कुण्डली का सप्तम भाव विवाह का प्रमुख स्थान होता है. यदि आपकी कुण्डली में सप्तम भाव या सप्तमेश का संबंध लग्न या लग्नेश, पंचम भाव या पंचमेश और नवम भाव या नवमेश से नहीं बनता है तब प्रेम संबंध विवाह में नहीं बदल पाते हैं. जन्म कुण्डली में कई बार कुछ ऎसी स्थितियां दिखाई देती हैं जिनसे प्रेम संबंधों के होने तथा बनने का अंदेशा दिखाई पड़ता है इस कारण में हम देख सकते हैं कि जन्म कुण्डली के सातवें भाव से इस प्रकार की स्थिति को देखा जा सकता है, लेकिन जब स्थिति के फलित होने की बात होती है तो वह सामने नहीं आ पाती इसका कारण हमें वर्ग कुंडली में देखने पर मिल सकता है क्योंकि वर्ग कुण्डलियां तथ्यों की पुष्टि में मजबूती को दर्शाती हैं.

इसलिए जब हम नवाँश कुण्डली में इस तथ्य की पुष्टि करने की कोशिश करते हैं तो उसमें संबंधों का अलगाव दिखाई देता है तथा साथ ही साथ प्रेम संबंधों के भाव भी पीड़ि़त नज़र आते हैं, जिस कारण प्रेम संबंध विवाह के बंधन तक पहुंचने से पूर्व ही टूट जाते हैं या अलगाव की संभावना प्रबल होती नज़र आती है. कुण्डली में यदि पंचम भाव का स्वामी नवम भाव में स्थित है या नवम भाव का स्वामी पंचम भाव स्थित है तो भी प्रेम विवाह में बाधा आती है और वह परिणय बंधन में नहीं बंध पाते.

जन्म कुण्डली के कुछ भाव संबंधों के टूटने में अहम भूमिका निभाते हैं. इन भावों से साथ ग्रहों संबंध रिश्तों में दूरी को लाता है. कुण्डली के इन भावों में प्रमुखत: छठे भाव का रोल स्पष्ट दिखाई पड़ता है. कुण्डली का छठा भाव लडा़ई - झगडों का अदालती मुकद्दमों जैसी बातों का कारक होता है. इस भाव का संबंध यदि प्रेम संबंधित भावों के साथ बने तो प्रेम संबंधों में तनाव की स्थिति बनी रहती है. देखा जाता है कि यदि जातक की दशा में छठे भाव का प्रभाव चल रहा है तब प्रेम संबंध अकसर टूट जाते हैं. इसी तरह यदि अष्टम भाव की दशा चल रही हो अथवा इस भाव में बैठे ग्रह की दशा चल रही है तब अचानक ही प्रेम संबंधों में दरार आ जाती है और वह विच्छेद की ओर अग्रसर होने लगते हैं.

बारहवाँ भाव व्यय भाव है यहां से संबंध बनने का अर्थ है की किसी भी चीज का व्यय होना अत: इस भाव की दशा आने पर प्रेम का व्यय होता है और प्रेम संबंध टूटकर बिखर जाते हैं. इसी प्रकार जब शनि ग्रह का संबंध या शनि का प्रभाव दशा में आता है तब व्यक्ति का मन किसी बात से या किसी घटना से उचाट हो जाता है. इसी के साथ उसे प्रेम नीरस लगने लगता है. मन वैरागी हो जाता है और ऎसी स्थिति में बने हुए संबंध दूर होने लगते हैं. इस कारण एक दिन प्रेम संबंध धीरे-धीरे टूटने की कगार पर आ जाते हैं.

इसी के साथ यदि कुण्डली में पंचम भाव अत्यधिक पीड़ित हो या वह शनि, राहु, केतु या मंगल के  प्रभाव में हो तब प्रेम तो हो सकता है लेकिन यह प्रेम ज्यादा लम्बे समय तक नहीं चलता है और विवाह होने से पूर्व ही वह समाप्त हो जाता है. सूर्य को पृथकतावादी ग्रह माना गया है. सूर्य संबंधों को विच्छेद कराने का काम करता है. इसलिए यदि कुण्डली में सूर्य की दशा हो या पंचम भाव में सूर्य स्थित हो तब प्रेम संबंध अधिक समय तक नहीं रहते हैं.