कुण्डली में दशा व अन्तर्दशानाथ परस्पर केन्द्र व त्रिकोण भाव में होने पर शुभ व सुखदायी हो जाते हैं. इस बात को अनेक प्रकार से समझा जा सकता है. जातक परिजात इत्यादि पुस्तकों में दशानाथ के केन्द्र व त्रिकोण में परस्पर होने पर अनेक शुभ प्रभाव प्राप्त होते हैं व शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है.

ग्रह दशानाथ से चतुर्थ स्थान में होता है वह अपनी भुक्ति अर्थात अन्तर्दशा में सुख व सम्मान पाता है जातक को माता का सुख भूमि संबंधि लाभ प्राप्त होता है. यदि दशानाथ व अन्तर्दशानाथ परस्पर समस्प्तक हो तो निश्चय ही पत्नी के सुख व स्वास्थ्य पर प्रभाव पडता है. जातक का दांपत्य सुख, पति-पत्नी के मध्य संबंधों में भी असर दिखाई देता है. इस प्रकार यदि ऎसा ग्रह भावेश व कारकत्व के साथ परस्पर स्थिति के कारण उनके जीवन को प्रभावित अवश्य करता है.

यदि अन्तर्दशा वाला ग्रह दशापति से दशम भाव में हो तो व्यापार , व्यवसाय व सामाजिक मान प्रतिष्ठा संबंधी शुभ या मिश्रित फल देने वाला बनता है. इसी प्रकार अन्तर्दशानाथ यदि दशानाथ से पंचम भाव में हो तो विद्या, बुद्धि तथा संतान संबंधी फलों को पाता है उसे शिक्षा के क्षेत्र में व मंत्र साधना इत्यादि के फल प्राप्त हो सकते हैं.

अन्तर्दशानाथ यदि दशानाथ से नवम भाव में हो तो उस अवधि में भाग्योदय, तीर्थाटन, पिता से सुख की प्राप्ति होती देखी जा सकती है. नवम भाव संबंधी फलों का निर्वाह होता है. इसके विपरित यदि अन्तर्दशानाथ-दशापति से तीसरे भाव, षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में हो तो प्राय: अनिष्ट फल प्राप्त होते हैं. स्वास्थ्य संबंधी फलों को देखा जा सकता है.

तीसरे भाव में स्थित ग्रह प्राय: कुछ अचानक होने वाली घटनाएं या हैरानी व परेशानी, भागदौड़ के बाद सफलता देता है. यदि कोई ग्रह दशानाथ से षष्ठ्म भाव में हो तो अपनी अन्तर्दशा में ऋण, रोग, वाद-विवाद या शत्रु भय दे सकता है. इसमें दशानाथ व अन्तर्दशानाथ सम सप्तक होने पर परस्पर स्नेह, सहयोग, सद्भाव सेवा जनित सुख तो देते हैं परंतु षष्ठस्थ ग्रह इनकी हानि भी करता है.

यदि दशानाथ से अन्तर्दशानाथ ग्रह अष्टमस्थ हो तो इस अन्तर्दशा अवधि में बाधा, कलंक, गुप्त रोग, या अपमान जैसे कष्ट झेलने पड़ सकता है. साथ ही कुछ अचानक से होने वाले घटनाक्रमों की स्थिति भी आ सकती है अचानक धन प्राप्ति या किसी पडे़ पद की प्राप्ति इत्यादि.

यदि अन्तर्दशानाथ ग्रह दशापति से द्वादश भाव में हो तो अन्तर्दशा अवधि में व्यय, चिंता, दुख हो सकते हैं. इसी प्रकार सूर्य यदि मारक स्थान में हो तो वह अपनी दशा या अन्तर्दशा में राज्य से भय, दंड, इत्यादि दे सकता है.

केन्द्र स्थान सुरक्षा स्थान है इनमें स्थित ग्रह अधिकांशत: अशुभ व अनिष्ट फल नहीं दिया करता और अशुभ ग्रह भी अनिष्ट में कमी करते हैं अर्थात वह अपनी अनिष्टता भूल जाते हैं. दशानाथ स्वग्रही या स्वनवांश में होने पर शुभ फल देता है. इसी प्रकार केन्द्राधिपति ग्रह षष्ठस्थ होने पर पापी बन जाता है. दशानाथ योगकारक होने पर निश्चय ही शुभ फल देता है.

शुभ ग्रह केन्द्र, त्रिकोण, धन व लाभ स्थान में स्थित होकर अपनी दशा या अन्तर्दशा में स्वास्थ्य लाभ संतोष व सुख देने वाले बनते हैं.