकता है.

सप्तम भाव में कमजोर मंगल के होने पर जातक को स्त्री से कष्ट होता है या उसका वियोग सहना पड़ सकता है. यहां का मंगल मांगलिक सुख में तनाव को भी दर्शाता है.

अष्टम में बैठा कमजोर मंगल जातक को व्याधियां दे सकता है, जातक को जल से खतरा या भय रह सकता है. मांगल्य सुख में कमी लाता है.

नवम में बलहीन मंगल के होने पर भाग्य में रूकावटों का सामना करना पड़ सकता है. जातक रोग से ग्रस्त रह सकता है.

दशम में बलहीन मंगल के होने पर जातक को कार्यक्षेत्र में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना प़ सकता है उसे अधिक परिश्रम करना पड़ता है. भूमि के क्षेत्र में विवादों को झेलना पड़ सकता है क्योंकि चौथे पर दृष्टि भी देता है.

एकादश भाव में बलहीन चंद्रमा के होने पर व्यक्ति के स्वभाव में क्रोध कि अधिकता होती है. वह अनेक प्रकार के कामों से लाभ पा सकता है. लेकिन कार्यों में परंपरा से हटकर भी छाप होती है. कार्यों में लोभ की भावना अधिक रहती है.

द्वादश में कमजोर मंगल के होने पर जातक दूसरे के धन पर आश्रित रहने वाला या उसका लोभ रखने वाला हो सकता है.