सूर्य को समस्त ग्रहों में राजा का स्थान प्राप्त है. वैदिक ज्योतिष सूर्य की महिमा को जगत की आत्मा का स्वरूप कहा गया है. इनसे जीवनदायी शक्ति का आधार माना गया है. इसी के साथ इसे पूर्वजों से भी संबंधित किया जाता है. इस कारण कुण्डली में इसका मजबूत स्थिति में होना कुण्डली को बल देने वाला होता है. परंतु जब यही ग्रह निर्बल हो जाता है तो कुण्डली की शक्ति भी प्रभावित होती है.

सूर्य पिता तथा पूर्वजों के अतिरिक्त राजा, राज्य, सरकार, देशों के प्रमुखों, उच्च पदों पर आसीन सरकारी अधिकारियों, राजनीतिज्ञों तथा कई अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं का प्रतिनिधि करता है. सूर्य को प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा का, जीवन दायिनी शक्ति का, इच्छा शक्ति का, रोगों से लड़ने की शक्ति का, आँखों की रोशनी का, संतान पैदा करने की शक्ति का तथा नेतृत्व करने की क्षमता का अधिकार एवम नियंत्रण शक्ति का प्रतीक माना गया है.

सूर्य यदि निर्बल होकर लग्न भाव में हो तो जातक बल में कमजोर, रोगी हो सकता है, सरदर्द की शिकायत बनी रह सकती है. लग्न में स्थित कमजोर सूर्य के कारण जातक में हीन भावना रह सकती है उसमें अहंकार फलिभूत हो सकता है. नेत्र रोग की तकलिफ, व्यर्थ में भटकाव बना रह सकता है तथा नीच कार्यों में तत्पर रह सकता है.

सूर्य के दूसरे भाव में कमजोर होने के कारण धन का अभाव झेलना पड़ सकता है, जातक पुत्र से रहित हो सकता है. दुर्बलकाय, गरीब, व्यवहारिक ज्ञान से रहित और दुख भोगने वाला हो सकता है.

सूर्य के तृतीय भाव में कमजोर होने से वह भाईयों के लिए घातक, उनसे विच्छोह पाने वाला बन सकता है. साहस में कमी हो सकती है या संबंधों में तनाव की स्थिति झेलनी पड़ सकती है.

कमजोर सूर्य के चतुर्थ भाव में होने के कारण इस भाव संबंधित फलों में कमी आ जाती है, परिवार से दूर जाकर रहना पड़ सकता है. भू संपदा इत्यादि में कोई विवाद झेलना पड़ सकता है. सूर्य को विच्छेदकारक ग्रह माना गया है अत: निर्बल होकर यहां पर स्थित सूर्य कई प्रकार से अलगाव दे सकता है.

पंचम भाव में निर्बल सूर्य के होने के कारण शिक्षा में कमी या रूकावट आ सकती हैं संतान से विच्छोह की स्थिति उभर सकती है. संतान को कष्ट हो सकता है तथा यहां पर वह पितृ दोष की स्थिति भी दे सकता है.

छठे भाव में सूर्य के निर्बल होने पर वाद विवाद में हार मिल सकती है. माम पक्ष से नहीं बनेगी, शत्रु हावी बने रह सकते हैं. व्यक्ति स्वभाव से संकोची हो सकता है.

सप्तम में सूर्य के निर्बल होने से जीवन साथी के साथ तनाव की स्थिति बनी रह सकती है, सुख से वंचित रह सकता है, चंचल ह्रदय का पाप आचरण करने वाला हो सकता है.

अष्टम भाव में निर्बल सूर्य होने पर चंचलता और त्याग की भावना बनी रहती, सदैव रोगी होने की स्थिति बनी रह सकती है. नीच की सेवा में कार्यरत हो सकता है, चरित्रहीन व भाग्यहीन हो सकता है.

नवम भाव में सूर्य के निर्बल होने पर भाग्य भाव में कमी होती है. काम में रूकावट व व्यवधान हो सकता है, पिता के साथ दूरी या टकराव की स्थिति बनी रह सकती है.

दशम भाव में कमजोर सूर्य कार्यक्षेत्र में असफलता का सामना करना पड़ सकता है, अपने अधिकारियों से अनबन की स्थिति भी बनी रह सकती है. सरकार के साथ तनाव की स्थिति का बनी रह सकती है.

एकादश में सूर्य के निर्बल होने की स्थिति में लाभ में कमी कार्यों में खर्च अधिक लग सकता है, लाभ में रूकावट का सामना करना पड़ सकता है.

द्वादश भाव में निर्बल सूर्य के होने पर जातक मुर्ख, कामी, कठोर हृदय वाला हो सकता है. जन विरोधी कामों में लिप्त, शरीर से दुर्बल हो सकता है.